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रक्षा सूत्र कलावा देता है एक सकारात्मक ऊर्जा, जानिए मंगलवार या शनिवार से क्या है खास कनेक्शन

हिन्दू धर्म में कलावा को धारण करने और उतारने के लिए कुछ शुभ दिन निर्धारित किए गए हैं। इसके अनुसार, कलावा को हमेशा मंगलवार या शनिवार के दिन ही बदलना उचित माना जाता है।
 

रक्षा सूत्र कलावा बांधने के कई नियम नहीं जानते हैं लोग

21 दिन से ज़्यादा बांधना क्यों है अशुभ

जानिए धार्मिक महत्व और सही नियम।

हिन्दू धर्म में किसी भी पूजा-पाठ या मांगलिक कार्य के दौरान कलाई पर मौली या कलावा बांधने की एक महत्वपूर्ण परंपरा है। यह मात्र एक धागा नहीं, बल्कि रक्षा सूत्र का प्रतीक है। मौली या कलावा बांधने की यह प्रथा दरअसल वैदिक परंपरा का एक अभिन्न अंग है। प्राचीन काल से ही यज्ञ जैसे शुभ कार्यों के दौरान इसे बांधने की परंपरा चली आ रही है।

कलावा को केवल रक्षा-सूत्र के रूप में ही नहीं, बल्कि संकल्प सूत्र के रूप में भी जाना जाता है। पौराणिक ग्रंथों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि इसे रक्षा सूत्र के रूप में क्यों बांधा जाता है। एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान वामन ने असुरों के दानवीर राजा बलि की अमरता सुनिश्चित करने के लिए उनकी कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधा था। इस घटना को रक्षाबंधन पर्व का प्रतीक भी माना जाता है।

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मौली-कलावा का धार्मिक महत्व 
हाथ में बांधा जाने वाला कलावा, विशेषकर लाल रंग का, देवी दुर्गा और हनुमान जी की शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। ऐसी मान्यता है कि जब कोई व्यक्ति लाल रंग का कलावा धारण करता है, तो उसके भीतर लगातार सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है। सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह के कारण व्यक्ति को जीवन में शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

धारण करने की अवधि और नियम
अक्सर यह देखा जाता है कि लोग कलावा बांधने के बाद उसे उतारना भूल जाते हैं, और वह लंबे समय तक हाथ में बंधा रह जाता है। शास्त्रों में स्पष्ट रूप से यह वर्णित किया गया है कि कलावा को कितने दिनों तक धारण करना चाहिए, क्योंकि एक निश्चित अवधि के बाद वह अपनी ऊर्जा देना बंद कर देता है। शास्त्रों के अनुसार, कलावा को सिर्फ 21 दिन की अवधि के लिए ही बांधा जाना चाहिए।
इसका एक व्यावहारिक कारण यह भी है कि अमूमन 21 दिनों में कलावे का रंग उतरने लगता है। यह एक महत्वपूर्ण नियम है कि व्यक्ति को कभी भी उतरे हुए रंग का कलावा नहीं पहनना चाहिए।

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कलावा बदलने और उतारने के नियम
हिन्दू धर्म में कलावा को धारण करने और उतारने के लिए कुछ शुभ दिन निर्धारित किए गए हैं। इसके अनुसार, कलावा को हमेशा मंगलवार या शनिवार के दिन ही बदलना उचित माना जाता है। हालांकि, इसे किसी भी पूजा-पाठ के दौरान धारण किया जा सकता है।

अशुभ कलावा और उसका निष्कासन
रंग उतरता हुआ कलावा बांधना अशुभ माना जाता है। इसलिए, जैसे ही कलावे का रंग उतरने लगे, उसे उतार देना ही उचित होता है। 21 दिनों की अवधि के बाद, व्यक्ति किसी अन्य अच्छे मुहूर्त में पुनः हाथ पर नया कलावा बंधवा सकता है।

शास्त्रों के अनुसार, जब भी कलावा हाथ से उतारा जाता है, तो यह माना जाता है कि वह अपने साथ आपके भीतर और आपके आसपास की सभी नकारात्मकता को लेकर उतर जाता है। इसी कारण, एक बार उतारे गए कलावे को दोबारा कभी नहीं पहनना चाहिए। हाथ से उतारा हुआ कलावा किसी बहती हुई नदी में प्रवाहित कर देना शुभ माना जाता है।

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कलावा से जुड़े अचूक उपाय
कलावा का उपयोग केवल कलाई पर बांधने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसका उपयोग जीवन की समस्याओं को दूर करने के अचूक उपाय के तौर पर भी किया जाता है। हिन्दू मान्यता के अनुसार, यदि तुलसी, केला, शमी, आंवला जैसे पूजनीय पौधों को पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ कलावा बांधा जाए, तो व्यक्ति के जीवन से जुड़ी समस्याएं शीघ्र ही दूर होती हैं और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इन उपायों से व्यक्ति को जीवन में सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

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