इन कथाओं से जुड़ा है होली का त्योहार, प्रह्लाद के अलावा रति और कामदेव से जुड़ी है होली की दूसरी कहानी
होली पर चर्चा में रहती है प्रह्लाद की कहानी
होली से जुड़ी है रति और कामदेव की पौराणिक कथा
राधा और कृष्ण से जुड़ी है होली की तीसरी कहानी
होली भारत का दूसरा सबसे प्रसिद्ध हिंदू त्योहार है और पूरे देश में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इसे बुराई पर अच्छाई की जीत और भक्त की भगवान के प्रति आस्था का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है। यह दो दिनों तक मनाया जाने वाला त्यौहार है। पहले दिन होलिका दहन किया जाता है और दूसरे दिन रंगों से होली खेली जाती है। इन दो दिनों के पीछे कई पौराणिक कथाएं हैं, लेकिन इनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।
दरअसल, होली का त्योहार हर साल फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन के बारे में ज्यादातर लोग हिरण्यकश्यप, होलिका और भक्त प्रह्लाद की कहानी के बारे में जानते हैं, लेकिन इस त्योहार के पीछे और भी कई कहानियां छिपी हुई हैं, जिनके बारे में हम आज इस लेख में जानेंगे।
रति और कामदेव से जुड़ी है होली की दूसरी कहानी
होली से जुड़ी दूसरी पौराणिक कथा कामदेव से जुड़ी है। इस कथा के अनुसार सती की मृत्यु के बाद भगवान शिव दुख में डूब गये थे। उनके गुस्से की वजह से पूरा संसार प्रभावित होता नजर आया। इसके बाद सती ने माता पार्वती के रूप में जन्म लिया और भगवान शिव के मन में प्रेम जगाने का प्रयास करने लगीं। उनकी माता पार्वती ने कामदेव से सहायता मांगी।
कथा के मुताबिक इसके बाद कामदेव ने शिव जी के दिल में प्रेम बाण मार दिया, जिससे उनका ध्यान भंग हो गया है, लेकिन इससे महादेव को गुस्सा आ गया और उन्होंने तीसरी आंख खोलते हुए कामदेव को भस्म कर दिया। हालांकि प्रेम के बाण ने अपना काम कर दिया था और एकबार फिर भगवान शिव संसार के कार्यों पर ध्यान देने लगे। कामदेव के इस तरह भस्म होने को देखते हुए ही होलिका दहन की शुरूआत मानी जाती है। खासतौर से दक्षिण भारत में कामदेव की कथा को सही माना जाता है और होली पर उनकी पूजा की जाती है।
राधा और कृष्ण से जुड़ी है होली की तीसरी कहानी
होली से जुड़ी एक और लोकप्रिय कथा भगवान कृष्ण और उनकी प्रिय राधा की चंचलता की है। कहानी के अनुसार, अपने शरारती स्वभाव के लिए जाने जाने वाले कृष्ण, राधा के गोरे रंग से ईर्ष्या करते थे और इसे लेकर चिढ़ाते थे। प्रतिशोध में, राधा और उनकी सहेलियों ने कृष्ण को गुलाल लगाया, जिससे होली के दौरान रंगों से खेलने की परंपरा शुरू हुई।
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