आज है हरतालिका तीज, ऐसे करें व्रत में पूजा पाठ की तैयारी
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आज अपने अखंड सुहाग की मंगलकामना के साथ महिलाएं हरतालिका तीज व्रत रखने वाली हैं। इस दिन भर निराजल व्रत रखने के साथ ही शाम को माता पार्वती व भगवान शंकर की उपासना कर व्रत कथा का श्रवण करेंगी। पति की दीर्घायु होने की कामना के साथ पूरी श्रद्धाभाव से पूजा अर्चना करेंगी।
महिलाओं ने पूजा सामग्री व फल-फूल आदि की खरीदारी की। कोरोना महामारी के बावजूद बाजार में काफी चहल पहल रही। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज व्रत रखा जाता है। महिलाएं निर्जला रहकर पति की लंबी आयु की कामना करती हैं। अगले दिन ही सुबह व्रत का पारण करती है। इस व्रत में पूरे दिन भगवान शंकर व माता पार्वती की भजन कीर्तन कर उनका स्मरण किया जाता है। कई कुंवारी कन्याएं भी मनवांछित पति की प्राप्ति के लिए तीज व्रत रखती हैं।
कहा जाता है कि इस दिन व्रती को सोना नहीं चाहिए। यही वजह है कि इस व्रत को कठिन माना जाता है। व्रत दो तरह से रखा जाता है। पहला निर्जला और दूसरा फलाहारी। फलाहारी व्रत में महिलाएं फल का सेवन कर सकती हैं।
पूजा की शुभ मुहूर्त के बारे में बताया जाता कि हरतालिका तीज व्रत प्रदोषकाल में किया जाता है। दिन व रात के मिलन के समय को प्रदोषकाल कहा जाता है। प्रदोष काल में शाम 6 बजकर 54 मिनट से रात 9 बजकर 6 मिनट तक मुहूर्त है। घर में ही मिट्टी या बालू की भगवान शिव व माता पार्वती की प्रतिमा बनाकर पूजा की जाती है। इसके साथ ही सोलह शृंगार की सामग्री मां पार्वती को अर्पण कर अखंड सुहाग की कामना की जाती है। इसके साथ ही हरतालिका तीज व्रत कथा भी सुना जाता है।
एक बार व्रत रखने के बाद इसे जीवनभर रखा जाता है। बीमार होने पर दूसरी महिला या पति इस व्रत को रख सकता है। हरतालिका तीज व्रत कथाशास्त्रों के अनुसार हिमवान की पुत्री माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए बालकाल में हिमालय पर्वत पर अन्न त्याग कर घोर तपस्या शुरू कर दी थी। इससे माता पार्वती के माता-पिता काफी परेशान थे। तभी एक दिन राजा हिमवान के पास पार्वती के लिए भगवान विष्णु की ओर से विवाह का प्रस्ताव लेकर नारदमुनि पहुंचे। माता पार्वती ने शादी का प्रस्ताव ठुकरा दिया। पार्वती जी ने अपनी एक सखी से कहा कि वह सिर्फ भोलेनाथ को ही पति के रूप में स्वीकार करेंगी। सखी की सलाह पर पार्वती ने घने वन में एक गुफा में भगवान शिव की अराधना की। भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र में पार्वती ने मिट्टी से शिवलिंग बनकर विधिवत पूजा की। देवी पार्वती के तप से खुश होकर भगवान शिव ने पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
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