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पितृपक्ष : पूर्वजों के बहाने उनके पुण्यकर्मों को स्मरण करने का पर्व

 

हिंदुओं के श्राद्ध (पितृपक्ष) मनाने के पीछे बहुत महत्वपूर्ण वैज्ञानिक कारण हैं। इसीलिए हमारा यह पर्व भी संपूर्ण वैज्ञानिक, प्रकृति अनुकूल और हमारे महान पूर्वजों के पुण्यकर्मों को स्मरण करने के निमित्त एक बहुमूल्य आयोजन है।

साहित्यकार व उत्तर मध्य रेलवे में कार्यरत मुख्य दावा अधिकारी शैलेन्द्र कपिल ने  पितृपक्ष के संस्कारों को निभाते हुए प्रयागराज में अपने स्वर्गीय पिता केदार नाथ शर्मा के जन्म दिवस पर एक काव्य संध्या का आयोजन किया। जिसकी अध्यक्षता अधिकारी / उ.म.रेलवे के पूर्व मुख्य कार्मिक ओमप्रकाश मिश्रा ने की।

 काव्य संध्या का संचालन डा. शिवम शर्मा, मुख्य जनसम्पर्क अधिकारी/ उ.म.रेलवे ने किया। काव्य संध्या में यातायात/ पश्चिम मध्य रेलवे जबलपुर के उप मुख्य सतर्कता अधिकारी बसंत लाल शर्मा, मुख्य विद्युत लोको इंजीनियर पी.डी. मिश्रा, प्रयागराज के वरिष्ठ मंडल वाणिज्य प्रबंधक विपिन सिंह, शैलेन्द्र जय, गजलकार, प्रयागराज एवं अनिल अरोराने पिता विषय पर अपने उद्गार व्यक्त किये एवं अपने-अपने दृष्टिकोणों को काव्यात्मक अभिव्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया। 

Pitrupaksha 2021 Tribute and remebering

ओम प्रकाश मिश्रा ने अपने भाव इस तरह व्यक्त किये-

“पिता, तुम मेरी पूरी कविता हो, यह कविता मुझे आपकी तरह,
उँगली पकड़ कर सब जगह ले जाती है नित्य”।।


विपिन कुमार सिंह ने कहा...

“तमाम उम्र अकेले रहे हैं, हमारे साथ में मेले रहे हैं”।।”

बसंत लाल शर्मा के शब्दों में....

‘‘खुशियाँ हमको बाँद दीं, कष्ट सहे खुद मौन।
पिता सरीखा देवता, हो सकता है कौन।।
बात मूल की छोड़ दो, चुका न सकता सूद।
बिना पिता कुछ भी नहीं, मेरा यहाँ वजूद”।।

डा. शिवम शर्मा ने मुजफ्फर रज्मी के जानिब से कहा....
‘‘इस राज को क्या जानें साहिल के तमाशाई।
हम डूबे वे समझे हैं दरिया तेरी गहराई”।।

शैलेन्द्र जय ने हालात और ख्यालात की मध्यस्धता करते हुए कहा....
‘‘हालात और बदतर हो जाते, हम भी अगर पत्थर हो जाते।
फूलों से भी लग जाती है चोट, तो क्या जय हर नश्तर हो जाते”।।

Pitrupaksha 2021 Tribute and remebering

शैलेन्द्र कपिल ने अपने पिता को याद करते हुए बताया कि समाज का हर किरदार, समाज का सृजन करता है और एक शिल्पकार की तरह रोज समाज को सँवारता और उभारता है। 


हिन्दी राजभाषा के पखवाड़े के मद्देनजर उन्होंने हिन्दी को सुदृढ़ बनाने हेतु संकल्प करने का आह्वान किया और सामाजिक सरोकारों को इस तरह सम्बोधित किया...

 ‘‘कोई तो मोची बनेगा, 
कोई तो कृषक बनेगा,
कुछ न कुछ हर कोई बनेगा,
लेकिन मैं किसी किरदार से मोलभाव नहीं करूँगा”।

अपने पिता के जीवन के सरोकारों को आगे बढ़ाना संयोग मात्र नहीं है, बल्कि एक आचरण का सिलसिला है जिसे अनवरत चलते ही जाना है।

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