क्यों आज भी अधूरी है भगवान जगन्नाथ की मूर्ति, इसलिए होता है अभिषेक, बीमार होने पर ऐसे होती है प्रभु की सेवा
प्राचीन समय से चली आ रही परंपरा के अनुसार हर वर्ष ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा सहित 108 कलशों से पवित्र स्न्नान करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अत्यधिक स्नान के कारण भगवान जगन्नाथ और दोनों भाई-बहन बीमार पड़ जाते हैं। जिसके कारण उनको एकांतवास में रखा जाता है। पंद्रह दिन के लिए मंदिर बंद कर दिया जाता है केवल कुछ पुजारी वैद्य के रूप भगवान की सेवा कर उनका इलाज करते हैं।
इसलिए होता है अभिषेक
शास्त्रों के अनुसार भगवान विश्वकर्मा(बूढ़े बढ़ई के रूप में) जब मूर्ति बना रहे थे तब राजा इंद्रदयुम्न के सामने शर्त रखी कि वे दरवाज़ा बंद करके मूर्ति बनाएंगे और जब तक मूर्तियां नहीं बन जातीं तब तक अंदर कोई प्रवेश नहीं करेगा। यदि दरवाज़ा पहले खुल गया तो वे मूर्ति बनाना छोड़ देंगे। बंद दरवाजे के अंदर मूर्ति निर्माण का काम हो रहा है या नहीं, यह जानने के लिए राजा नित्यप्रति दरवाजे के बाहर खड़े होकर मूर्ति बनने की आवाज सुनते थे। एक दिन राजा को अंदर से कोई आवाज सुनाई नहीं दी, उनको लगा कि विश्वकर्मा काम छोड़कर चले गए हैं।
राजा ने दरवाजा खोल दिया और शर्त अनुसार विश्वकर्मा वहां से गायब हो गए और भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां अधूरी ही रह गईं। यह देखकर राजा विलाप करने लगे। भगवान ने इंद्रदुयम्न को दर्शन देकर कहा, ‘विलाप न करो। मैंने नारद को वचन दिया था कि बालरूप में इसी आकार में पृथ्वीलोक पर विराजूंगा।’तत्पश्चात भगवान ने राजा को आदेश दिया कि 108 घट के जल से मेरा अभिषेक किया जाए। उस दिन ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा थी।
पहनते हैं सूती वस्त्र
बीमार पड़ने के बाद भगवान वैसे ही रहते हैं जैसे कोई भी बीमार व्यक्ति रहता है। रत्न सिंहासन वाले वस्त्र उतार कर बिल्कुल सादे सूती श्वेत रंग के आरामदेह वस्त्र पहनते हैं। सब आभूषण उतार दिए जाते हैं।
भोजन और औषधि
इस दौरान भगवान को हल्का खाना जैसे दूध, फलों के जूस और कई आयुर्वेदिक औषधियों के मिश्रण से काढ़ा बनाकर दिया जाता है। दशमूलारिष्ट में नीम, हल्दी, हरड़, बहेड़ा, लौंग आदि अनेक जड़ी बूटियों के काढ़े से नर्म मोदक बनाकर भगवान को दसवें दिन खिलाए जाते हैं।
तेल मालिश और लेप
पांचवें दिन बड़ा उड़िया मठ से फुलेरी तेल आता है जिससे भगवान की हल्के-हल्के मालिश की जाती है। भगवान पर रक्त चंदन और कस्तूरी का लेप किया जाता है। भारी पोशाक, गहने-फूलों का श्रृंगार, धूप-दीप, आरतियां यानी सुबह से रात तक व्यस्त दिनचर्या अणासर में भगवान को इन क्रियाओं से राहत मिल जाती है। पंद्रह दिनों के लिए मंदिर बंद रहता है और भक्त मंदिर के बाहर से ही उनको शीश झुका उनका हाल- चाल पूछते हैं। रथ यात्रा से एक दिन पहले भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा स्वस्थ होते हैं।
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