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3 अक्तूबर से नवरात्रि प्रारंभ, शारदीय नवरात्रि पर घटस्थापना के लिए 2 शुभ मुहूर्त ​​​​​​​

शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हर साल आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है। इस साल शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 03 अक्तूबर से होगी और इसका समापन 11 अक्तूबर को होगा।
 

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शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हर साल आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है। इस साल शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 03 अक्तूबर से होगी और इसका समापन 11 अक्तूबर को होगा। इस साल शारदीय नवरात्रि पर घटस्थापना के लिए 2 शुभ मुहूर्त हैं। 

कलश स्थापना का पहला मुहूर्त: प्रातः 6:15 बजे से प्रातः 7:22 बजे तक है। इसके अनुसार मातारानी के भक्तों को घटस्थापना के लिए 1 घंटा 6 मिनट का शुभ समय प्राप्त होगा। जो लोग सुबह में कलश स्थापना करना चाहते हैं, उनके लिए यह समय ठीक है। 


नवरात्रि के घटस्थापना के लिए दूसरा शुभ मुहूर्त प्रातः 11:46 से दोपहर 12:33 बजे के बीच तक है है। सुबह के बाद दिन में कलश स्थापना के लिए 47 मिनट का मुहूर्त है। नवरात्रि के दौरान माता रानी की पूजा करने की परंपरा है। इस दौरान भक्त नौ दिनों तक देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा करते हैं। 


आइए जानते हैं मां के नवस्वरूपों के बारे में और कैसे करें इन स्वरूपों को प्रसन्न। 


मां शैलपुत्री करती हैं जीवों की रक्षा


नवरात्रि के प्रथम दिन भक्त नौ विग्रह रूपों में माता के पहले स्वरूप ‘शैलपुत्री’ की उपासना करते हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण उनका नाम शैलपुत्री पड़ा। सती स्वरूप द्वारा यज्ञ अग्नि में स्वयं को भस्म करने के पश्चात उन्होंने पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया। 


उनका यह स्वरूप लावण्यमयी एवं अतिरूपवान है। माता के एक हाथ में त्रिशूल तथा दूसरे में कमल का फूल सुशोभित होता है। उनका वाहन वृषभ अर्थात बैल है। भगवान शंकर की भांति वे भी पर्वतों पर निवास करती हैं। प्रत्येक प्राणी में उनका स्थान नाभि चक्र से नीचे स्थित मूलाधार चक्र में है। यही वो स्थान है, जहां उनकी शक्ति ‘कुंडलिनी’ के रूप में विराजमान रहती है। नवरात्रि के पहले दिन इनकी उपासना में योगी एवं साधक अपने मन को ‘मूलाधार’ चक्र में स्थित करते हैं, क्योंकि इसी स्थान से योग साधना का प्रारंभ होता है। 


माता शैलपुत्री अपने साधकों को साधना में लीन होने की शक्ति, साहस एवं बल प्रदान करती हैं, साथ ही आरोग्य का वरदान भी देती हैं। नवरात्रि के पहले दिन जो भक्त सच्ची भक्ति उपासना द्वारा उनके इस स्वरूप को जागृत करता है, माता उसका निस्संदेह कल्याण करती हैं।


कैसे करें प्रसन्न : देवी संवाद अनुसार, माता को सफेद एवं लाल रंग की वस्तुएं बहुत पसंद हैं, इसलिए नवरात्रि के पहले दिन उनके इस स्वरूप के समक्ष सफेद या लाल रंग के पुष्प अर्पित कर लाल सिंदूर लगाएं। गाय के दूध से बने पकवान एवं मिष्ठान का भोग लगाने से माता भक्तों से प्रसन्न होकर उनकी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। साथ ही भक्तों के घर की दरिद्रता को दूर करके उनके परिवार के सभी सदस्यों को रोगमुक्त कर देती हैं। भक्त को संशय रहित होकर माता का पूजन करना चाहिए।


मां ब्रह्मचारिणी देती हैं स्मरण शक्ति


प्रत्येक प्राणी के अंतर्मन में स्थित देवी का दूसरा रूप शक्ति विग्रह ब्रह्मचारिणी या तपस्चारिणी अर्थात तप का आचरण करने वाला है। सत, चित्त, आनंदमय ब्रह्म की प्राप्ति कराना ही मां के दूसरे स्वरूप का उद्देश्य एवं स्वभाव है। उनकी आभा पूर्ण चंद्रमा के समान निर्मल, कांतिमय है। उनकी शक्ति का स्थान ‘स्वाधिष्ठान चक्र’ में है। उनके एक हाथ में कमंडल तथा दूसरे में जप की माला रहती है। 


नवरात्रि के दूसरे दिन भक्त माता के इसी विग्रह की पूजा, अर्चना और उपासना करते हैं। माता भक्तों को उनके प्रत्येक कार्य में सफलता प्रदान करती हैं। उनके उपासक सन्मार्ग से कभी नहीं हटते हैं। 


माता ने इस रूप में भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तप किया था, जिससे उनका शरीर कई बार क्षीण हुआ। उस समय मां मैना ने उनकी यह दशा देखकर ‘उ मा, ओ नहीं-नहीं’ कहकर उन्हें तपस्या से विरत करने की कोशिश की। इसी कारण उनका नाम ‘उमा’ पड़ा। उस समय माता सूक्ष्म से सूक्ष्म रूपों में भी शिव प्राप्ति के लिए तप करती रहीं। तीनों लोकों में उनका तेज व्याप्त हो गया, तब ब्रह्मा जी ने आकाशवाणी से भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने का वरदान दिया। माता के इस स्वरूप के पूजन से भक्त दीर्घायु एवं मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं।


कैसे करें प्रसन्न : माता को गुड़हल और कमल के फूल बहुत पसंद हैं। नवरात्रि के दूसरे दिन इन्हीं पुष्पों को अर्पित करने तथा चीनी, मिश्री और पंचामृत का भोग अर्पित करने से मां अतिशीघ्र प्रसन्न होकर लंबी आयु एवं सौभाग्य प्रदान करती हैं। संशयमुक्त होकर उनकी स्तुति करने वाला भक्त त्रिलोक में विजयी होता है।

मां चंद्रघंटा प्रदान करती हैं आरोग्य-संपदा


मां के तीसरे शक्ति विग्रह का नाम चंद्रघंटा है, जिनका पूजन-अर्चन नवरात्रि के तीसरे दिन किया जाता है। चंद्रघंटा स्वरूप में मां का रंग सोने के समान चमकीला और तेजस्वी है। उनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्द्धचंद्र है, इसी कारण मां को चंद्रघंटा नाम से संबोधित किया जाता है। 


इस रूप में मां के दस हाथ हैं, जिनमें से एक हाथ में कमल का फूल, एक में कमंडल, एक में त्रिशुल, एक में गदा, एक में तलवार, एक में धनुष और एक में बाण हैं। उनका एक हाथ हृदय पर, एक हाथ आशीर्वाद मुद्रा में और एक अभय मुद्रा में भक्तों के कल्याण के लिए रहता है। मां के गले में सफेद फूलों की माला रहती है और उनका वाहन बाघ है। 


देहधारियों में इस रूप का स्थान मणिपुर चक्र है। तीसरे दिन साधक इसी चक्र में ध्यान लगाते हैं। उनकी कृपा से श्रद्धालुओं को अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है और दिव्य ध्वनियां सुनाई पड़ती हैं। मां सच्चे भक्त को शीघ्र फल देती हैं और कष्टों का निवारण करती हैं। उनका यह स्वरूप दानव, दैत्य, राक्षसों को कंपाने वाला तथा प्रचंड ध्वनि उनकी हिम्मत पस्त कर देने वाली होती है। जहां मां की घंटे जैसी ध्वनि बुरी शक्तियों को भगाने पर मजबूर करती है, वहीं भक्तों को उनका स्वरूप सौम्य, शांत और भव्य दिखाई देता है।


कैसे करें प्रसन्न : मां अंतर्मन में स्थित दैवीय शक्ति उद्घोष कर मार्गदर्शन करती हैं कि नवरात्रि के तीसरे दिन उनके चंद्रघंटा स्वरूप को दूध या इससे बने पदार्थों को अर्पित कर प्रसाद के रूप में भक्तों को वितरित करने से वे दुखों का नाश कर देती हैं।


मां कूष्मांडा बढ़ाती हैं यश एवं आयु


ऋषि-महर्षियों के अनुसार, मां का चौथा विग्रह स्वरूप कूष्मांडा का है। नवरात्रि के चौथे दिन भक्त उनके इसी रूप की पूजा करते हैं। मंद और हल्की-सी मुस्कान मात्र से अंड को उत्पन्न करने वाली होने के कारण ही उनके इस रूप को कूष्मांडा कहा गया है। 


जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अंधकार ही अंधकार था, तब मां ने महाशून्य में मंद हास से उजाला करते हुए ‘अंड’ की उत्पत्ति की, जो बीज रूप में ब्रह्म तत्व के मिलने से ब्रह्मांड बना और यही उनका अजन्मा तथा आद्यशक्ति का रूप है। 


जीवों में उनका स्थान ‘अनाहत चक्र’ में माना गया है। नवरात्र के चौथे दिन योगीजन इसी चक्र में ध्यान लगाते हैं। कूष्मांडा मां का निवास स्थान सूर्य लोक में है, क्योंकि उस लोक में निवास करने की क्षमता और शक्ति केवल उनमें ही है। उनके स्वरूप की कांति और तेज मंडल भी सूर्य के समान ही अतुलनीय है। मां का तेज और प्रकाश दसों दिशाओं में और ब्रह्मांड के चराचर में व्याप्त है। 


मां अष्टभुजा लिए हुए हैं, उनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृत कलश, चक्र तथा गदा है और आठवें हाथ में सर्वसिद्धि और सर्वनिधि देने वाली जप माला। मां का वाहन बाघ है। संस्कृत में कूष्मांड ‘कूम्हडा’ अर्थात पेठा या सीताफल को कहा जाता है।


कैसे करें प्रसन्न : नवरात्रि के चौथे दिन मां के इस स्वरूप के समक्ष मालपुए का भोग लगाना चाहिए, तत्पश्चात इस प्रसाद को दान करें और स्वयं भी ग्रहण करें। ऐसा करने से भक्तों की बुद्धि का विकास होने के साथ ही उनके निर्णय लेने की क्षमता भी अच्छी होती है।


मां स्कंदमाता करती हैं मनोकामनाओं की पूर्ति


मां का पांचवां विग्रह स्वरूप स्कंदमाता है। उनके पार्वती स्वरूप के पुत्र हैं कुमार कार्तिकेय, जिन्हें स्कंद नाम से भी पुकारा जाता है। देव सेनापति बनकर तारकासुर का वध करने वाले तथा मयूर (मोर) को वाहन के रूप में अपनाने वाले स्कंद की माता होने के कारण ही मां के इस रूप को ‘स्कंदमाता’ के नाम से पुकारा जाता है। 


नवरात्रि के पांचवें दिन उनके इसी रूप की पूजा-अर्चना की जाती है। योगीजन इस दिन विशुद्ध चक्र में मन एकाग्र करते हैं। यही चक्र प्राणियों में उनके स्कंद स्वरूप का स्थान है। 


मां का विग्रह स्वरूप चार भुजाओं वाला है और उन्होंने गोद में भगवान स्कंद को बैठा रखा है। एक भुजा से धनुष बाणधारी, छह मुखों वाले (षडानन) बाल रूप स्कंद को पकड़ा है और दूसरी भुजा से मां भक्तों को आशीर्वाद एवं वर प्रदान करती हैं। शेष दोनों भुजाओं में कमल पुष्प है। मां का वर्ण पूरी तरह निर्मल कांति वाला सफेद है और वे कमलासन पर विराजती हैं, इसलिए उन्हें पद्मासना नाम से पूजा जाता है। मां ने वाहन के रूप में सिंह को अपनाया है। 


उनका यह विग्रह वात्सल्य से परिपूर्ण है, इसलिए उन्होंने कोई शस्त्र धारण नहीं किया। मां की उपासना से साधक को मृत्यु लोक में ही परम शांति और सुख मिलता है और वह विशुद्ध चैतन्य स्वरूप की ओर बढ़ता है।

कैसे करें प्रसन्न : नवरात्रि के पांचवें दिन मां को प्रसन्न करने के लिए भक्तों को केले का भोग लगाना चाहिए या फिर इसे प्रसाद के रूप में दान करना चाहिए। इससे माता अपने भक्त को परिवार में सुख-शांति का वरदान प्रदान करती हैं।


मां कात्यायनी दिलाती हैं विजय


सुनहले और चमकीले वर्ण, चार भुजाएं और रत्नाभूषणों से अलंकृत मां का छठा स्वरूप कात्यायनी का है। इस रूप में मां खूंखार और झपट पड़ने वाली मुद्रा में सिंह पर सवार हैं। मां का आभामंडल विभिन्न देवों के तेज अंशों से मिश्रित इंद्रधनुषी छटा देता है। मां का यह छठा विग्रह रूप है, जिसकी पूजा-अर्चना नवरात्र के छठे दिन भक्तगण करते हैं। 


प्राणियों में मां का वास ‘आज्ञा चक्र’ में होता है और योग साधक इस दिन अपना ध्यान आज्ञा चक्र में ही लगाते हैं। मां के इस स्वरूप में उनकी एक ओर की दोनों भुजाएं क्रमश: अभय देने वाली मुद्रा में और वर देने वाली मुद्रा में रहती हैं। दूसरी ओर की एक भुजा में मां ने चंद्रहास खड्ग (तलवार) धारण किया है और दूसरी भुजा में कमल का फूल धारण किया है। 


एकाग्रचित और पूर्ण समर्पित भाव से मां की उपासना करने वाला भक्त बड़ी सहजता से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष आदि चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति कर लेता है और इस लोक में रहकर भी अलौकिक तेज तथा प्रभाव पा लेता है। उसके रोग, शोक, संताप और भय के साथ-साथ जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। मां अमोघ फल देकर भक्त को प्रत्येक क्षेत्र में विजय दिलाती हैं।


कैसे करें प्रसन्न : नवरात्रि के छठे दिन मां को प्रसन्न करने के लिए मधु यानी शहद का भोग लगाकर उनके इस रूप का ध्यान, स्तवन करने से मां साधक को सुंदर यौवन प्रदान करती हैं, साथ ही लक्ष्मी के रूप में उसके घर में वास भी करती हैं।


मां कालरात्रि हरती हैं ग्रह-बाधा

घने अंधेरे की तरह एकदम गहरा काला रंग, तीन नेत्र, बिखरे हुए बाल, यही मां का सातवां विग्रह स्वरूप यानी कालरात्रि रूप है। मां के तीनों नेत्र ब्रह्मांड के गोले की तरह गोल हैं। उनके गले में विद्युत जैसी छटा देने वाली सफेद माला सुशोभित है। मां की चार भुजाएं हैं, जिनसे वे भक्तों को शुभ फल प्रदान करती हैं। इसी कारण मां को ‘शुंभकरी’ भी कहा जाता है। मां का वाहन गधा है। 

साधकों द्वारा उनका स्मरण सहस्त्रार चक्र में ध्यान केंद्रित करके किया जाता है। मां ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों की प्राप्ति के लिए राह खोल देती हैं और साधक को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। मां की चार भुजाओं में से दो में शस्त्र हैं- एक में चंद्रहास खड्ग और दूसरी में कांटेदार कटार। दूसरी ओर के एक हाथ अभय मुद्रा में और दूसरा वर मुद्रा में रखकर मां भक्तों को वर प्रदान करती हैं। 

मां का ऊपरी तन लाल रक्तिम वस्त्र से और नीचे का आधा भाग बाघ के चमड़े से ढका रहता है। मां नकारात्मक, तामसी और राक्षसी प्रवृत्तियों का विनाश करके भक्तों को दानव, दैत्य, राक्षस, भूत-प्रेत आदि भयावह शक्तियों से उनकी रक्षा कर अभय प्रदान करती हैं। उनकी उपासना से प्रतिकूल ग्रहों द्वारा उत्पन्न होने वाली बाधाएं भी समाप्त होती हैं और भक्त अग्नि, जल, जंतु, शत्रु आदि के भय से मुक्त हो जाते हैं।

कैसे करें प्रसन्न : नवरात्रि के सातवें दिन इस रूप की पूजा-अर्चना कर गुड़ का नैवेद्य अर्पित करने से मां साधक को शोकमुक्त रहने का वरदान देती हैं और भक्तों के घर दरिद्रता भी नहीं आने देती हैं।


मां महागौरी दिखाती हैं सफलता की राह


नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी रूप में रहती हैं। इस दिन कंद, फूल, चंद्र अथवा श्वेत शंख जैसे निर्मल गौर वर्ण वाले आठवें विग्रह स्वरूप का भक्त दर्शन-पूजन करते हैं। मां के इस स्वरूप की आयु आठ वर्ष की है। उनके समस्त वस्त्राभूषण और वाहन भी हिम के समान सफेद या गौर रंग वाला वृषभ अर्थात बैल है। मां की चार भुजाएं हैं, जिनमें से एक हाथ अभय मुद्रा में अभय प्रदान करता है और दूसरा त्रिशूल थामे है। दूसरी ओर के एक हाथ में डमरू और दूसरा हाथ वर मुद्रा में रहकर सभी को आशीर्वाद प्रदान करता है। 

मां मनुष्य की प्रवृत्ति सत की ओर प्रेरित करके असत का विनाश करती हैं। मां का यह शक्ति विग्रह भक्तों को तुरंत और अमोघ फल प्रदान करता है। मां की कृपा से साधक पवित्र एवं अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है और उसे अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। 

पार्वती रूप में जब मां ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की, तब उनका शरीर क्षीण और वर्ण काला पड़ गया। अंत में उनकी तपस्या से संतुष्ट होकर जब भगवान शिव ने जटा से निकलती पवित्र गंगाधारा का जल उन पर डाला तो मां विद्युत प्रभा के समान अति कांतिमान और गौर वर्ण की हो गईं। तभी से मां के इस स्वरूप का नाम महागौरी पड़ा।

कैसे करें प्रसन्न : नवरात्रि के आठवें दिन मां के इस रूप का ध्यान कर पूजा-अर्चना करने और श्रीफल (नारियल) का भोग लगाने से साधकों को मां सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं। इसके साथ ही इस दिन नारियल को सिर से घुमाकर बहते हुए जल में प्रवाहित करने से हर प्रकार की बाधा दूर हो जाती है।


मां सिद्धिदात्री देती हैं सिद्धि और मोक्ष


मां की नवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। अपने इस विग्रह स्वरूप से मां अपने भक्तों को ब्रह्मांड की सभी सिद्धियां प्रदान करती हैं। भगवान शिव ने भी उनके इसी रूप की कृपा से सिद्धियों को प्राप्त किया था, जिसके फलस्वरूप भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ और वे लोक में अर्द्धनारीश्वर के रूप में स्थापित हुए। 


नवरात्रि पूजन के नवें दिन भक्त और योगी साधक मां के इसी रूप की शास्त्रीय विधि-विधान से पूजा करते हैं, जो कि चतुर्भुज और सिंहवाहिनी हैं। गति के समय मां सिंह पर तथा अचला रूप में कमल पुष्प के आसन पर बैठती हैं। मां के एक ओर के एक हाथ में चक्र और दूसरे हाथ में गदा रहता है। वहीं दूसरी ओर के एक हाथ में शंख और दूसरे हाथ में कमल पुष्प विद्यमान रहता है। 

नवरात्र के सिर्फ नवें दिन भी यदि कोई भक्त एकाग्रता और निष्ठा से मां की विधिवत पूजा करता है तो उसे सभी सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं। सृष्टि में भक्त के लिए कुछ भी असंभव नहीं रहता और शत्रुओं पर पूर्ण विजय प्राप्त करने का सामर्थ्य उसमें आ जाता है। साथ ही मां की कृपा प्राप्त करने वाले साधक की सभी लौकिक तथा पारलौकिक कामनाओं की पूर्ति हो जाती है।

कैसे करें प्रसन्न : नवरात्रि के नवें दिन मां की नवीं शक्ति की पूजा-अर्चना कर उन्हें विभिन्न प्रकार के अनाज, जैसे कि हलवा, पूरी, चना, खीर, पुए आदि का भोग लगाने से मां जीवन में सभी प्रकार की सुख-शांति का वरदान देती हैं।

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