ऐसी है सावन के पुत्रदा एकादशी व्रत की कथा, इन मंत्रों का करना चाहिए जाप
पुत्रदा एकादशी 27 अगस्त को
बन रहा दुर्लभ संयोग
विधिपूर्वक पूजा आराधना करने से होगी हर मनोकामना पूरी
इस बार सावन मास में एकादशी का संयोग बन रहा है, जिसके कारण श्री हरी और महादेव दोनों की कृपा बरसेगी। विधिपूर्वक पूजा आराधना करने से हर मनोकामना पूरी होगी। इसके अलावा 5 अन्य योग का निर्माण भी हो रहा है, जिसमें प्रीति योग, आयुष्मान योग, रवि योग, सवार्थ सिद्धि योग और बुधादित्य योग शामिल है।
सावन पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार सुकेतुमान नाम का बड़ा ही दयालु और उदार राजा था। प्रजा भी राजा से बहुत प्रसन्न थी। राजा के राज्य में किसी चीज की कमी नहीं थी लेकिन फिर भी वह अपनी संतान न होने के चलते सदा दुखी रहते थे। राजा के ये बात सताने लगी कि उनकी मृत्यु के बाद राजपाठ कौन संभालेगा। उनका कहना था कि पुत्र के बिना उन्हें इस जीवन या किसी अन्य जीवन में सुख प्राप्त नहीं होगा।
एक बार जंगल में भ्रमण करते हुए राजा की भेंट कुछ संतों से हुई। राजा ने अपनी परेशानी उनसे कही तो ऋषियों ने राजा सुकेतुमान को सावन पुत्रदा एकादशी व्रत करने को कहा। ऋषियों के कहे अनुसार राजा ने ऐसा ही किया। इस व्रत के प्रभाव से कुछ दिनों बाद रानी गर्भवती हुईं और नौ माह बाद उन्होंने एक सुयोग्य, स्वस्थ पुत्र को जन्म दिया। तब से ये व्रत उन दंपतियों के जरिए किया जाने लगा जो संतान, विशेष रूप से पुत्र की कामना करते हैं।
सावन पुत्रदा एकादशी व्रत नियम
1.एकादशी व्रत के दिन व्रती को सुबह देर तक नहीं सोना चाहिए। दोपहर और रात्रि में भी जागरण करें। विष्णु जी की भक्ति में लीन रहें।
2.एकादशी के दिन मन और कर्म से शुद्धता बनाए रखें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
3.किसी को अपशब्द न बोलें, मन में भी बुरे विचार न लाएं और क्रोध न करें।
4.एकादशी व्रत के दिन चावल खाना और बनाना दोनों वर्जित हैं। इससे पाप के भागी बनते हैं।
5.इस दिन घर में सात्विक भोजन ही बनाना चाहिए. व्रति को निराहार व्रत रखकर पूजा करनी चाहिए।
6. एकादशी व्रत के दिन तुलसी में जल न चढ़ाएं. इस दिन तुलसी माता विष्णु जी के लिए निर्जल व्रत रखती हैं।
विष्णु जी के बीज मंत्र
ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम:।
ॐ क्लीं बृहस्पतिये।
ॐ श्री बृहस्पतिये नमः।
ॐ ग्राम ग्रीम ग्रामः गुरवे नमः।
ॐ गुरवे नमः।
ॐ बृहस्पतिये नमः।
विष्णु पुत्र प्राप्ति मंत्र
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय।
विष्णु प्रार्थना मंत्र
शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम् ।
लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम् ॥
यं ब्रह्मा वरुणैन्द्रु रुद्रमरुत: स्तुन्वानि दिव्यै स्तवैवेदे: ।
सांग पदक्रमोपनिषदै गार्यन्ति यं सामगा: ।
ध्यानावस्थित तद्गतेन मनसा पश्यति यं योगिनो
यस्यातं न विदु: सुरासुरगणा दैवाय तस्मै नम: ॥
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