हमारे हिन्दू धर्म में यह मान्यता है कि पितृपक्ष में 16 दिनों की अवधि के दौरान सभी पूर्वज अपने परिजनों को आशीर्वाद देने के लिए पृथ्वी पर आया करते हैं। उसी वजह से उन्हें प्रसन्न करने के लिए तर्पण, श्राद्ध और पिंड दान जैसे कार्य किये जाते हैं। कहा जाता है कि जो लोग अपने पूर्वजों का पिंडदान नहीं करते हैं, उन्हें पितृऋण और पितृदोष लगता है। इसलिए इस दौरान यह कार्य अनिवार्य रूप से करना चाहिए।
हिंदू धर्म में पितृपक्ष के दौरान पितरों की पूजा और पिंडदान करने का बहुत महत्व माना गया है। कहा जाता है कि पितृपक्ष में हमारे पित्र धरती पर आते हैं और पिंडदान, तर्पण से प्रसन्न होकर अपने पुत्र-पौत्रों को आशीर्वाद देने का काम करते हैं। श्राद्ध में पिंडदान, तर्पण के अलावा ब्राह्मणों, जीवों और पशु-पक्षियों को भी भोजन कराने का बहुत अधिक महत्व है। कहा जाता है कि हमारे पूर्वज पशु-पक्षियों के माध्यम से अपना आहार ग्रहण करते हैं और तृप्त होते हैं।
पितरों का पशु-पक्षियों से सम्बन्ध
ऐसा माना जाता है कि पितृपक्ष में हमारे पितृ धरती पर आकर हमें आशीर्वाद देने का कार्य करते हैं। ये पितृ पशु पक्षियों के माध्यम से हमारे निकट आने की कोशिश करते हैं। जिन जीवों तथा पशु पक्षियों के माध्यम से पितृ आहार ग्रहण करते हैं वे हैं - गाय, कुत्ता, कौवा और चींटी। श्राद्ध के समय इनके लिए भी आहार का एक अंश निकाला जाता है, तभी श्राद्ध कर्म पूर्ण माना जाता है। श्राद्ध करते समय पितरों को अर्पित करने वाले भोजन के पांच अंश निकाले जाते हैं- गाय, कुत्ता, चींटी, कौवा और देवताओं के लिए। इन पांच अंशों का अर्पण करने को पञ्च-बलि कहा जाता है।
ऐसे करें पञ्च बलि
सबसे पहले भोजन की तीन आहुति कंडा जलाकर दी जाती है। श्राद्ध कर्म में भोजन के पूर्व पांच जगह पर अलग अलग भोजन का थोड़ा- थोड़ा अंश निकाला जाता है। फिर इसे क्रम से गाय, कुत्ता, चींटी और देवताओं के लिए पत्ते पर तथा कौवे के लिए भूमि पर अंश रखा जाता है। इसके बाद प्रार्थना की जाती है कि इनके माध्यम से हमारे पित्र प्रसन्न हों और अपना आहार ग्रहण करें।
इन पांच जीवों का ही महत्व क्यों ?
हमारे धर्म में ऐसी मान्यता है कि कुत्ता जल तत्त्व का प्रतीक है, चींटी अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करती है, कौवा वायु तत्व का प्रतीक है, वहीं गाय को पृथ्वी तत्त्व का और देवता आकाश तत्व का प्रतीक कहा जाता हैं। इस प्रकार इन पाँचों को आहार देकर हम पञ्च तत्वों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। केवल गाय में ही एक साथ पांच तत्व पाए जाते हैं। इसलिए पितृपक्ष में गाय की सेवा विशेष फलदायी होती है। मात्र गाय को चारा खिलने और सेवा करने से पित्रों को तृप्ति मिलती है। साथ ही श्राद्ध कर्म सम्पूर्ण होता है।
गाय की सेवा जरूरी
पितृपक्ष में गाय की सेवा से पितरों को मुक्ति मोक्ष मिलता है। साथ ही अगर गाय को चारा खिलाया जाय तो वह ब्राह्मण भोज के बराबर होता है। पितृपक्ष में अगर पञ्च-गव्य का प्रयोग किया जाय तो पितृदोष से मुक्ति मिल सकती है। साथ ही गौदान करने से हर तरह के ऋण और कर्म से मुक्ति मिल जाती है।
1. श्राद्ध कर्म के दौरान लोहे का बर्तन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष में लोहे के बर्तन इस्तेमाल करने से परिवार पर अशुभ प्रभाव पड़ता है। इस दौरान पीतल, तांबा या अन्य धातु से बने बर्तनों का इस्तेमाल करना चाहिए।
2. पितृपक्ष में श्राद्ध के दौरान तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इसके अलावा दूसरों के घर का बना खाना और पान का सेवन नहीं करना चाहिए। श्राद्ध पक्ष में लहसुन, प्याज से बना भोजन नहीं करना चाहिए। इस दिन ब्राह्माणों को भोजन करवाना शुभ माना जाता है।
3. पितृपक्ष में किसी तरह का कोई शुभ कार्य नहीं होता है। किसी तरह की नई चीज को नहीं खरीदना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दौरान अपने पूर्वजों को याद करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए पूजा करते हैं।
4. पितृपक्ष में जो भी पुरुष श्राद्ध कर्म करते हैं, उन्हें इस दौरान बाल और दाढ़ी नहीं कटवाना चाहिए। मान्यता है कि बाल और दाढ़ी कटवाने से धन की हानि होती है, क्योंकि यह शोक का समय माना जाता है।
5. पितृपक्ष में घर पर सात्विक भोजन बनाना सबसे उत्तम होता है। अगर आपको पितरों की मृत्यु तिथि याद है तो पिंडदान भी करना चाहिए। पितृपक्ष के आखिरी दिन पिंडदान और तर्पण करना चाहिए।
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