नवरात्रि में जरूर करें कुंजिका स्तोत्र का पाठ, मंत्रों के जाप से होते हैं कई फायदे
कुंजिका स्तोत्र के मंत्र बहुत प्रभावशाली
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ से मिलता है सम्पूर्ण सप्तशती का फल
अबकी नवरात्रि में आप भी करें ट्राई
नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा की कृपा पाने के लिए लोग तरह-तरह के उपाय करते हैं। इन नौ दिनों में भक्त देवी मां को प्रसन्न करने के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं, लेकिन जिनके पास समय की कमी होती है वे सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ भी कर सकते हैं। यह बहुत ही प्रभावशाली और फलदायी माना जाता है। यह पाठ अत्यंत दुर्लभ है. इस पाठ को करने से जीवन की सारी चिंताएं दूर हो जाती हैं।
कुंजिका स्तोत्र के मंत्र बहुत प्रभावशाली हैं। इनके मंत्रों का जाप करने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। इसका पाठ दुर्गा सप्तशती के पाठ के बराबर माना जाता है। यह स्तोत्र श्री श्रीरुद्रयामल के मन्त्र द्वारा पुष्ट है तथा इसे सिद्ध करने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह एक अद्भुत स्तोत्र है जिसका प्रभाव चमत्कारी है। इस स्तोत्र पाठ से मनुष्य की पांच मूल समस्याएं हल हो जाती हैं। इस स्तोत्र को श्री श्रीरुद्रयामल के गौरी तंत्र में शिव पार्वती संवाद के रूप में वर्णित किया गया है।
कुंजिका स्तोत्र के मंत्र बहुत प्रभावशाली हैं। इनके मंत्रों का जाप करने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। इसका पाठ दुर्गा सप्तशती के पाठ के बराबर माना जाता है। यह स्तोत्र श्री श्रीरुद्रयामल के मन्त्र द्वारा पुष्ट है तथा इसे सिद्ध करने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह एक अद्भुत स्तोत्र है जिसका प्रभाव चमत्कारी है। इस स्तोत्र पाठ से मनुष्य की पांच मूल समस्याएं हल हो जाती हैं। इस स्तोत्र को श्री श्रीरुद्रयामल के गौरी तंत्र में शिव पार्वती संवाद के रूप में वर्णित किया गया है।
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र पाठ के नियम
- सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ वैसे तो किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन अगर शाम की आरती के बाद इसका पाठ किया जाए तो इसका प्रभाव बहुत जल्दी होता है।
- स्तोत्र का पाठ करने के लिए देवी के सामने दीपक जलाएं, लाल आसन पर लाल वस्त्र पहन कर बैठ जाएं।
- इसके बाद देवी को धूपबत्ती, दीपक और फूल चढ़ाएं और कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें।
- एकांत और शांति से सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें। इस पाठ में जल्दबाजी न करें।
श्रीरुद्रयामल के गौरीतंत्र में वर्णित सिद्ध कुंजिका स्तोत्र
शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजाप: भवेत्।।1।।
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्।।2।।
कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्।।3।।
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध् येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।।4।।
अथ मंत्र :-
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:!!
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।'
।।इति मंत्र:।।
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन।।1।।
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन।।2।।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।।3।।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।।4।।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण।।5।।
धां धीं धू धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु।।6।।
हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः।।7।।
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।। 8।।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे।।
इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।।
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।
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