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देवशयनी एकादशी 2025: पौराणिक कथा और व्रत का महत्व, जानें आज का सबसे अच्छा मुहूर्त और पुण्य लाभ

एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से इस व्रत के महत्व के विषय में पूछा। श्रीकृष्ण ने बताया कि यह एकादशी पद्मा एकादशी भी कहलाती है और इसका व्रत सभी पापों का नाश करता है।
 

आज से होगा चातुर्मास का आरंभ

योगनिद्रा में चले जाते हैं भगवान विष्णु

चार महीनों तक सभी मांगलिक कार्यों रहेंगे बंद

आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है, जो इस वर्ष 6 जुलाई 2025, रविवार को मनाई जाएगी। इस पावन तिथि से भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं और चातुर्मास का आरंभ हो जाता है। इस दौरान चार महीनों तक सभी मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है और भगवान विष्णु की आराधना से मोक्ष की प्राप्ति मानी जाती है।

देवशयनी एकादशी को लेकर धर्मग्रंथों में एक पौराणिक कथा मिलती है। एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से इस व्रत के महत्व के विषय में पूछा। श्रीकृष्ण ने बताया कि यह एकादशी पद्मा एकादशी भी कहलाती है और इसका व्रत सभी पापों का नाश करता है। उन्होंने एक कथा सुनाई—सूर्यवंशी राजा मांधाता के राज्य में जब तीन वर्ष तक वर्षा नहीं हुई तो प्रजा कष्ट में आ गई। ऋषि अंगिरा ने राजा को देवशयनी एकादशी का व्रत करने का सुझाव दिया। व्रत के प्रभाव से राज्य में वर्षा हुई और सुख-शांति लौटी।

यह व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि प्राकृतिक और सामाजिक संतुलन के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। इस दिन श्रीहरि विष्णु की विशेष पूजा, व्रत और रात्रि जागरण का विशेष महत्व होता है। भक्त इस दिन श्रीविष्णुसहस्त्रनाम, गीता पाठ, पुरुषसूक्त आदि का पाठ करते हैं।

 व्रत तिथि और मुहूर्त
देवशयनी एकादशी व्रत तिथि: 6 जुलाई 2025, रविवार
एकादशी तिथि आरंभ: 5 जुलाई, शनिवार, शाम 6:59 बजे
एकादशी तिथि समाप्त: 6 जुलाई, रविवार, रात 9:15 बजे
व्रत का शुभ मुहूर्त:

प्रातः 7:30 – 9:11

प्रातः 9:11 – 10:51

दोपहर 12:04 – 12:58

दोपहर 2:11 – 3:52

इस दिन व्रत करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के पापों से मुक्ति, जीवन में सुख-शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

धार्मिक आस्था और पौराणिक मान्यताओं से जुड़ी यह तिथि हर वर्ष भक्तों के लिए नवजीवन और आध्यात्मिक उन्नति का द्वार खोलती है। अतः सभी श्रद्धालुओं से अपील है कि वे श्रद्धा भाव से इस व्रत का पालन करें और भगवान श्रीहरि विष्णु की कृपा प्राप्त करें।

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