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जानिए कब मनाई जाएगी बकरीद?, आखिरकार बकरीद पर क्यों दी जाती है कुर्बानी

मुस्लिम समुदाय के सबसे बड़े त्योहारों में से एक बकरीद है जिसे ईद-उल-अजहा के नाम से जाना जाता है। इस साल ये त्योहार 17 जून 2024 को मनाई जाएगी।

 

मुस्लिम समुदाय के सबसे बड़े त्योहारों में से एक बकरीद है जिसे ईद-उल-अजहा के नाम से जाना जाता है। इस साल ये त्योहार 17 जून 2024 को मनाई जाएगी। भारत में जिलहिज्जा का चांद दिखने के बाद भारत के कई मुस्लिम धर्मगुरुओं ने 17 जून को बकरीद मनाने की घोषणा कर दी थी। इस त्योहार में बकरे की कुर्बानी दी जाती है, यही वजह है कि इसे "बकरा ईद" भी कहते हैं। ऐसे में आइए इस लेख में विस्तार से जानते हैं कि क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी, आखिर क्या है इसके पीछे की कहानी?


क्यों दी जाती है कुर्बानी? 


यह त्योहार पैगंबर इब्राहिम (अब्राहिम) की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, पैगंबर इब्राहिम को नींद में आए एक सपने में अल्लाह ने अपने किसी सबसे प्रिय चीज को कुर्बान करने को कहा। इसके बाद पैगंबर इब्राहिम बहुत सोच में पड़ गए आखिर क्या कुर्बान किया जा सकता है? बहुत सोचने विचारने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे कि उनके लिए सबसे प्रिय उनका बेटा है। ऐसे में अब उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का मन बना लिया। जब अपने बेटे को कुर्बानी के लिए लेकर जा रहे थे तो उनके रास्ते में एक शैतान मिला जो बोला कि आप अपने बेटे का बली क्यों दे रहे हैं। 

अगर आपको देना ही है तो किसी जानवर की बली दे दीजिए। इस बात पर पैगंबर इब्राहिम ने बहुत देर तक सोचा और फिर इस नतीजे पर पहुंचे कि अगर मैं अपने बेटे की बजाय किसी और का कुर्बानी देता हूं तो ये अल्लाह के साथ धोखा करना होगा। इसलिए उन्होंने बेटे को ही कुर्बान करने का निर्णय लिया। जब बेटे की कुर्बानी देने की बारी आई तो उनके पिता होने का मोह उन्हें परेशान करने लगा। इसलिए पैगंबर इब्राहिम ने आंखों पर पट्टी बांधकर उसके बाद अपने बेटे की कुर्बानी दी।


 मगर हैरान करने वाली बात ये थी की जब उन्होंने अपनी आंखों से कपड़े की पट्टी हटाई तो देखा की उनका बेटा सही सलामत खड़ा है और बेटे की जगह पर किसी बकरे की कुर्बानी हो गई है। इसी घटना के बाद से मुस्लिम समुदाय में बकरा कुर्बान करने का चलन शुरू हो गया।


तीन हिस्सों में बटता है बकरे का मांस


अगर ध्यान से देखा जाए तो यह त्योहार त्याग, समर्पण और आस्था का प्रतीक है। मुस्लिम समुदाय के लोग इस दिन अपनी हैसियत के अनुसार कुर्बानी देते हैं और गरीबों और जरूरतमंदों को मांस बांटते हैं। कुर्बानी का मांस तीन भागों में बांटा जाता है। एक भाग गरीबों और जरूरतमंदों को दिया जाता है, दूसरा भाग रिश्तेदारों और दोस्तों को दिया जाता है, और तीसरा भाग खुद रखा जाता है। ये त्योहार गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करने और समाज में भाईचारे और सद्भावना को बढ़ावा देने की प्रेरणा देता है।


ईद-उल-अजहा की तैयारियां


ईद-उल-अजहा की तैयारियां कई दिन पहले से शुरू हो जाती हैं। लोग अपने घरों की सफाई करते हैं, नए कपड़े खरीदते हैं, और स्वादिष्ट व्यंजन बनाते हैं।  ईद के दिन लोग नमाज अदा करते हैं, एक दूसरे को बधाई देते हैं और मिठाइयां बांटते हैं।

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