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कुछ ऐसी है महाराज दसरथ जी के जन्म की कथा, क्या जानते हैं आप

उस कमल को प्राप्त करने के लिए राजा अज सरोवर में चले गए किंतु यह क्या राजा अज जितना भी उस कमल के पास जाते वह कमल उनसे उतना ही दूर हो जाता और राजा अज उस कमल को नहीं पकड़ पाया।
 

दसरथ के पिता से भी होने वाला लंकापति रावण का युद्ध

जानिए कैसी है महाराज दसरथ के जन्म की कहानी

भगवान शिव के भक्त थे राजा अज

एक बार राजा अज दोपहर की वंदना कर रहे थे। उस समय लंकापति रावण उनसे युद्ध करने के लिए आया और दूर से उनकी वंदना करना देख रहा था। राजा अज ने भगवान शिव की वंदना की और जल आगे अर्पित करने की जगह पीछे फेंक दिया।

 

यह देखकर रावण को बड़ा आश्चर्य हुआ। और वह युद्ध करने से पहले राजा अज के सामने पहुंचा तथा पूछने लगा कि हमेशा वंदना करने के पश्चात जल का अभिषेक आगे किया जाता है, न कि पीछे, इसके पीछे क्या कारण है। राजा अज ने कहा जब मैं आंखें बंद करके ध्यान मुद्रा में भगवान शिव की अर्चना कर रहा था, तभी मुझे यहां से एक योजन दूर जंगल में एक गाय घास चरती हुई दिखी और मैंने देखा कि एक सिंह उस पर आक्रमण करने वाला है तभी मैंने गाय की रक्षा के लिए जल का अभिषेक पीछे की तरफ किया।

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रावण को यह बात सुनकर बड़ा ही आश्चर्य हुआ। रावण ऐक योजन दूर वहाँ गया और उसने देखा कि एक गाय हरी घास चर रही है जबकि शेर के पेट में कई बाण लगे हैं। अब रावण को विश्वास हो गया कि जिस महापुरुष के जल से ही बाण बन जाते हैं और बिना किसी लक्ष्य साधन के लक्ष्य बेधन हो जाता है। ऐसे वीर पुरुष को जीतना बड़ा ही असंभव है और वह उनसे बिना युद्ध किए ही लंका लौट जाता है।

एक बार राजा अज जंगल में भ्रमण करने के लिए गए थे तो उन्हें एक बहुत ही सुंदर सरोवर दिखाई दिया उस सरोवर में एक कमल का फूल था जो अति सुंदर प्रतीत हो रहा था।

 

उस कमल को प्राप्त करने के लिए राजा अज सरोवर में चले गए किंतु यह क्या राजा अज जितना भी उस कमल के पास जाते वह कमल उनसे उतना ही दूर हो जाता और राजा अज उस कमल को नहीं पकड़ पाया।

अंततः आकाशवाणी हुई कि हे राजन आप नि:संतान हैं आप इस कमल के योग्य नहीं है इस भविष्यवाणी ने राजा अज के हृदय में एक भयंकर घात किया था।

राजा अज अपने महल में लौट आए और चिंता ग्रस्त रहने लगे क्योंकि उन्हें संतान नहीं थी जबकि वह भगवान शिव के परम भक्त थे।

 

भगवान शिव ने उनकी इस चिंता को ध्यान में लिया। और उन्होंने धर्मराज को बुलाया और कहा तुम किसी ब्राह्मण को अयोध्या नगरी पहुँचाओ जिससे राजा अज को संतान की प्राप्ति के आसार हो। दूर पार एक गरीब ब्राह्मण और ब्राह्मणी सरयू नदी के किनारे कुटिया बनाकर रहते थे । एक दिन वे ब्राह्मण राजा अज के दरबार में गए और उनसे अपनी दुर्दशा का जिक्र कर भिक्षा मांगने लगे।

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राजा अज ने अपने खजाने में से उन्हें सोने की अशर्फियां देनी चाही, लेकिन ब्राह्मण नहीं कहते हुए मना कर दिया कि यह प्रजा का है। आप अपने पास जो है, उसे दीजिए तब राजा अज ने अपने गले का हार उतारा और ब्राह्मण को देने लगे किंतु ब्राह्मण ने मना कर दिया कि यह भी प्रजा की ही संपत्ति है।

इस प्रकार राजा अज को बड़ा दुख हुआ कि आज एक गरीब ब्राह्मण उनके दरबार से खाली हाथ जा रहा है तब राजा अज शाम को एक मजदूर का बेश बनाते हैं और नगर में किसी काम के लिए निकल जाते हैं।

चलते - चलते वह एक लौहार के यहाँ पहुंचते हैं और अपना परिचय बिना बताए ही वहां विनय कर काम करने लग जाते हैं पूरी रात को हथौड़े से लोहे का काम करते हैं जिसके बदले में उन्हें सुबह एक टका मिलता है।

राजा एक टका लेकर ब्राह्मण के घर पहुंचते हैं लेकिन वहां ब्राह्मण नहीं था उन्होंने वह एक टका ब्राह्मण की पत्नी को दे दिया और कहा कि इसे ब्राह्मण को दे देना ।

जब ब्राह्मण आया तो ब्राह्मण की पत्नी ने वह टका ब्राह्मण को दिया और ब्राह्मण ने उस टका को जमीन पर फेंक दिया तभी एक आश्चर्यजनक घटना हुई ब्राह्मण ने जहां टका फेंका था। वहां गड्ढा हो गया ब्राह्मण ने उस गढ्ढे को और खोदा तो उसमें से सोने का एक रथ निकला तथा आसमान में चला गया इसके पश्चात ब्राह्मण ने और खोदा तो दूसरा सोने का रथ निकला और आसमान की तरफ चला गया इसी प्रकार से, नौ सोने के रथ निकले और आसमान की तरफ चले गए और जब दसवाँ रथ निकला तो उस पर एक बालक था और वह रथ जमीन पर आकर ठहर गया।

ब्राह्मण उस बालक को लेकर राजा अज के दरबार में पहुंचे और कहा राजन - इस पुत्र को स्वीकार कीजिए यह आपका ही पुत्र है जो एक टका से उत्पन्न हुआ है। तथा इसके साथ में सोने के नौ रथ निकले जो आसमान में चले गए जबकि यह बालक दसवें रथ पर निकला इसलिए यह रथ तथा पुत्र आपका है। इस प्रकार से दशरथ जी का जन्म हुआ था।

महाराज दशरथ का असली नाम मनु था और ये दसों दिशाओं में अपना रथ लेकर जा सकते थे। इसीलिए दशरथ नाम से प्रसिद्ध हुये।

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