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किस राक्षस से डरकर भागे थे भगवान शिव, कहानी में क्‍या है जीवन का सार

भगवान शिव के बारे में प्रचलित है कि वह थोड़ी सी तपस्‍या से आसानी से प्रसन्‍न हो जाते हैं।  हालांकि, कई ऐसे उदाहरण भी हैं, जब किसी ने बड़ा वरदान पाने ने उनकी कठिन तपस्‍या भी की है।
 

भगवान शिव थोड़ी सी तपस्‍या से आसानी से हो जाते हैं प्रसन्‍न

एक राक्षस ने शिवजी की घोर तपस्‍या कर उन्‍हें प्रसन्‍न किया

वरदान देकर भगवान शिव खुद ही मुसीबत में फंस गए

भगवान विष्‍णु ने उन्‍हें इस मुसीबत से छुटकारा दिलाया

भगवान शिव के बारे में प्रचलित है कि वह थोड़ी सी तपस्‍या से आसानी से प्रसन्‍न हो जाते हैं।  हालांकि, कई ऐसे उदाहरण भी हैं, जब किसी ने बड़ा वरदान पाने ने उनकी कठिन तपस्‍या भी की है। लंकाधिपति रावण ने भी अमरत्‍व का वरदान पाने के लिए भगवान शिव को अपने दस सिर चढ़ा दिए थे। भगवान शिव से जुड़ी ऐसी ही एक और कहानी है, जिसमें एक राक्षस ने शिवजी की घोर तपस्‍या कर उन्‍हें प्रसन्‍न किया था। हालांकि, वरदान देकर भगवान शिव खुद ही मुसीबत में फंस गए थे। बाद में भगवान विष्‍णु ने उन्‍हें इस मुसीबत से छुटकारा दिलाया था। 

कहानी के मुताबिक, एक बार महर्षि नारद धरती पर घूम रहे थे। रास्‍ते में उन्हें वृकासुर नाम का राक्षस मिला।  नारद मुनि को देखते ही उसने कहा कि मैं आपसे कुछ सलाह लेना चाहता हूं, आप मुझे बताइए कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कौन देवता जल्‍द प्रसन्‍न हो जाते हैं। महर्षि नारद ने बहुत सोचने के बाद कहा कि वैसे तो तुम तीनों महादेवों में से किसी की भी तपस्या कर सकते हो। लेकिन, ब्रह्मा और विष्णु जल्दी प्रसन्‍न नहीं होते हैं। उनके लिए बहुत वर्षों तक कठिन तपस्या करनी पड़ती है। ये भी हो सकता है कि तुम्हारी आयु पूरी हो जाए, लेकिन तपस्या पूरी न हो। भगवान शंकर थोड़ी आराधना से ही प्रसन्‍न हो जाते हैं। वे अपने भक्त की इच्छा पूरी करने के लिए सोच-विचार नहीं करते हैं। 


वृकासुर का कठिन तप, शिवजी का प्रसन्‍न होना


वृकासुर ने भगवान शंकर की आराधना करने का फैसला किया और हिमालय के केदार क्षेत्र में जाकर आराधना करने लगा। यज्ञ, जप, तप, ध्यान सब प्रकार से वह पूजा-पाठ करने लगा। कुछ दिनों के बाद उसने सोचा कि मैं शरीर और प्राण को ही भगवान शिव को अर्पित कर दूंगा। ऐसा सोचकर वह अपने शरीर का मांस काट-काट कर यज्ञकुंड में डालने लगा, लेकिन भगवान शिव प्रसन्‍न नहीं हुए। परेशान होकर एक दिन उसने अपना शीश काटकर भगवान शिव को अर्पित करने का फैसला किया। स्‍नान-ध्यान कर जैसे ही उसने खड़ग उठाकर अपना शीश काटना चाहा कि भगवान शंकर प्रकट होकर बोले, ‘बस करो, तुम्हारी तपस्या पूरी हुई।  मैं तुम पर प्रसन्‍न हूं. वर मांगो। 


वृकासुर की वरदान की परीक्षा के लिए हठ


वृकासुर हाथ जोड़कर भगवान शिव से बोला, ‘आप मुझे दर दीजिए कि मैं जिस प्राणी के सिर पर हाथ रख दूं, उसकी तुरंत मृत्‍यु हो जाए। शिवजी वृकासुर की यह मांग सुनकर चिंता में पड़ गए, लेकिन वरदान नहीं देने पर देव मर्यादा का उल्‍लंघन हो रहा था। शिवजी वृकासुर से बोले कि तुम्हारी तपस्या व्यर्थ नहीं जाएगी। तुमने मुश्किल वरदान की कामना से तपस्या की थी इसलिए तुम्हें तपस्या भी कठिन करनी पड़ी। जाओ, जैसा वर चाहते हो, वैसा ही मिलेगा। वरदान पाते ही वृकासुर की आसुरी-वृत्ति जाग गई। उसने कहा कि प्रभो! आपका यह वरदान सत्य है या नहीं, इसकी परीक्षा लेना चाहता हूं।  इसलिए पहले आपके सिर पर ही हाथ रखकर देखता हूं कि इस वर में कितनी सत्यता है। 

भगवान विष्‍णु का शिवजी की बुराई करना

भगवान विष्‍णु को जब वृकासुर आता हुआ दिखाई दिया तो उन्होंने आगे बढ़कर उसे प्रणाम किया। उन्‍होंने वृकासुर से कहा कि असुरराज कहां भागे जा रहे हैं? लगता है कि आप बहुत थक गए हैं, शरीर को थोड़ा आराम दीजिए। आप सब प्रकार से समर्थ हैं, फिर भी मेरे योग्य कोई काम हो तो बताइए। अक्सर लोग अपने मित्रों और सहायकों से ही अपने काम पूरा करा लेते हैं। एक तेजस्वी ब्रह्मचारी की बातें सुनकर वृकासुर ने शिवजी के वरदान और उसकी परीक्षा की बात बताई। इस पर ब्रह्मचारी हंसा और कहा कि तुम किसके वरदान की परीक्षा लेना चाहते हो? शिवजी का तो अपना कोई घर ही नहीं है। वह खुद भूतों-प्रेतों के साथ घूमते रहते हैं। वह भला किसी को क्या वर देंगे? वर देने वाले तो ब्रह्मा और विष्णु ही हैं।

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