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इस दिन मनाई जाएगी मकर सक्रांति, जाने पुण्यकाल और महापुण्य काल मुहूर्त और धार्मिक महत्व

मकर संक्रांति भारतीय संस्कृति के प्रमुख त्योहारों में से एक है। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करते ही खरमास समाप्त हो जाता है और सभी शुभ और मांगलिक कार्य आरंभ हो जाते है।
 

इस दिन मनाई जाएगी मकर सक्रांति

जाने पुण्यकाल और महापुण्य काल मुहूर्त और धार्मिक महत्व
 

मकर संक्रांति भारतीय संस्कृति के प्रमुख त्योहारों में से एक है। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करते ही खरमास समाप्त हो जाता है और सभी शुभ और मांगलिक कार्य आरंभ हो जाते है। पौष मास में जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं उस काल विशेष को ही संक्रांति कहते हैं। 


हिंदू धर्म में सूर्य देव को प्रत्यक्ष देव कहा गया है। जो प्रतिदिन साक्षात् दर्शन देकर सारे जगत में ऊर्जा का संचार करते हैं। भारतीय ज्योतिष में सूर्य को नवग्रहों का स्वामी माना जाता है। मान्यता है कि सूर्य अपनी नियमित गति से राशि परिवर्तन करता है। सूर्य के इसी राशि परिवर्तन को संक्रांति कहा जाता है। इस तरह साल में 12 संक्राति तिथियां पड़ती हैं। जिनमें से मकर संक्रांति सबसे महत्वपूर्ण है। 


मकर सक्रांति को उत्तर भारत में खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है। इतना ही नहीं, इस दिन असम में बीहू और दक्षिण भारत में पोंगल का त्योहार होता है। वहीं, गुजरात और महाराष्ट्र में इस दिन उत्तरायण का त्योहार कहते हैं। पंजाब में एक दिन पहले लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है।  कहते हैं मकर संक्रांति के दिन से सर्दी का मौसम थोड़ा शांत हो जाता है। 

मकर सक्रांति


मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त 


14 जनवरी 2022 पुण्य काल आरंभ: दोपहर 02.43 से 
14 जनवरी 2022 पुण्य काल समाप्त: सायं 05.45 
पुण्य काल की कुल अवधि- 03 घंटे 02 मिनट 


मकर संक्रांति के दिन महा पुण्यकाल आरंभ:  14 जनवरी, 2022 दोपहर 02.43 से 
मकर संक्रांति के दिन महा पुण्यकाल समाप्त: 14 जनवरी, 2022 दोपहर 04:28 तक 
कुल अवधि - 01 घंटा 45 मिनट

 

मकर सक्रांति


मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व 


मकर संक्रांति का धार्मिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस दिन को भारत के कई क्षेत्रों में उत्तरायण कहा जाता है। उत्तर भारत में माघ मेले का आयोजन होता है। मकर सक्रांति का मयत्व के कारण ही त्रिवेणी संगम और काशी में इस दिन गंगा स्नान की परंपरा है। मकर सक्रांति के दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र दान करने का रिवाज है। मकर सक्रांति के दिन खिचड़ी का दान किया जाता है और घरों में तिल और गुड़ के पकवान भी बनते हैं। 


मकर संक्रांति का ऐतिहासिक महत्व 


अगर ऐतिहासिक महत्व की बात करें तो ऐसा कहा जाता है कि इस दिन भगवान भास्कर यानी कि सूर्य देव अपने पुत्र शनि से मिलने जाते हैं और चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं इसलिए इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही अपना देह त्याग किया था।  

सूर्यदेव की  करें आरधना 


इस दिन दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण, जप, तप का खासा महत्व है। 
मकर सक्रांति के दिन सूर्य देव को अर्घ्य दें। 
अर्घ्य देते समय कलश में थोड़ा सा तिल अवश्य डाल लें। 
मकर सक्रांति के दिन इस मंत्र से सूर्यदेव की आराधना करें। मंत्र इस प्रकार है- माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम। स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥

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