सातवीं मुहर्रम की मजलिस में पानी की अहमियत पर चर्चा

पानी अल्लाह की नेमत है
इसका एहतराम करें
मौलाना मोहम्मद मेंहदी ने दी नसीहत
दिया रसूल-ए-अकरम की हदीस का हवाला
चंदौली जिले में सातवीं मुहर्रम की मजलिस में अजाखाना-ए-रज़ा, जो स्वर्गीय डॉक्टर अब्दुल्ला मुजफ्फर की याद में स्थापित है, में मौलाना मोहम्मद मेंहदी ने पानी की अहमियत और करबला की घटना के बहाने इंसानियत का सबक दिया। उन्होंने कहा, "पानी अल्लाह की सबसे बड़ी नेमत है, इसका एहतराम करना हर इंसान का फर्ज़ है।" उन्होंने करबला के उस दर्दनाक लम्हे को याद कराया जब सातवीं तारीख से नहर-ए-फुरात का पानी इमाम हुसैन और उनके साथियों पर बंद कर दिया गया था।

मौलाना मेंहदी ने बताया कि रेगिस्तान की तपती रेत में तीन दिन तक छोटे-छोटे बच्चे पानी की एक-एक बूंद को तरसते रहे। उन्होंने इमाम हुसैन के कथन को दोहराते हुए कहा कि जब कभी ठंडा पानी पीना, तो अपने इमाम की कुर्बानी को याद करना। उन्होंने रसूल-ए-अकरम की हदीस का हवाला देते हुए कहा कि पानी पिलाना सबसे बड़ा सवाब है, इसलिए पानी की बर्बादी से बचना चाहिए और दूसरों को भी बचाना चाहिए।

मजलिस में मौलाना ने जनाबे कासिम के मसायब बयान किए। बताया गया कि किस तरह करबला के मैदान में उन्हें बेरहमी से शहीद किया गया और फिर उनकी लाश पर दुश्मनों ने घोड़े दौड़ा दिए। यह सुनकर मजलिस में मौजूद अज़ादारों की आंखें नम हो गईं। इस मौके पर डॉक्टर एस. जी. इमाम ने जानकारी दी कि शुक्रवार को दुलदुल का जुलूस निकलेगा, जो इमाम हुसैन की सवारी मानी जाती है। अज़ादार इसे दूध पिलाकर मन्नतें मांगते हैं।
मजलिस में दुलहीपुर से आई अंजुमन नासेरुल अजा ने अपनी पुरखुलूस अदायगी में मसायबी नौहे पेश किए, जिससे माहौल ग़मगीन हो गया। इसके बाद वक़ार सुल्तानपुरी ने जनाबे ज़ैनब के दर्द और करबला के बाद के मंजर को बयां करते हुए नौहे पढ़े। उन्होंने बताया कि कैसे इमाम हुसैन की शहादत के बाद जनाबे ज़ैनब ने सब्र का पैगाम दिया और इस्लाम की असल तस्वीर पेश की।
इस मौके पर अज़ाख़ाना-ए-रज़ा में बड़ी संख्या में अज़ादार शरीक हुए। मायल चंदौलवी, सरवर भाई, खुर्रम, शहंशाह, सैयद अली इमाम, दानिश, रियाज़ अहमद, नौशाद, सफदर हुसैन और इमरान सहित कई स्थानीय लोग उपस्थित रहे। सभी ने मिलकर करबला के शहीदों को याद किया और अमन व भाईचारे की दुआ की।
इस मजलिस ने न केवल करबला की कुर्बानी को ताज़ा किया बल्कि पानी जैसी मूलभूत जरूरत की अहमियत को भी सामने रखा, जो आज के दौर में पर्यावरणीय संकट के चलते और भी गंभीर हो गई है। मौलाना मेंहदी की बातें इस बात की याद दिलाती हैं कि इंसानियत, सब्र और नेमतों की कद्र ही करबला का असल पैगाम है।
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