चातुर्मास के बारे में क्या जानते हैं आप, पढ़ें इन 4 महीने से जुड़ी कुछ खास जानकारियां

चातुर्मास पर पढ़िए विशेष जानकारी
4 पवित्र महीनों चलता है तप
त्याग और भक्ति का महापर्व
जानिए इससे जुड़ी कई खास बातें
भारतीय संस्कृति में वर्ष के चार महीने — श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक — को चातुर्मास कहा जाता है। यह कालखण्ड केवल मौसम परिवर्तन या धार्मिक आयोजन का समय नहीं है, बल्कि आत्मशुद्धि, तप, त्याग और गहन भक्ति का अवसर होता है। चातुर्मास में जहाँ एक ओर भगवान विष्णु योगनिद्रा में लीन होते हैं, वहीं दूसरी ओर भक्तगण संयम, व्रत और तपस्या के माध्यम से आध्यात्मिक ऊँचाइयों की ओर अग्रसर होते हैं।

ये है 4 महीनों की पौराणिक पृष्ठभूमि
चातुर्मास का आरंभिक संदर्भ हमें वामन अवतार की कथा में मिलता है। शास्त्रों के अनुसार, राजा बलि ने जब तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया, तब देवताओं की रक्षा हेतु भगवान विष्णु ने वामन रूप में अवतार लिया। उन्होंने बलि से तीन पग भूमि मांगी। दो पगों में धरती और आकाश को नाप लिया, और तीसरा पग बलि के सिर पर रखकर उसे पाताल लोक भेज दिया। बलि की भक्ति और दानशीलता से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु स्वयं पाताल में उसके साथ निवास करने चले गए।

इससे चिंतित देवी लक्ष्मी ने एक गरीब स्त्री का रूप लेकर बलि को राखी बाँधी और बदले में विष्णु जी को मुक्त करने का वचन लिया। तब भगवान ने बलि को वचन दिया कि वे हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक पाताल में निवास करेंगे। इसी कारण इस अवधि में उन्हें योगनिद्रा में माना जाता है।
चातुर्मास का धार्मिक महत्व
चातुर्मास के ये चार महीने धर्म, तप, संयम और साधना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। पद्म पुराण, स्कंद पुराण और अन्य धर्मग्रंथों में इन महीनों की महिमा का विशेष उल्लेख किया गया है। यह माना जाता है कि इन चार महीनों में किए गए व्रत, उपवास, दान, जप, तप, और स्वाध्याय का फल सामान्य काल की अपेक्षा हजार गुना अधिक प्राप्त होता है।
इन व्रत एवं नियमों का कर सकते हैं पालन
चातुर्मास में विशेष नियमों का पालन करने से जीवन में स्थायित्व, संयम और शुद्धता आती है। इन महीनों में निम्न नियमों का विशेष रूप से पालन किया जाता है:
* ब्रह्मचर्य का पालन: सबसे श्रेष्ठ व्रत माना गया है। चातुर्मास में ब्रह्मचर्य व्रत रखने से आत्मबल और मानसिक स्पष्टता प्राप्त होती है।
* भोजन में संयम: चतुर्मास में विशेष रूप से गुड़, दही, नमक, उड़द, चना, शहद, अनार, नींबू, मिर्च, नारियल आदि का त्याग करना लाभकारी बताया गया है।
* मौन व्रत: जो व्यक्ति मौन व्रत धारण करता है, उसकी आज्ञा का उल्लंघन कोई नहीं करता।
* वस्त्र नियम: नीले, काले, केसरिया और कुसुम्भ रंग के वस्त्रों का त्याग करना चाहिए।
* भोजन पात्र: तांबे और काँसे के पात्रों का त्याग कर पत्तल (पलाश, बेलपत्र आदि) में भोजन करने की परंपरा है।
ऐसे कर सकते हैं विशेष धार्मिक अनुष्ठान:
* चातुर्मास में प्रतिदिन स्नान, विशेषकर तीर्थ स्नान, पुण्यकारी माना गया है।
* ‘पुरुष सूक्त’ का पाठ, विशेषकर श्रीहरि के समक्ष खड़े होकर करना, बुद्धि और स्मृति को तीव्र करता है।
* पंचगव्य का सेवन, गोसेवा, वेदपाठ, हवन, स्वाध्याय और संतों की सेवा विशेष फलदायक है।
* इस काल में शादी-विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञ, शिलान्यास आदि मांगलिक कार्यों को वर्जित माना गया है, क्योंकि भगवान विष्णु शयन में रहते हैं।
चातुर्मास में दान का भी है खास महत्त्व
चातुर्मास में अन्न, जल, गौ, भूमि, दूध, दही, घी, मट्ठा आदि का दान अत्यंत फलदायी होता है। जो व्यक्ति इस काल में ईश्वर की प्रसन्नता के लिए विद्या, भूमि या गौ का दान करता है, वह केवल अपने लिए ही नहीं, बल्कि अपने पूर्वजों के लिए भी मोक्ष का मार्ग खोल देता है।
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