मुहर्रम की दूसरी मजलिस में याद किया गया करबला का बलिदान

देश और इंसानियत के लिए कुर्बानी इंसान का फ़र्ज़
मौलाना मोहम्मद मेहदी ने की तकरीर
सिकंदरपुर की अंजुमन अब्बासिया ने नौहाख़्वानी और मातम पेश किया
चंदौली नगर के अजाख़ाना-ए-रज़ा में शुक्रवार को मुहर्रम की दूसरी मजलिस बड़ी श्रद्धा और ग़मगीन माहौल में सम्पन्न हुई। मुहर्रम की दूसरी मजलिस में करबला का बलिदान याद किया गया।
इस मजलिस को संबोधित करते हुए मौलाना मोहम्मद मेहदी ने कहा कि "देश और इंसानियत के लिए बलिदान देना इंसान का फ़र्ज़ है। वही व्यक्ति समाज का सच्चा नायक बनता है जो अपने आराम, इच्छाओं और जीवन को मानवता की भलाई के लिए कुर्बान कर देता है।"

करबला की कुर्बानी बना इंसानियत का प्रतीक
मौलाना ने इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए कहा कि यह बलिदान किसी सत्ता या स्वार्थ के लिए नहीं, बल्कि सत्य, धर्म और इंसानियत की रक्षा के लिए था। उन्होंने कहा कि "मुहर्रम की दूसरी तारीख ऐतिहासिक है, क्योंकि इसी दिन इमाम हुसैन अपने परिवार और साथियों के साथ करबला पहुंचे थे। वहीं से संघर्ष, सब्र और सच्चाई की वो मिसाल शुरू हुई, जो आज तक पूरी दुनिया को राह दिखा रही है।"

हिंदुस्तानी संस्कृति की तारीफ़
मौलाना मेहदी ने कहा कि “जब चौदह सौ साल पहले यज़ीद का अत्याचार बढ़ रहा था, तो इमाम हुसैन ने हिंदुस्तान जैसे शांति प्रिय देश में आने की इच्छा जताई थी। यह इस बात का प्रमाण है कि भारत की सरज़मीन हमेशा से न्याय, समभाव और मानवता की प्रतीक रही है।”
नौहाख़्वानी और शायरी से गूंजा अजाख़ाना
मजलिस में बनारस की अंजुमन-ए-जव्वादिया और सिकंदरपुर की अंजुमन अब्बासिया ने नौहाख़्वानी और मातम पेश किया। वहीं प्रसिद्ध शायर मायल चंदौलवी ने सोज़ख़्वानी कर इमाम हुसैन और उनके कारवां को खिराजे अकीदत पेश किया। मिर्जापुर से आए शहंशाह मिर्जापुरी और लखनऊ के वकार सुल्तानपुरी ने अपने रूहानी कलाम के माध्यम से करबला के दर्दनाक मंजरों को शब्दों में पिरोया, जिससे माहौल भावुक हो गया और मजलिस में सन्नाटा छा गया।
अलम और ताबूत का जुलूस 5 मुहर्रम को
सैम हॉस्पिटल के निदेशक डॉ. सैयद गजन्फर इमाम ने बताया कि 5 मुहर्रम को अजाख़ाना-ए-रज़ा से अलम और ताबूत का पारंपरिक जुलूस निकाला जाएगा। इस मौके पर आस-पास के जिलों से हजारों की संख्या में अज़ादार शिरकत करेंगे।
प्रमुख अज़ादार रहे उपस्थित
इस अवसर पर डॉ. सैयद गजन्फर इमाम, मुदस्सिर, शकील, सरवर, साजिद, सफदर अली, मुस्तफा, कौसर अली, रेयाज़ अहमद सहित कई गणमान्य अज़ादार उपस्थित रहे।
मजलिस में शांति, समर्पण और इंसानियत के पैग़ाम के साथ करबला की कुर्बानी को श्रद्धांजलि दी गई।
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