पुनर्वसु नक्षत्र में हुआ था भगवान राम का जन्म, जाने पुनर्वसु नक्षत्र का ज्योतिषीय महत्व
त्रेतायुग में जन्में प्रभु श्री राम अयोध्या के राजा दशरथ के सबसे बड़े पुत्र और लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न के भाई थे। भगवान राम की मां कौशल्या थीं और शेष सुमित्रा और कैकयी के पुत्र थे। भगवान राम का विवाह मिथिला नरेश राजा जनक की पुत्री सीता के साथ हुआ था। वाल्मीकि रामायण से भगवान श्रीराम के जन्म समय, मुहूर्त, नक्षत्र और राशि की जानकारी प्राप्त होती है।
सनातन धर्म को मानने वाले लोगों के लिए भगवान सबसे बड़े आस्था के प्रतिक हैं। सभी हिंदू घरों में इनकी पूजा होती है। श्री राम को पुरुषों में सबसे उत्तम यानी 'मर्यादा पुरुषोत्तम' कहा जाता है। इनके गुणों के कारण ही आज भी हर कोई भगवान राम के जैसा पुत्र, पति और भाई चाहता है, लेकिन क्या आपको पता है कि रामजी का जन्म किस नक्षत्र में हुआ था और इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोगों में क्या गुण होते हैं? चलिए जानते हैं इसके बारे में...
ततो य्रूो समाप्ते तु ऋतुना षट् समत्युय:।
ततश्च द्वादशे मासे चैत्रे नावमिके तिथौ॥
नक्षत्रेsदितिदैवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु पंचसु।
ग्रहेषु कर्कटे लग्ने वाक्पताविन्दुना सह॥
प्रोद्यमाने जनन्नाथं सर्वलोकनमस्कृतम् ।
कौसल्याजयद् रामं दिव्यलक्षसंयुतम् ॥
पुनर्वसु नक्षत्र में जन्म
इस श्लोक के अनुसार प्रभु राम का जन्म चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को कर्क लग्न और पुनर्वसु नक्षत्र में हुआ था। यानी भगवान श्रीराम का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र में हुआ था। पुनर्वसु 27 नक्षत्रों में सातवां नक्षत्र है और इसका स्वामी बृहस्पति ग्रह है। यह मिथुन राशि से जुड़ा है, जिसका प्रतीक धनुष और तरकश है।
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पुनर्वसु नक्षत्र का ज्योतिषीय महत्व
ज्योतिष में पुनर्वसु नक्षत्र को सबसे शुभ माना जाता है। इस नक्षत्र में जन्में लोगों में ईश्वर के प्रति अगाध श्रद्धा होती है। मान्यता है कि इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक विशाल ह्रदय, जिज्ञासु और अनुकूलनशील स्वभाव के होते हैं। वे दयालु, बुद्धिमान और कुशल संचारक होते हैं। ऐसे लोगों को अधर्म के पथ पर चलना पसंद नहीं होता है। यही वजह है कि इनमें भगवान श्रीराम जैसे गुण देखने को मिलते हैं।
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