हरतालिका तीज पर बन रहे हैं चार शुभ योग, व्रत को बनाएंगे और भी फलदायी
हरतालिका तीज का पर्व कल
सुखी दांपत्य जीवन के लिए रखा जाता है व्रत
जरूर सुनें भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की पौराणिक कथा
हरतालिका तीज का पर्व, जिसे विशेष रूप से महिलाओं का पर्व माना जाता है, इस साल चार शुभ और दुर्लभ योगों के साथ आ रहा है। यह पर्व निर्जल व्रत, भक्ति और पति के प्रति प्रेम का प्रतीक है, जिसे सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी दांपत्य जीवन के लिए रखती हैं। अविवाहित लड़कियां भी इस व्रत को मनचाहे जीवनसाथी की कामना के लिए करती हैं। इस बार के शुभ संयोग इस पर्व को और भी अधिक फलदायी बना रहे हैं।
व्रत का महत्व और तिथि
हरतालिका तीज, जिसे गौरी तृतीया भी कहा जाता है, भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है। यह व्रत बेहद कठिन माना जाता है, क्योंकि इसमें महिलाएं दिन भर बिना अन्न और जल के उपवास करती हैं।

पंचांग के अनुसार, इस साल यह पर्व 26 अगस्त, मंगलवार को मनाया जाएगा। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 25 अगस्त को सुबह 11 बजकर 39 मिनट से शुरू होकर 26 अगस्त को दोपहर 12 बजकर 39 मिनट तक रहेगी। चूंकि व्रत का पालन उदयातिथि के अनुसार किया जाता है, इसलिए व्रत 26 अगस्त को ही रखा जाएगा। व्रत का पारण 27 अगस्त को चतुर्थी तिथि में सूर्योदय के बाद किया जाएगा।

चार शुभ योगों का अद्भुत संयोग
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस बार हरतालिका तीज पर चार खास योग बन रहे हैं, जो इस व्रत के महत्व को कई गुना बढ़ा रहे हैं:
सर्वार्थ सिद्धि योग: यह योग हर कार्य को सफल बनाने वाला माना जाता है। मान्यता है कि इस योग में किए गए सभी धार्मिक कार्य और अनुष्ठान बिना किसी बाधा के पूरे होते हैं और इच्छित फल देते हैं।
शोभन योग: इस योग को हर प्रकार के शुभ कार्यों के लिए आदर्श माना गया है। यह व्रत, पूजा, विवाह और गृह प्रवेश जैसे धार्मिक कार्यों के लिए अत्यंत उत्तम होता है।
गजकेसरी योग: यह ज्योतिष में एक अत्यंत प्रभावशाली योग है, जो चंद्रमा और गुरु की युति से बनता है। यह योग साधक की बुद्धि, प्रतिष्ठा, सौभाग्य और सम्मान में वृद्धि करता है।
पंचमहापुरुष योग: यह सबसे प्रभावशाली योगों में से एक है, जो ग्रहों के विशेष स्थान पर होने से बनता है। यह योग साधक को उच्च स्थान, दीर्घायु और विशेष फल प्रदान करता है।
पूजा विधि और परंपराएं
तीज के दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं और निर्जल व्रत का संकल्प लेती हैं। पूजा के लिए घर के पवित्र स्थान पर मिट्टी, चांदी या पीतल की भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा स्थापित की जाती है। इसके बाद भगवान गणेश के साथ पंचोपचार या षोडशोपचार विधि से पूजा की जाती है। इस पूजा में बेलपत्र, धूप, दीप, फूल, मिष्ठान्न, फल और ऋतुफल अर्पित किए जाते हैं। पूजा के बाद हरतालिका व्रत कथा का श्रवण करना अनिवार्य माना गया है।
इस दिन चंद्र दर्शन वर्जित होता है। यदि भूल से चंद्रमा का दर्शन हो जाए तो स्वमंतक मणि की कथा सुनना आवश्यक बताया गया है। रात भर महिलाएं भजन-कीर्तन और जागरण करती हैं, जो इस व्रत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह पर्व न केवल आध्यात्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारतीय संस्कृति में महिलाओं का स्थान और उनकी आस्था कितनी गहरी है।
Tags
चंदौली जिले की खबरों को सबसे पहले पढ़ने और जानने के लिए चंदौली समाचार के टेलीग्राम से जुड़े।*






