जानिए कैसे शुरू हुई छलनी से चांद देखने की प्रथा, कथा और चंद्रमा पूजा का महत्व
अखंड सौभाग्य की कामना का व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। पति-पत्नी के बीच समर्पण, प्यार और अटूट विश्वास का त्योहार इस वर्ष 24 अक्टूबर (रविवार) को मनाया जाएगा। रविवार और मंगलवार को पड़ने वाली चतुर्थी अंगारक चतुर्थी कहलाती है, इसलिए इस दिन गणेशजी की आराधना के लिए बेहद खास है। इस दिन सुहागन महिलाऐं यह उपवास अपने पति के प्रति समर्पित होकर उनके लिए उत्तम स्वास्थ्य, दीर्घायु एवं जन्म-जन्मांतर तक पुनः पति रूप में प्राप्त करने के लिए मंगल कामना करती हैं। दिन में महिलाएं कथा सुनने के बाद सूर्यदेव को अर्घ्य देती हैं। प्रेम, त्याग व विश्वास के इस अनोखे महापर्व पर मिट्टी के बर्तन यानि करवे की पूजा का विशेष महत्त्व है, जिससे रात्रि में चंद्रदेव को जल अर्पण किया जाता है।
नारदपुराण के अनुसार महिलाएं सोलह श्रृंगार कर सांयकाल में भगवान शिव-पार्वती, स्वामी कर्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा का विधिपूर्वक पूजन करते हुए नैवेद्य अर्पित करें।
अर्पण के समय यह कहना चाहिए कि ''भगवान कपर्दी गणेश मुझ पर प्रसन्न हों।''और रात्रि के समय चंद्रमा का दर्शन करके यह मंत्र पढ़ते हुए अर्घ्य दें, मंत्र है- ''सौम्यरूप महाभाग मंत्रराज द्विजोत्तम, मम पूर्वकृतं पापं औषधीश क्षमस्व मे। अर्थात हे! मन को शीतलता पहुंचाने वाले, सौम्य स्वभाव वाले ब्राह्मणों में श्रेष्ठ, सभी मंत्रों एवं औषधियों के स्वामी चंद्रमा मेरे द्वारा पूर्व के जन्मों में किए गए पापों को क्षमा करें, मेरे परिवार में सुख शांति का वास रहे।
चांद में सुंदरता, सहनशीलता, प्रसिद्धि और प्रेम जैसे सभी गुण पाए जाते हैं। इसलिए सुहागिन महिलाएं छलनी से पहले चांद देखती हैं फिर अपने पति का चेहरा। वह चांद को देखकर यह कामना करती हैं कि उनके पति में भी यह सभी गुण आ जाएं। मां पार्वती उन सभी महिलाओं को सदा सुहागन होने का वरदान देती हैं जो पूर्णतः समर्पण और श्रद्धा विश्वास के साथ यह व्रत करती हैं। पति को भी चाहिए कि पत्नी को लक्ष्मी स्वरूपा मानकर उनका आदर-सम्मान करें क्योंकि एक दूसरे के लिए प्यार और समर्पण भाव के बिना यह व्रत अधूरा है।
ओट से चांद को देखने की प्रथा
दिन भर उपवास के बाद चंद्रोदय होने पर सुहागिन महिलाएं छलनी में से चाँद को देखती हैं। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार वीरवती नाम की पतिव्रता स्त्री ने करवाचौथ का व्रत किया। भूख से व्याकुल वीरवती की हालत उसके भाइयों से सहन नहीं हुई, अतः उन्होंने चंद्रोदय से पूर्व ही एक पेड़ की ओट में चलनी लगाकर उसके पीछे आग जला दी और अपनी बहन से आकर कहा-'देखो चाँद निकल आया है अर्घ्य दे दो ।' बहन ने झूठा चाँद देखकर व्रत खोल लिया जिसके कारण उसके पति की मृत्यु हो गई। साहसी वीरवती ने अपने प्रेम और विश्वास से मृत पति को सुरक्षित रखा। अगले वर्ष करवाचौथ के ही दिन नियमपूर्वक व्रत का पालन किया जिससे चौथ माता ने प्रसन्न होकर उसके पति को जीवनदान दे दिया । तब से छलनी की ओट में से चाँद को देखने की परंपरा आज तक चली आ रही है।
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