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इस वर्ष मनाया जाएगा भगवान श्री कृष्ण का 5248वां जन्मोत्सव, जानें जन्माष्टमी की तिथि, महत्व, पूजा विधि व मुहूर्त

हर वर्ष जन्माष्टमी का पर्व अगस्त-सितंबर में पड़ता है। इस बार ये पर्व 30 अगस्त सोमवार को मनाया जाएगा। 

 

कृष्ण भक्तों को जन्माष्टमी का बेसब्री से इंतजार रहता है। वे इस दिन भगवान कृष्ण की विधि-विधान से पूजा करते हैं, व्रत रखते हैं, घर में कृष्ण जी के झूले सजाते हैं, कृष्ण को झूला झुलाया जाता है। हर वर्ष जन्माष्टमी का पर्व अगस्त-सितंबर में पड़ता है। इस बार ये पर्व 30 अगस्त सोमवार को मनाया जाएगा। वहीं जन्माष्टमी के व्रत को 'व्रतराज' की उपाधि दी गई है

भाद्रपद माह की अष्टमी तिथि का बड़ा महत्व है क्योंकि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। इस दिन रोहिणी नक्षत्र में कान्हा ने जन्म लिया था और उनके जन्मोत्सव को ही जन्माष्मी के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। जन्माष्टमी को कृष्णाष्टमी व गोकुलाष्टमी भी कहते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार जन्माष्टमी आमतौर पर दो दिन पड़ती है जिसमें एक दिन स्मार्त मनाते हैं तो दूसरे दिन वैष्णव। पर भगवान कृष्ण के मंदिरों में तो दोनों ही दिन भक्तों की भीड़ उमड़ती है। 

कृष्ण भक्तों को जन्माष्टमी का बेसब्री से इंतजार रहता है। वे इस दिन भगवान कृष्ण की विधि-विधान से पूजा करते हैं, व्रत रखते हैं, घर में कृष्ण जी के झूले सजाते हैं, कृष्ण को झूला झुलाया जाता है। हर वर्ष जन्माष्टमी का पर्व अगस्त-सितंबर में पड़ता है। इस बार ये पर्व 30 अगस्त सोमवार को मनाया जाएगा। वहीं जन्माष्टमी के व्रत को 'व्रतराज' की उपाधि दी गई है, माना जाता है कि इस दिन व्रत करने से व्यक्ति को साल भर के व्रतों से भी अधिक शुभ फल की प्राप्ति होती है। 


जन्माष्टमी का महत्व 

सनातन धर्म में जन्माष्टमी को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन कृष्ण भक्त व्रत रखते हैं और पूरे विधि-विधान से कान्हा की पूजा करते हैं। माना जाता है कि जो भक्त इस दिन पूरी श्रद्धा व भक्ति से भगवान कृष्ण की पूजा करता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। ज्योतिषियों की मानें तो जिन लोगों की कुंडली में चंद्रमा कमजोर स्थिति में होता है उन्हें यह व्रत अवश्य करना चाहिए। कहते हैं कि भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने से कुंडली में चंद्र की स्थिति मजबूत होती है। वहीं दूसरी ओर निसंतान दंपति इस दिन संतान प्राप्ति के लिए भी व्रत करते हैं। 

इस दिन भगवान श्री कृष्ण को झूला झुलाया जाता है, ऐसी मान्यता है कि  झूला झुलाने से भगवान श्री कृष्ण अपने भक्तों के मनवांछित फल पूरा करते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार जिस घर में यह देवकी-व्रत किया जाता है वहां अकाल मृत्यु, गर्भपात, वैधव्य, दुर्भाग्य और कलह नहीं होती। जो भी भक्त एक बार भी इस व्रत को करता है वह संसार के सभी सुखों को भोगकर विष्णुलोक में निवास करता है।

janmashtami puja

कब है जन्माष्टमी 

इस साल 30 अगस्त 2021, सोमवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पावन पर्व मनाया जाएगा। 

अष्टमी तिथि प्रारंभ- 29 अगस्त दिन रविवार को रात 11 बजकर 25 मिनट से
अष्टमी तिथि समाप्त-  30 अगस्त दिन सोमवार को देर रात 01 बजकर 59 मिनट पर होगा।

जन्माष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त व पारण का समय 


निशीथ पूजा मुहूर्त- रात 11 बजकर 59 मिनट से रात 12 बजकर 44 मिनट तक
पूजा मुहूर्त की अवधि- 44 मिनट

अभिजित मुहूर्त: - सुबह 11:56 से लेकर रात 12:47 तक

गोधूलि मुहूर्त: - शाम 06:32 से लेकर शाम 06:56 तक

कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत में रात्रि को लड्डू गोपाल की पूजा- अर्चना करने के बाद ही प्रसाद ग्रहण कर व्रत का पारण किया जाता है। हालांकि कई लोग व्रत का पारण अगले दिन भी करते हैं। वहीं कई लोग रोहिणी नक्षत्र के समापन के बाद भी व्रत का पारण करते हैं। 


जन्माष्टमी व्रत पारण मुहूर्त- 31 अगस्त को सुबह 5 बजकर 57 मिनट के बाद

31 अगस्त को सुबह 9 बजकर 44 मिनट बाद व्रत का पारण कर सकते हैं। 

रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ- 30 अगस्त को सुबह 06 बजकर 39 मिनट से
रोहिणी नक्षत्र समापन- 31 अगस्त को सुबह 09 बजकर 44 मिनट पर।

krishna puja

यूं करें जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण की पूजा 

- इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।

- घर के मंदिर में साफ- सफाई करें और फिर दीप प्रज्वलित करें।

- सभी देवी- देवताओं का जलाभिषेक करें।

-इस दिन भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप यानी लड्डू गोपाल की पूजा की जाती है।

-सबसे पहले तो लड्डू गोपाल का जलाभिषेक करें।

-इस दिन लड्डू गोपाल को झूले में बैठाएं। झूला झूलाएं।

-अपनी इच्छानुसार लड्डू गोपाल को भोग लगाएं। इस बात का ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।

-लड्डू गोपाल की सेवा पुत्र की तरह करें।

-इस दिन रात्रि पूजा का महत्व होता है क्योंकि भगवान श्री कृष्ण का जन्म रात में हुआ था।

 - रात में 12 बजे के बाद श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाएं। उनका अभिषेक पंचामृत से करें और उन्हें नए वस्त्र अर्पित करें। अब उन्हें झूला झुलाएं और पंचामृत में तुलसी डालकर माखन-मिश्री और धनिये की पंजीरी का भोग लगाएं। 

-अब आरती करें और प्रसाद भक्तजनों में वितरित करें।


 

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