ऐसी ही होलाष्टक से जुड़ी कथा, पौराणिक कथाओं में इन बातों का है जिक्र
होलाष्टक आज 12 बजे के बाद होगा शुरू
यह है धार्मिक मान्यता व कथा
इसलिए नहीं करते हैं शुभ व बड़े धार्मिक आयोजन
हमारे धर्म की पौराणिक मान्यताओं व धार्मिक कथाओं के अनुसार जब प्रहलाद को नारायण भक्ति से विमुख करने के जब सारे उपाय निष्फल होने लगे तो, हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को इसी तिथि फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी को बंदी बना लिया था और मृत्यु हेतु तरह तरह की यातनाएं देने की कोशिश की। इसके बावजूद प्रहलाद भगवान की भक्ति से विचलित नहीं हुए।
कहा जाता है कि होलाष्टक के दिन से ही प्रतिदिन प्रहलाद को मृत्यु देने के अनेक उपाय किये जाने लगे थे, किन्तु भगवत भक्ति में लीन होने के कारण प्रहलाद हमेशा जीवित बच जाया करते थे। ऐसा करते करते जब सात दिन बीत गए तो आठवें दिन अपने भाई हिरण्यकश्यप की परेशानी देख उनकी बहन होलिका ने अपनी गोद में प्रहलाद को लेकर अग्नि में प्रवेश किया। होलिका को ब्रह्माजी द्वारा अग्नि से न जलने का वरदान दिया गया था।
ऐसा कहा गया कि होलिका के आग में जाते ही होलिका स्वयं जलने लगी और प्रहलाद पुन जीवित बच गए, क्योंकि उनके लिए अग्निदेव शीतल हो गए थे। तभी से भक्ति पर आघात हो रहे इन आठ दिनों को होलाष्टक के रूप में मनाया जाता है। भक्ति पर जिस-जिस तिथि या वार को आघात होता उस दिन और तिथियों के स्वामी भी हिरण्यकश्यप से क्रोधित हो उग्र हो जाते थे। तभी से फाल्गुन शुक्ल अष्टमी के दिन से ही होलिकादहन स्थान का चुनाव किया जाता है, इस दिन से होलिका दहन के दिन तक इसमें प्रतिदिन कुछ लकड़ियां डाली जाती है, पूर्णिमा तक यह लकड़ियों का ढेर बनाया जाता है। पूर्णिमा के दिन सायंकाल शुभ मुहूर्त में अग्निदेव की शीतलता एवं स्वयं की रक्षा के लिए उनकी पूजा करके होलिकादहन किया जाता है।
हमारे ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है कि भगवान शिव की तपस्या को भंग करने के अपराध में कामदेव को शिव जी ने फाल्गुन की अष्टमी में भस्म कर दिया था। कामदेव की पत्नी रति ने उस समय क्षमा याचना की और शिव जी ने कामदेव को पुनः जीवित करने का आश्वासन दिया। इसी खुशी में लोग रंग खेलते हैं।
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