कामिका एकादशी पर पूजन के बाद सुनेंगे ये व्रत कथा तो मिलेगा मोक्ष, दूर होंगे कष्ट
हर एकादशी को अलग नाम से जाना जाता है और सावन माह के कृष्णपक्ष की एकादशी को कामिका एकादशी के नाम से जाना जाता है।
हर एकादशी को अलग नाम से जाना जाता है और सावन माह के कृष्णपक्ष की एकादशी को कामिका एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी का बड़ा महत्व है और माना जाता है कि पूरे विधि-विधान से इस दिन पूजा करके भक्त भगवान विष्णु से मनचाहा वरदान पा सकता है।
सावन के महीने में तो व्रत-त्योहारों की झड़ी लग जाती है। इस पूरे महीने भगवान शिव की पूजा होती है पर इस माह में एक दिन ऐसा भी होता है जब श्रीहरि विष्णु पूजे जाते हैं। जी हां वह दिन होता है एकादशी का। जैसाकि हम जानते ही हैं कि हर माह दो एकादशी आती है और इस दिन श्रीहरि की पूजा के साथ ही व्रत भी रखा जाता है।
हर एकादशी को अलग नाम से जाना जाता है और सावन माह के कृष्णपक्ष की एकादशी को कामिका एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी का बड़ा महत्व है और माना जाता है कि पूरे विधि-विधान से इस दिन पूजा करके भक्त भगवान विष्णु से मनचाहा वरदान पा सकता है। इस बार कामिका एकादशी का व्रत 4 अगस्त बुधवार को रखा जाएगा और इस दिन पूरे विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा भी की जाएगी। जैसा कि हम जानते ही हैं कि पूजा के बाद व्रत कथा सुनी जाती है जिससे कि पूजा का पूरा फल मिल सके। वहीं माना जाता है कि कामिका एकादशी की व्रत कथा सुनने से भक्तों को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और उनके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
ये है कामिका एकादशी की व्रत कथा
पद्म पुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को एकादशी तिथि का महत्त्व समझाते हुए कहा है कि जैसे नागों में शेषनाग, पक्षियों में गरुड़, देवताओं में श्री विष्णु, वृक्षों में पीपल तथा मनुष्यों में ब्राह्मण श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार सम्पूर्ण व्रतों में एकादशी श्रेष्ठ है। सभी एकादशियों में नारायण के समान फल देने की शक्ति होती है। इस व्रत को करने के बाद और कोई पूजा करने की आवश्यकता नहीं होती। इनमें श्रावण मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी जिसका नाम 'कामिका' है, उसके स्मरण मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।
ये है कामिका एकादशी की दूसरी कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार, बहुत समय पहले एक गांव में पहलवान रहता था। पहलवान नेक दिल का आदमी था लेकिन उसका स्वभाव बहुत क्रोध करने वाला था। इसी वजह से आए दिन उससे किसी न किसी की बहस हो जाती थी। एक दिन पहलवान ने एक ब्राह्मण से झगड़ा कर लिया। उसके ऊपर क्रोध इतना हावी हो गया कि उसने ब्राह्मण की हत्या कर दी। जिसकी वजह से उस पर ब्राह्मण हत्या का दोष लग गया।
इस दोष से बचने और पश्चाताप के लिए वह ब्राह्मण के दाह संस्कार में शामिल होने गया। लेकिन पंडितों ने उसे वहां से भगा दिया। पंडितों ने ब्रह्माण की हत्या का दोषी मानकर पहलवान का समाजिक बहिष्कार कर दिया। ब्राह्मणों ने पहलवान के यहां सभी धार्मिक कार्य करने से मना कर दिया।
सामाजिक बहिष्कार से परेशान होकर पहलवान ने एक साधु से पूछा कि वह कैसे इस दोष से मुक्त हो सकता है। इस पाप से बचने का उपाय जानना चाहा। साधु ने पहलवान को कामिका एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। साधु के कहने पर पहलवान ने कामिका एकादशी व्रत का विधि विधान से पालन किया। एक दिन रात पहलवान भगवान विष्णु जी मूर्ति के पास सो रहा था। उसे नींद में भगवान विष्णु के दर्शन हुए और उसने सपने में देखा कि भगवन उसे ब्राह्मण हत्या के दोष से मुक्त कर दिया है। उसी दिन से कामिका एकादशी व्रत रखने का प्रचलन हो गया।
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