आखिर भोलेनाथ अपने शरीर पर क्यों लगाते हैं भस्म, क्या है इसका महत्व व इससे जुड़ी कथा
महादेव की पूजा में जहां उन्हें मनचाहा फूल चढ़ाया जाता है वहीं हम यह भी देखते हैं कि उनको भस्म चढ़ाई जाती है और भस्म चढ़ाने के बाद आरती होती है।
जहां अन्य देवता आभूषण से सजे होते हैं वहीं शिव आभूषण की जगह भस्म रमाते हैं। महाकालेश्वर के मंदिर में तो सुबह-सवेरे भस्म आरती भी होती है जिसमें भक्तजन बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
भगवान शिव शंकर को प्रिय है सावन का महीना और इस महीने उनकी पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है। शिव भक्त पूजा-पाठ के साथ व्रत उपवास करते हैं और मंत्र जाप व स्तुति भी करते हैं जिससे कि भोलेनाथ उनसे प्रसन्न हो और उनके सारे कष्ट दूर करके उन्हें मनोवांछित फल प्रदान करे।
महादेव की पूजा में जहां उन्हें मनचाहा फूल चढ़ाया जाता है वहीं हम यह भी देखते हैं कि उनको भस्म चढ़ाई जाती है और भस्म चढ़ाने के बाद आरती होती है। जहां अन्य देवता आभूषण से सजे होते हैं वहीं शिव आभूषण की जगह भस्म रमाते हैं। महाकालेश्वर के मंदिर में तो सुबह-सवेरे भस्म आरती भी होती है जिसमें भक्तजन बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
अब यहां सवाल यह उठता है कि आखिर शिव जी को भस्म क्यों लगाई जाती है? इससे उनका क्या संबंध है और क्यों वह उनको इतनी प्रिय है? इस संदर्भ में कई पौराणिक मान्यताएं व कथाएं है जो हमें इसका उत्तर देती है।
सृष्टि के संहारक है शिव
धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव को मृत्यु का स्वामी माना जाता है। इसी वजह से 'शव' से 'शिव' नाम बना। महादेव के मुताबिक शरीर नश्वर है और इसे एक दिन भस्म की तरह राख हो जाना है। जीवन के इस पड़ाव के सम्मान में शिव जी अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं। यह भी जान लें कि ये जो भस्म होती है जो वे अपने शरीर पर लगाते हैं वो लकड़ी की नहीं बल्कि चिता की राख की होती है।
इस प्रकार शिवजी भस्म लगाकर हमें यह संदेश देते हैं कि यह हमारा यह शरीर नश्वर है और एक दिन इसी भस्म की तरह मिट्टी में विलीन हो जाएगा। अत: हमें इस नश्वर शरीर पर गर्व नहीं करना चाहिए। कोई व्यक्ति कितना भी सुंदर क्यों न हो, मृत्यु के बाद उसका शरीर इसी तरह भस्म बन जाएगा। अत: हमें किसी भी प्रकार का घमंड नहीं करना चाहिए।
सती से जुड़ी है ये कथा
शिव जी के भस्म लगाने से संबंधित ये कथा भी प्रचलित है जो बताती है कि उन्हें भस्म क्यों प्रिय है। पौराणिक कथा के अनुसार ब सति ने क्रोध में आकर खुद को अग्नि के हवाले कर दिया था, उस वक्त महादेव उनका शव लेकर धरती से आकाश तक हर जगह घूमे थे। विष्णु जी से उनकी यह दशा देखी नहीं गई और उन्होंने माता सति के शव को छूकर भस्म में तब्दील कर दिया। अपने हाथों में भस्म देखकर शिव जी और परेशान हो गए और सति की याद में वो राख अपने शरीर पर लगा ली। इस तरह उन्होंने सती को खुद में समाहित कर लिया।
ठंड से बचाती है भस्म
धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि भगवान शिव कैलाश पर्वत पर वास करते थे। वहां बहुत ठंड होती थी। ऐसे में खुद को सर्दी से बचाने के लिए वह शरीर पर भस्म लगाते थे। आज भी बेल, मदार के फूल और दूध चढ़ाने के अलावा लगभग हर शिव मंदिर में भस्म आरती होती है।
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