जिले का पहला ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टलMovie prime

पढ़िए होलिका दहन की पौराणिक कथा, जानिए होलिका दहन पर कैसे हुई थी बुराई पर अच्छाई की जीत ​​​​​​​

हिन्दू धर्म में रंगों का त्योहार होली सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक माना जाता है। होली का एक और महत्वपूर्ण पर्व है होलिका दहन। इसे फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को भारत भर बड़े ही उल्लास के साथ मनाया जाता है
 

हिन्दू धर्म में रंगों का त्योहार होली सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक माना जाता है। होली का एक और महत्वपूर्ण पर्व है होलिका दहन। इसे फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को भारत भर बड़े ही उल्लास के साथ मनाया जाता है और इसके अगले दिन रंग-गुलाल से होली खेली जाती है। इसे धुलेंडी, धुलंडी और धूलि होली भी कहा जाता है। कई अन्य हिंदू त्योहारों की तरह होली भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मानी जाती है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, होलिका दहन की तैयारी त्योहार से 40 दिन पहले शुरू हो जाती हैं। लोग सूखी टहनियां, पत्ते जुटाने लगते हैं। फिर फाल्गुन की पूर्णिमा तिथि के दिन शाम के समय अग्नि जलाई जाती है और मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। दूसरे दिन सुबह नहाने से पहले इस अग्नि की राख को अपने शरीर लगाते हैं, फिर स्नान करते हैं। होलिका दहन का महत्व है कि आपकी मजबूत इच्छाशक्ति आपको सारी बुराइयों से बचा सकती है। होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व के रूप में हर साल मनाया जाता है।


होलिका दहन की पौराणिक कथा


हिन्दू धर्म में सबसे लोकप्रिय कथा भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद और दानव होलिका के बारे में है। प्रह्लाद राक्षस हिरण्यकश्यप और उसकी पत्नी कयाधु का पुत्र था। हिरण्यकश्यप नहीं चाहता था कि प्रह्लाद भगवान विष्णु की पूजा करे। एक दिन, उसने अपनी बहन होलिका की मदद से अपने बेटे को मारने की योजना बनाई। होलिका के पास एक दिव्य चुनरी थी। होलिका को यह चुनरी ब्रह्मा जी ने अग्नि से बचाने के लिए उपहार में दी थी।


होलिका ने प्रह्लाद को लालच दिया कि वो प्रचंड अलाव में उसके साथ बैठे लेकिन भगवान विष्णु की कृपा के कारण, दिव्य चुनरी ने होलिका के बजाय प्रह्लाद की रक्षा की और होलिका जलकर राख हो गई और प्रह्लाद अग्नि से बाहर निकल आया। इसलिए इस त्यौहार को होलिका दहन के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में भी होलिका दहन का पर्व मनाया जाता है।


होलिका दहन की ये है विधि

  • सबसे पहले होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर वहां पर सूखे उपले, लकड़ी, सूखी घास एकत्रित किए जाते हैं। इसके बाद पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठा जाता है।
  • पूजा में एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बतासे, गुलाल व नारियल के साथ-साथ नई फसल के धान्य जैसे पके चने की बालियां और गेहूं की बालियां, गोबर से बनी ढाल लें।
  • कच्चे सूत को होलिका के चारों ओर तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटकर लोटे का शुद्ध जल व अन्य सामग्री को समर्पित करें।
  • पूजन के बाद अर्घ्य अवश्य दें। इस प्रकार होलिका पूजन से घर में दुःख-दारिद्रय का प्रवेश नहीं होता है और घर में जीवन भर सुख-समृद्धि बनी रहती है।
  • होलिका दहन करने से पूर्व घर के उत्तर दिशा में शुद्ध घी के सात दिए जलाएं। ऐसा करने से घर में धन, वैभव आता है और बाधाएं दूर होती हैं और घर में किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होती है।

चंदौली जिले की खबरों को सबसे पहले पढ़ने और जानने के लिए चंदौली समाचार के टेलीग्राम से जुड़े।*