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26 अगस्त को मनायी जाएगी श्री कृष्ण जन्माष्टमी, अबकी बार लें गीता पाठ का संकल्प

हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाने वाला श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार नजदीक आ रहा है। 
 

गीता के 5 श्लोकों का रोज करें पाठ

आयेंगे आपके जीवन में बड़े सकारात्मक बदलाव

गीता देता है जीवन का अमृत संदेश

हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाने वाला श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार नजदीक आ रहा है। श्री कृष्ण का अष्टमी तिथि में जन्म होने के कारण इस पर्व को जन्माष्टमी के नाम से जाना जाता है।


 इस वर्ष 26 अगस्त 2024 को श्री कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाएगी। आइए इस पावन अवसर पर भगवान श्री कृष्ण के कुछ संदेशों के बारे में जानते है। श्री कृष्ण ने अर्जुन के माध्यम से समस्त संसार को गीता का अमृत संदेश दिया था। श्रीमद् भागवत गीता के माध्यम से मनुष्य विषम से विषम परिस्थितियों में सही मार्गदर्शन प्राप्त करता है। 


आइए कृष्ण जन्माष्टमी के पावन अवसर पर गीता के 5 ऐसे श्लोक के बारे में जानते हैं जो आपके जीवन में बड़े सकारात्मक बदलाव लाने में मदद कर सकते हैं।


नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥


अर्थ : आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है।


उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्रात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन:॥


अर्थ: मनुष्य को अपने द्वारा अपना उद्धार करना चाहिये और अपना अध: पतन नहीं करना चाहिये; क्योंकि आत्मा ही आत्मा का मित्र है और आत्मा (मनुष्य स्वयं) ही आत्मा का (अपना) शत्रु है


क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥


अर्थ: क्रोध से मनुष्य की मति मारी जाती है यानी मूढ़ हो जाती है जिससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद का अपना ही नाश कर बैठता है।


ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥


अर्थ: विषयों वस्तुओं के बारे में सोचते रहने से मनुष्य को उनसे आसक्ति हो जाती है। इससे उनमें कामना यानी इच्छा पैदा होती है और कामनाओं में विघ्न आने से क्रोध की उत्पत्ति होती है।


कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥


अर्थ: कर्म करने मात्र में तुम्हारा अधिकार है, फल में कभी नहीं। तुम कर्मफल के हेतु वाले मत होना और अकर्म में भी तुम्हारी आसक्ति न हो।

                                                                                                                                                                                                                                     

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