ईद उल अजहा या बकरीद का है खास महत्व, खुद को साबित करने का मिलता है मौका
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चंदौली : ईद उल अजहा का नाम जबान पर आते ही उस अज़ीम ( बड़ा) कुर्बानी की याद ताजा हो जाती है, जिसका सीधा संबंध पैगम्बर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम और हज़रत इस्माइल अलैहिस्सलाम से जुड़ा हुआ है। इस्लाम मजहब में जितने भी त्योहार और खुशी के दिन हैं वो किसी न किसी खास वाकिये और पृष्ठभूमि की तरफ इशारा करते हैं।
ईद उल अज़हा की पृष्ठभूमि सबसे अलग है। ईद उल अज़हा के मौके पर अल्लाह को राजी करने के लिए उसके नाम पर खास किस्म का जानवर ज़िबह कर के हज़रात इब्राहिम की कुर्बानी को याद किया जाता है। जिससे मुसलमानों को अल्लाह की राह में सब कुछ कुर्बान करने का जज़्बा मिलता है। अल्लाह का फ़ज़ल (कृपा) और एहसान है कि इस बार भी ये बाबरकत मौका हम सबको नसीब हुवा है, लेकिन दुःख इस बात का है कि इद उल अज़हा का त्योहार पूर्व की तरह आज़ादी के साथ नहीं मनाया जा सकेगा।
कारण साफ है कि आज कोरोना जैसी महामारी से पूरी दुनिया जूझ रही है। सच है कि कोरोना उस खतरनाक मर्ज का नाम है जिसने अब तक लाखों लोगों को अपनी खुराक बना लिया है। इस महामारी को गंभीरता से लेते हुए केंद्र और राज्य सरकारें व्यापक क़दम उठा रही है। ऐसे बुरे दौर में एक ज़िम्मेदार नागरिक होने की वजह से हमारा भी ये फ़र्ज़ बनता है कि ईद उल अज़हा का त्योहार इस तरह से मनाएं, कि धार्मिक क़ानून के साथ-साथ सरकार द्वारा जारी गाइडलाइंस पर भी अमल हो। जहां तक कुर्बानी का सवाल है तो सरकार द्वारा जारी गाइडलाइंस में इसकी इजाजत दी गई है ,लेकिन इस शर्त पर के लोग कुर्बानी अपने घर पर ही करें तथा साफ सफाई का खास खयाल रखें, ताकि इसके वजह से किसी को कोई तकलीफ न हो।
कुर्बानी के गोश्त बांटते वक़्त अपने गरीब पड़ोसियों और रिश्तेदारों के खास खयाल रखें । इस मौके पर नुमाइश और दिखावा न करें। इसलिए कि इससे दुनयावी नुकसान के साथ साथ दिनी नुकसान भी है।
कुर्बानी हर उस मर्द औरत पर वाजिब है जिसके पास 653.184 ग्राम चांदी या उसकी कीमत बाजार भाव से 42457 रुपये का मालिक हो।
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