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आज जरूर पढ़िए गोवर्द्धन पूजा की कथा, घर में कभी नहीं होगी अन्न की कमी

श्री कृष्ण ने कहा कि कार्तिक में इन्द्र की पूजा का कोई लाभ नहीं, इसलिए हमें गऊ के वंश की उन्नति के लिए पर्वत वृक्षों की पूजा करते हुए न केवल उनकी रक्षा करने की प्रतिज्ञा करनी चाहिए।
 

गोवर्द्धन पूजा की हो रही तैयारी

कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को मनाते हैं त्योहार

अन्नकूट के पर्व के रूप में भी है मान्यता

कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्द्धन पूजा नाम का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन स्त्रियां गोबर के गोवर्धन भगवान बनाकर उसकी पूजा करती हैं और संध्या समय अन्नादि का भोग लगाकर दीपदान करते हुए गोबर के भगवान की परिक्रमा करती हैं। तत्पश्चात् उस गऊला बास (बाधा) उठाकर उसके उपले थापती हैं और बाकी को खेत आदि में डाल देती हैं। इस दिन अन्न का भोजन बनाकर भगवान का भोग लगाया जाता है। अपने सब अतिथियों सहित भोजन किया जाता है। उत्तर भारत के राज्यों में इस दिन अन्नकूट पर्व भी मनाया जाता है।


गोवर्द्धन पूजा की कथा

प्राचीन काल में दीपावली के दूसरे दिन भारत में और विशेषकर ब्रज मण्डल में इन्द्र की पूजा हुआ करती थी। श्री कृष्ण ने कहा कि कार्तिक में इन्द्र की पूजा का कोई लाभ नहीं, इसलिए हमें गऊ के वंश की उन्नति के लिए पर्वत वृक्षों की पूजा करते हुए न केवल उनकी रक्षा करने की प्रतिज्ञा करनी चाहिए। अपितु पर्वतों और भूमि पर घास-पौधे लगाकर हमें वन महोत्सव भी मनाना चाहिए। इसके सिवा हमें सदैव गोबर को ईश्वर के रूप में पूजा करते हुए उसे कदापि नहीं जलाना चाहिए।

इसके अलावा खेतों में गोबर डालकर उस पर हल चलाते हुए अन्नौषधि उत्पन्न करनी चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से ही हमारे सहित देश की उन्नति होगी। भगवान श्री कृष्ण के ऐसे उपदेश देने के पश्चात् लोगों ने ज्यों ही पर्वत वन और गोबर की पूजा आरम्भ की, त्यों ही इंद्र ने कुपित होकर सात दिन की बरसात की झड़ी लगा दी। परन्तु श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठा कर ब्रज को बचा लिया और इन्द्र को लज्जित होने के पश्चात् उनसे क्षमा याचना करनी पड़ी।
 

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