कैसे हुआ गंगा नदी का जन्म और क्यों हुआ गंगा नदी का धरती पर प्रवेश
हम अक्सर अपने पूर्वजो से कई किस्से कहानिया सुनते है और ऐसी बहुत सी कथाये भी है जिनके बारे में केवल हमारे बुजुर्ग ही हमे बता पाते है । वैसे आज कल के समय में कथाये बुजुर्गो से कम और गूगल से ज्यादा सुनने को मिलती है। ये तो थी एक समझदारी भरी सोच की राय , पर आज हम भी आपको ऐसी ही एक कथा के बारे में बताने जा रहे है जिसे पढ़ने के बाद आप हमेशा भारत के इतिहास को जानने के लिए उत्सुक रहेगे। जी हा हमारे देश की सबसे पवित्र और पुरानी नदी के बारे में तो सब जानते ही होंगे। वो है गंगा नदी की कहानी जो आज भी पवित्र और शुद्ध है।
आज भी बहुत से ऐसे लोग जो अपने पाप धोने गंगा नदी में जाते है और इतना ही नहीं गंगा नदी का जल इतना पवित्र है कि लोग इसे अपने घरो में संभल कर रखते है। वैसे इसका प्रयोग घर को शुद्ध रखने में भी किया जाता है। गंगा को स्वर्ग की नदी के समान समझ जाता है। शायद इसलिए इसे गंगा माता भी कह कर पुकारा जाता है । ये अकेली ऐसी नदी है जिसे भगवान् की तरह पूजा जाता है । पर क्या आप जानते है कि ये नदी जितनी गहरी है इसके पैदा होने का रहस्य भी उतना ही गहरा है। अर्थात गंगा नदी उत्पन्न कैसे हुई और इसका प्राचीन इतिहास क्या है इसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते होंगे । तो चलिए हम आपको बताते है इस प्राचीन नदी का अनोखा इतिहास।
गंगा की उत्पत्ति का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। हिन्दू धर्म में गंगा की उत्पत्ति की कहानी दो कथाओं में बताई गयी है। आइये जानते है ये कथाएं- कहते है बलि नाम का एक राजा था जो बहुत बहादुर था । अपनी बहादुरी के चलते उन्होंने स्वर्ग के राजा इंद्र को युद्ध के लिए ललकारा । पर उसकी बहादुरी देख कर भगवान् इंद्र को लगा कि यदि यह जीत गया तो स्वर्ग का सारा राज्य हथिया कर ले जायेगा।
गौरतलब है कि राजा बलि बहुत बड़े विष्णु भक्त थे । अब दुविधा देखिये कि इंद्र देव सहायता के लिए भगवान् विष्णु के पास ही गए और तब विष्णु जी ने इंद्र देव जी की सहायता की । विष्णु जी उस समय अपने असली रूप में नहीं बल्कि वामन ब्राह्मण का अवतार लेकर राजा बलि के राज्य में गए । पर तब राजा बलि अपने राज्य की समृद्धि के लिए एक यज्ञ कर रहे थे । फिर भी विष्णु जी उसी अवतार में राजा बलि के पास गए और उनसे दान मांग लिया।
विष्णु जी ने बहुत ही चालाकी से राजा बलि से तीन कदम ज़मीन मांग ली । पर आश्चर्य की बात ये है कि राजा बलि जानते थे कि वो भगवान् विष्णु है जो ब्राह्मण अवतार में आये है । फिर भी उन्होंने सोचा कि वो किसी ब्राह्मण को अपने द्वार से खाली हाथ नहीं जाने दे सकते ।इसलिए उन्होंने तीन कदम ज़मीन देने के लिए हाँ कर दी। पर जैसे ही विष्णु जी ने पहला कदम रखा तो उनका पैर इतना बड़ा हो गया कि सारी ज़मीन एक ही बार में नाप ली । फिर उन्होंने दूसरा कदम आकाश की तरफ रखा तो सारा आसमान नाप लिया। पर जब तीसरे कदम की बारी आयी तो विष्णु जी ने राजा बलि से पूछा कि ये तीसरा कदम कहाँ रखू तो राजा बलि ने बड़ी उदारता से कहा प्रभु मेरे सर पर रख लीजिये। जैसे ही विष्णु जी ने उसके सर पर कदम रखा तो वो सीधा पाताल लोक में ज़मीन के नीचे समा गया जहाँ केवल असुरो का शासन था ।
इस कथा में ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान् विष्णु ने आकाश की तरफ अपना कदम रखा था तब खुद ब्रह्मा जी ने उनके पाँव धुलाये थे और उसका सारा जल एक कमंडल में इकट्ठा कर लिया । इसी जल को गंगा का नाम भी दिया गया और यही वजह है कि गंगा को ब्रह्मा की पुत्री भी कहा जाता है । वो कुमंडल इतना बड़ा था कि उसमे इकठ्ठा किया हुआ जल एक नदी जितना विशाल था । इस तरह गंगा नदी का जन्म हुआ।
गंगा नदी का धरती पर प्रवेश
गंगा नदी का इतिहास काफी ज्यादा गौरवशाली रहा है.। इस कथा को पढ़ने के बाद ये तो पता चल गया कि गंगा नदी हमेशा से पृथ्वी पर नहीं थी बल्कि उन्हें पृथ्वी पर लाया गया था क्योंकि उनका जन्म तो स्वर्गलोक में हुआ था । तो सवाल ये उठता है कि वो इस धरतीलोक में आयी कैसे ? इसका जवाब भी हमारे पास मौजूद है। दरअसल उस युग में बहुत प्रतापी राजा हुआ करते थे और राजा बलि के बाद राजा सागर भी उन्ही में से एक थे । उस युग में राजा अपने साम्राज्य को बढ़ाने के लिए एक यज्ञ किया करते थे जिसे अश्वमेघ यज्ञ भी कहा जाता था। इसमें ऐसा होता था कि एक घोडा राज्य में छोड़ दिया जाता था और वो घोडा जिस भी राज्य से गुजरता था वो राज्य यज्ञ करने वाले राजा का हो जाता था । पर इसी बीच अगर किसी राजा ने वो घोडा पकड़ लिया तो उस राजा को यज्ञ करने वाले राजा के साथ युद्ध करना पड़ता था ।
एक बार राजा सागर ने भी ऐसा ही अश्वमेघ यज्ञ किया था और घोडा छोड़ दिया। पर उस समय भी इंद्र देव को ये भय था कि कही अगर घोडा स्वर्ग से गुजरा तो स्वर्ग का सारा राज्य राजा सागर के पास चला जायेगा और यदि कही घोडा पकड़ लिया तो राजा सागर से युद्ध जीतने की भी कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही थी । ऐसी स्थिति में इंद्र देव ने बहुत ही चालाकी से सोच समझ कर निर्णय लिया और भेष बदल कर घोडा पकड़ा और उसे कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया ।
राजा सागर को इस बात का पता चला कि उनका घोडा किसी ने पकड़ लिया तो उन्होंने गुस्से में अपने साठ हज़ार पुत्रो को युद्ध के लिए भेजा । कपिल मुनि अपने आश्रम में ध्यान लगा कर बैठे थे । राजा सागर के पुत्र भी घोड़े की तलाश कर रहे थे और जब उन्होंने घोडा आश्रम में देखा तो आश्रम में हुई चहल पहल से मुनि जी का ध्यान हट गया । जब राजा के पुत्रो ने मुनि जी पर घोडा पकड़ने का झूठ इलज़ाम लगाया तब मुनि जी ने गुस्से में आकर राजा के सारे पुत्रो को भस्म कर दिया । इसके बाद राजा के पुत्रो की आत्मा को शांति नहीं मिल रही थी । यही राजा सागर की कहानी का अंत हो गया !कई पीढियो के बाद उस कुल में राजा भागीरथ का जन्म हुआ । उन्होंने ये निश्चय कर लिया कि वे अपने पूर्वजो की आत्मा को जरूर शांति दिलवाएंगे । इसलिए उन्होंने भगवान् की कठोर तपस्या की और उनकी तपस्या से खुश होकर भगवान् विष्णु ने राजा भागीरथ को अपने दर्शन दिए ।
भागीरथ ने गंगा नदी को धरती पर लाने की प्रार्थना की ! दरअसल राजा भागीरथ के पूर्वजो की आत्मा को शांति तभी मिल सकती थी जब उनकी अस्थियां गंगा नदी में बहाई जाये। इसलिए राजा भागीरथ ने भगवान् विष्णु से ये वरदान माँगा था। पर भगवान् विष्णु ने कहा कि गंगा बहुत ही क्रूर स्वाभाव की है पर फिर भी वो बहुत मुश्किल से धरती पर आने के राज़ी हो गयी । पर मुश्किल ये थी कि गंगा नदी का प्रवाह इतना ज्यादा था कि यदि वो धरती पर आती तो सारी धरती तूफान में बह जाती और नष्ट हो जाती ! ऐसे में भगवान् विष्णु ने शिव जी से प्रार्थना की कि वो गंगा को अपनी जटाओं में बांध कर काबू करे ताकि धरती को कोई नुकसान न हो।
जब गंगा बहुत तीर्व गति से धरती पर उतरी तब चारो तरफ धरती पर तूफान सा छा गया। ऐसे में भगवान् शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में समा कर एक पतली धार के समान धरती पर उतारा । इस तरह गंगा का धरती पर प्रवेश हुआ ।अगर देखा जाये तो राजा भगीरथ के कारण गंगा नदी धरती पर आयी इसलिए उसे भागीरथी भी कहा जाता है ।
चंदौली जिले की खबरों को सबसे पहले पढ़ने और जानने के लिए चंदौली समाचार के टेलीग्राम से जुड़े।*