गंगा दशहरा का यह है धार्मिक महत्व
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दुनिया की सबसे पवित्र नदियों में एक है गंगा। गंगा के निर्मल जल पर लगातार हुए शोधों से भी गंगा विज्ञान की हर कसौटी पर भी खरी उतरी विज्ञान भी मानता है कि गंगाजल में किटाणुओं को मारने की क्षमता होती है जिस कारण इसका जल हमेशा पवित्र रहता है। यह सत्य भी विश्वव्यापी है कि गंगा नदी में एक डुबकी लगाने से सभी पाप धुल जाते हैं।
हिन्दू धर्म में तो गंगा को देवी माँ का दर्जा दिया गया है। यह माना जाता है कि जब माँ गंगा का स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुई तो वह ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि थी, तभी से इस तिथि को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 2020 में गंगा दशहरा का यह पर्व 1 जून,सोमवार को बड़ी धूमधाम से देशभर में मनाया जाएगा।
गंगा दशहरा का महत्त्व
कहा जाता है कि जिस दिन माँ गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई उस दिन एक बहुत ही अनूठा और भाग्यशाली मुहूर्त था। उस दिन ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथी और वार बुधवार था, हस्त नक्षत्र, व्यतिपात योग, गर योग, आनंद योग, कन्या राशि में चंद्रमा और वृषभ में सूर्य। इस प्रकार दस शुभ योग उस दिन बन रहे थे। माना जाता है कि इन सभी दस शुभ योगों के प्रभाव से गंगा दशहरा के पर्व में जो भी व्यक्ति गंगा में स्नान करता है उसके ये दस प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं।
व्यर्थ बातों पर परिचर्चा
कहने का तात्पर्य है जिस किसी ने भी उपरोक्त पापकर्म किये हैं और जिसे अपने किये का पश्चाताप है और इससे मुक्ति पाना चाहता है तो उसे सच्चे मन से मां गंगा में डूबकी अवश्य लगानी चाहिये। यदि आप मां गंगा तक नहीं जा सकते हैं तो स्वच्छ जल में थोड़ा गंगा जल मिलाकर मां गंगा का स्मरण कर उससे भी स्नान कर सकते हैं।
कैसे करें गंगा की पूजा
इस दिन यदि संभव हो तो गंगा मैया के दर्शन कर उसे पवित्र जल में स्नान करें अन्यथा स्वच्छ जल में ही मां गंगा को स्मरण करते हुए स्नान करें यदि गंगाजल हो तो थोड़ा उसे भी पानी में मिला लें। स्नानादि के पश्चात मां गंगा की प्रतिमा की पूजा करें। इनके साथ राजा भागीरथ और हिमालय देव की भी पूजा-अर्चना करनी चाहिए। गंगा पूजा के समय प्रभु शिव की आराधना विशेष रूप से करनी चाहिए क्योंकि भगवान शिव ने ही गंगा जी के वेग को अपनी जटाओं पर धारण किया। पुराणों के अनुसार राजा भागीरथ ने माँ गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के लिए बहुत तपस्या की थी। भागीरथ के ताप से प्रसन्न होकर माँ गंगा ने भागीरथ की प्रार्थना स्वीकार की किन्तु गंगा मैया ने भागीरथ से कहा – “पृथ्वी पर अवतरण के समय मेरे वेग को रोकने वाला कोई चाहिए अन्यथा मैं धरातल को फाड़ कर रसातल में चली जाऊँगी और ऐसे में पृथ्वीवासी अपने पाप कैसे धो पाएंगे।
राजा भागीरथ ने माँ गंगा की बात सुनकर प्रभु शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की। भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर प्रभु शिव ने गंगा माँ को अपने जटाओं में धारण किया। पृथ्वी पर अवतरण से पूर्व माँ गंगा ब्रहमदेव के कमंडल में विराजमान थी। अतः गंगा मैया पृथ्वी पर स्वर्ग की पवित्रता साथ लेकर आई थी। इस पावन अवसर पर श्रद्धालुओं को माँ गंगा की पूजा-अर्चना के साथ दान-पुण्य भी करना चाहिए। सत्तू, मटका और हाथ का पंखा दान करने से दुगुना फल की प्राप्ति होती है।
गंगा मैया के मंत्र
‘नमो भगवते दशपापहराये गंगाये नारायण्ये रेवत्ये शिवाये दक्षाये अमृताये विश्वरुपिण्ये नंदिन्ये ते नमो नम:’
अर्थात्…..हे भगवती, दसपाप हरने वाली गंगा, नारायणी, रेवती, शिव, दक्षा, अमृता, विश्वरूपिणी, नंदनी को नमन।।
‘ॐ नमो भगवति हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे माँ पावय पावय स्वाहा’
अर्थात्….हे भगवती गंगे! मुझे बार-बार मिल और पवित्र कर।।
गंगा दशहरा के पावन पर्व की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।
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