कामिका एकादशी 2025: आत्मशुद्धि, पुण्य और दिव्यता का पर्व, जानें कब रखा जाएगा व्रत
कामिका एकादशी का महत्व और पूजा से जुड़ी मान्यताएं
तिथि, ये है पूजा की विधि और इससे होने वाले लाभ
चंद्रमा के प्रभाव से मन को मिलेगी विशेष शांति
श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाने वाला कामिका एकादशी व्रत हिन्दू पंचांग में विशेष महत्व रखता है। यह व्रत भक्ति, आत्मशुद्धि और पापों से मुक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। साल 2025 में कामिका एकादशी 21 जुलाई, सोमवार को मनाई जाएगी।
तिथि और शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, एकादशी तिथि 20 जुलाई को रात्रि 9:46 बजे प्रारंभ होगी और 21 जुलाई को रात 8:29 बजे समाप्त होगी। व्रती श्रद्धालु 21 जुलाई को पूरे दिन उपवास रखकर भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करेंगे। पारणा, यानी व्रत का समापन, अगले दिन 22 जुलाई को सूर्योदय के बाद किया जाएगा।
कामिका एकादशी का धार्मिक महत्व
कामिका एकादशी का वर्णन स्कंद पुराण, पद्म पुराण और नारद पुराण में मिलता है। पुराणों के अनुसार, इस दिन व्रत रखने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और व्रती के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। यह एकादशी कामनाओं की पूर्ति और आत्मशुद्धि के लिए अत्यंत प्रभावशाली मानी जाती है।
इस दिन उपवास रखने वाले व्यक्ति को ब्रह्महत्या जैसे महापापों से भी मुक्ति मिल सकती है, ऐसी मान्यता है। इसे अश्रद्धा, क्रोध, मोह और लोभ जैसे मन के विकारों से दूर होकर दिव्यता की ओर अग्रसर होने का अवसर माना जाता है।
व्रत व पूजा की विधि और लाभ
कामिका एकादशी के दिन व्रती प्रातः स्नान के बाद भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। तुलसी पत्र, पीली वस्तुएं, दीपदान और विष्णु सहस्रनाम का पाठ इस दिन विशेष पुण्यदायक होता है। भक्त व्रत रखते हुए जल या फलाहार पर रहते हैं और रात्रि में जागरण एवं कीर्तन करते हैं।
व्रत रखने से मिलने वाले लाभ:
मानसिक शांति और आत्मिक बल की प्राप्ति
पितृ दोष की शांति और पूर्वजों की कृपा
पापों से मुक्ति और सद्गति की प्राप्ति
जीवन में शुभता और संतुलन का अनुभव
मोक्ष प्राप्ति की दिशा में एक सार्थक प्रयास
तुलसी पूजन का विशेष स्थान
इस एकादशी पर तुलसी पूजा विशेष रूप से की जाती है। मान्यता है कि तुलसी पत्र भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है और इसे अर्पित करने से व्रत का फल कई गुना बढ़ जाता है।
मोक्ष और मन की शुद्धि का पर्व
कामिका एकादशी केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा है — जिसमें व्यक्ति अपने भीतर के विकारों से लड़ते हुए प्रभु की भक्ति में लीन होता है। वर्ष 2025 में यह व्रत सोमवार को पड़ रहा है, जिससे चंद्रमा के प्रभाव से मन को विशेष शांति और स्थिरता का अनुभव होने की भी उम्मीद है।
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