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नवरात्रि में इन मंत्रों का करिए जाप, देवी माँ का मिलेगा खास आशीर्वाद

इस वर्ष शारदीय नवरात्रि  7अक्टूबर से 15अक्टूबर तक हैँ। इस वर्ष तृतीय व चतुर्थी तिथि एक साथ पड़ रही है। घट स्थापना का शुभ मुहूर्त 6 बजकर 23 मिनट से सुबह 7 बजकर 7 मिनट तक है। ज्योतिषीय विश्लेषण के अनुसार इस वर्ष माँ दुर्गा अपने दिव्य लोक से अपने भक्तोँ के यहाँ अपने सुसज्जित श्रृगाँर के साथ सर्वार्थ सिद्धि योग मेँ प्रवेश करेगी।
 
शारदीय नवरात्रि  7अक्टूबर से 15अक्टूबर तक
नवरात्रि में इन मंत्रों का करिए जाप
देवी माँ का मिलेगा खास आशीर्वाद  
       

इस वर्ष शारदीय नवरात्रि  7अक्टूबर से 15अक्टूबर तक हैँ। इस वर्ष तृतीय व चतुर्थी तिथि एक साथ पड़ रही है। घट स्थापना का शुभ मुहूर्त 6 बजकर 23 मिनट से सुबह 7 बजकर 7 मिनट तक है। ज्योतिषीय विश्लेषण के अनुसार इस वर्ष माँ दुर्गा अपने दिव्य लोक से अपने भक्तोँ के यहाँ अपने सुसज्जित श्रृगाँर के साथ सर्वार्थ सिद्धि योग मेँ प्रवेश करेगी। यह भी अद्भुत सँयोग है कि 15  को विजय दशमी के दिन माँ भगवती की विदाई डोली पर ही होगी। 


हमारी भारतीय सँस्कृति में गँगा माता, गो माता, पृथ्वी माता, कहकर उस निष्ठा को बड़ी श्रद्धा के साथ सम्बोधित किया जाता है। नवरात्रि का त्योहार इसी शक्ति का प्रतीक है। नवरात्रि का अर्थ है 9 दिन 9 रात्रि तक एकाग्र चित्त होकर माँ की आराधना में लीन होकर सम्पूर्ण भाव से जप तप करना। सम्पूर्ण वर्ष में चैत, आषाढ़, आश्विन, एवँ माघ मास में शुक्ल पक्ष के प्रथम 9दिन माँ दुर्गा की पूजा के लिए परम शुभ माने जाते हैं। इन चारों  महीने में शारदीय नवरात्र प्रमुख व विशिष्ट माने जाते हैं। आषाढ़ एवं माघ मास के नवरात्रे गुप्त नवरात्रे के नाम से जाने जाते हैं। इन सभी नवरात्रोँ मेँ माँ भगवती की पूजा दुर्गा सप्तशती के पाठो से की जाती है। ऋग्वेद में कहा गया है-माँ भगवती ही महत्वपूर्ण शक्ति है। उन्हीं से सम्पूर्ण विश्व का सँचालन होता है। इनके अतिरिक्त कोई दूसरी शक्ति नही है। 


हमारे धार्मिक ग्रन्थो में स्पष्ट रूप से यह विवरण देखने को मिलता है कि देवताओँ ने भी अपने मनोरथ पूर्ण करने के लिए माँ भगवती की आराधना की। जगत के पालन हार भगवान विष्णु ने मधु कैटभ जैसे शूरवीर पराक्रमी राक्षस का बध करने के लिए माँ दुर्गा के नवरात्रि के ब्रत धारण किये। भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने भी नव दुर्गा व्रत लेने से अमोघ वाण की प्राप्ति की। जिससे रावण का बध किया। 


देवी भागवत पुराण में माँ के 9 स्वरुपोँ का वर्णन इस प्रकार से  किया गया है -


1-शैलपुत्री - माँ भगवती का प्रथम रूप शैलपुत्री का है। पर्वत राज हिमालय की पुत्री होने के कारण ये शैलपुत्री के नाम सेजानी   जाती है। नवरात्रि के प्रथम दिन इस स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है। इस स्वरूप का वाहन बैल है। जिसे संस्कृत वृषभ के नाम से जाना जाता है। इस कारण माँ भगवती को वृषारुढा के नाम से भी जाना जाता है। इस देवी ने दाँये हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है। बायें हाथ में कमल सुशोभित हैं। इस रुप को सती के नाम से भी जाना जाता है। इस रुप की पूजा करने से मुलाधार चक्र जागृत हो जाता है। जिससे साधक को अनेक प्रकार की सिद्धियाँ स्वत:प्राप्त हो जाती हैं। 


इस रुप का जप मन्त्र है --
ऊँऐँह्रीँक्लीँशैलपुत्रयैनम:


2-माँ ब्रह्मचारिणी - माँ दुर्गा का द्वितीय स्वरुप ब्रह्मचारिणी का है। ब्रह्मा का अर्थ तपस्या से है। माँ दुर्गा का यह रूप भक्तो और साधकोँ को अनँत फल देने वाला है। इनकी उपासना करने से त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। देवी का यह रुप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यन्त भव्य है। इस देवी के दायेँ  हाथ में जप की माला है  और बायेँ हाथ में कमन्डल धारण किये हुए हैं।


 इस माँ भगवती का जप मन्त्र इस तरह से है-------
ऊँऐँह्रीँक्लीँब्रह्मचारिण्यैनम:


3-चन्द्रघन्टा - माँ दुर्गा का तीसरा रुप चन्द्र घण्टा का है। चन्द्र घण्टा माता का शिवदूती स्वरूप है। इनके माथे पर  घन्टे के आकार का अर्धचन्द्र है। इसी कारण इन्हें चन्द्र घण्टा  देवी कहा जाता है। इसका रँग  सोने के समान चमकीला है। इनकी मुद्रा युद्ध के लिए तैयार रहने जैसी है। असुरोँ के साथ युद्ध में देवी चन्द्रघन्टा ने घन्टे की टंकार से असुरोँ का नाश कर दिया था। इनका पूजन अर्चना करने से साधक को मणिपुर चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियाँ  स्वत:प्राप्त हो जाती हैं। 


इस पूजा का जप मन्त्र इस प्रकार से है ----
ऊँचँचँचँचन्दरघन्टायेनम:


4- कुष्मान्डा- माँ दुर्गा का चतुर्थ रुप कुष्मान्डा का है। इस दिन माँ कुष्मान्डा की पूजा और अर्चना की जाती है। इस दिन उपासक का मन अनाहत चक्र में उपस्थित रहता है। इनकी पूजा करने से भक्तोँ के सभी रोग नष्ट होते हैं। माँ कुष्मान्डा को अष्टभुजाओँ वाली देवी भी कहा जाता है। इनकी भुजाओं में बाण, चक्र, गदा, अमृत कलश, कमल और कमन्डल सजे हैं, वही दूसरी भुजा  मेँ सिद्धियोँ और निधियों से युक्त माला धारण किये हुये हैं। माँ कुष्मान्डा का सवारी सिँह है। इस दिन प्रात:स्नान से निवृत होने के बाद माँ दुर्गा के कुष्मान्डा स्वरुप की पूजा करेँ। पूजा मेँ माँ को लाल रँग का पुष्प गुड़हल या गुलाब अर्पित करेँ। इसके साथ ही सिन्दूर धूप, दीपक, नैवेद्य चढायेँ। माँ की पूजा हरे रँग का वस्त्र पहन कर पूजा करेँ। इससे सम्पूर्ण दुखोँ से मुक्ति मिल जाती है। 


माँ का जप मन्त्र इस प्रकार से है -
ऊँऐँहीँरीँक्लीँकूष्मान्डायेनम:


5-स्कन्द माता- माँ दुर्गा का पाँचवाँ रुप स्कन्द माता का है। श्री कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कन्द माता कहा जाता है। इस देवी की चार भुजायेँ हैं। यह दाँयी तरफ की ऊपर वाली भुजा में स्कन्द को गोद में पकड़े हुए है। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाँयी तरफ ऊपर वाली भुजा में वर मुद्रा है। नीछे वाली भुजा में कमल पुष्प है।


 इस देवी का जप मन्त्र इस तरह से है -------
*ऊँऐँहीँरीँक्लीँस्कन्दमातायेनम:


6-माँ कात्यायनी- आदि शक्ति दुर्गा का छठा रुप श्री कात्यायनी का है। महर्षि कात्यायन की तपस्या से खुश होकर माँ भगवती ने उनके यहाँ पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसलिए कात्यायनी कहलाती है। कात्यायनी की उपासना करने से आज्ञा चक्र जागृत की सिद्धियाँ साधक को स्वयँ प्राप्त हो जाती हैँ। ध्यान करने मात्र से रोग, शोक, सँताप भय आदि सर्वथा को मिट जाते हैं। 


जप मन्त्र इस प्रकार से है -
ऊँऐँहीरीँक्लीँकात्यायनेनम:


7-कालरात्रि - दुर्गा देवी का सातवाँ रुप माँ कालरात्रि का है। एह काल का नाश करने वाली है। इस दिन साधक का मन सहस्तार चक्र मेँ स्थित रहता है। माँ कालरात्रि का स्वरुप देखने मेँ अत्यन्त भयानक है। लेकिन यह सदैव शुभ फल देनेवाली है। इस कारण इनका नाम शुभँकारी भी है। इस स्वरुप की पूजा करने से दानव दैत्य राक्षस भूत प्रेत आदि भयभीत होकर भाग जाते हैँ। 


इस माँ का जप मन्त्र इस प्रकार से है---
ऊँऐँहीरीँक्लीँकालरात्यैनम


8-महागौरी-अष्टम दुर्गा का रुप महागौरी का है। माँ का वर्ण पूर्णतः गोरा चिट्ठा है। इसलिए यह महागौरी कहलाती है। नवरात्रि के अष्टम दिन माँ की पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन साधक को अपना चित्त सोमचक्र में स्थिर करके साधना करनी चाहिए। इनकी उपासना से अलौकिक सिद्धियाँ की प्राप्ति हो जाती है। 


माँ देवी का ध्यान इस जप मन्त्र से करनी चाहिए ---
ऊँऐँक्लीँँमहागौर्येनम:


9-सिद्धिदात्री-माँ भगवती का नवम रुप सिद्धि दात्री है। यह सब प्रकार की सिद्धियो की दाता है। इसलिएसिद्धिदात्री कहलाती है। इस दिन साधक को अपना मन निर्वाण चक्र में स्थिर कर साधना करनी चाहिए। सच्ची साधना व पूजा करने से सम्पूर्ण सिद्धियोँ  की प्राप्ति हो जाती है। असम्भव कार्य भी सम्भव हो जाते हैं।

 इस रुप मेँ माँ दुर्गा का ध्यान इस जप मन्त्र से  करनी चाहिए -
*ऊँऐँक्लीँँसिद्धिदात्रयैनम

                                                                                       

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