श्राद्ध पक्ष 2023 : पितरों के रूठने पर मिलते हैं जीवन में कई कष्ट, जरूर करें श्राद्ध-तर्पण
दैहिक, दैविक और भौतिक तीनों तापों से मुक्ति का करें उपाय
96 अवसरों पर श्राद्ध-तर्पण के मौके
जानिए कब व किस दिन करना चाहिए श्राद्ध
पितृ पक्ष 2023 के लिए खास जानकारी
दैहिक, दैविक और भौतिक तीनों तापों से मुक्ति पाने के लिए श्राद्ध से बढ़कर कोई दूसरा उपाय नहीं कहा जाता है। अतः मनुष्य को यत्न पूर्वक श्राद्ध करके इनसे मुक्ति पाने की कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए कई तरह के तौर तरीके हैं।
इस साल पितृ पक्ष का आरंभ 29 सितंबर से हो रहा है और यह 14 अक्टूबर तक चलने वाला है। पंचांग के अनुसार, पितृ पक्ष का आरंभ भाद्रपद मास की पूर्णिमा के दिन हो जाता है और समापन आश्विन मास की अमावस्या के दिन होता है। इस अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या भी कहा जाता है। इसके अगले दिन से नवरात्र का शुभारंभ हो जाता है।
आपको बता दें कि पितरों का माह श्राद्धपक्ष भादों पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक मनाया जाता है। भगवान् ब्रह्मा ने यह पक्ष पितरों के लिए ही बनाया है। सूर्यपुत्र यमदेव के बीस हज़ार वर्ष तक घोर तपस्या करने के फलस्वरूप भगवान शिव ने उन्हें यमलोक और पितृलोक का अधिकारी बनाया। ऐसा माना गया है की जो प्राणी वर्ष पर्यन्त पूजा-पाठ आदि नहीं करते वे अपने पितरों का केवल श्राद्ध करके ईष्ट कार्य और पुण्य प्राप्त कर कर सकते हैं।
96 अवसरों पर श्राद्ध-तर्पण के मौके
पितरों का श्राद्ध करने के लिए एक साल में 96 अवसर आते हैं। ये हैं बारह महीने की 12 अमावस्या, सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग के प्रारंभ की चार तिथियां, मनुवों के आरम्भ की 14 मन्वादि तिथियां, 12 संक्रांतियां, 12 वैधृति योग, 12 व्यतिपात योग, 15 महालय-श्राद्ध पक्ष की तिथियां, पांच अष्टका पांच अन्वष्टका और पांच पूर्वेद्युह ये श्राद्ध करने 96 अवसर हैं। अपने पुरोहित या योग्य विद्वानों से पूछकर इन पूर्ण शुभ अवसरों का लाभ उठाया जा सकता है।
कब व किस दिन करें श्राद्ध
—किसी भी माह की जिस तिथि में परिजन की मृत्यु हुई हो इस महालय में उसी संबधित तिथि में श्राद्ध करना चाहिये। कुछ ख़ास तिथियाँ भी हैं जिनमे किसी भी प्रक्रार की मृत वाले परिजन का श्राद्ध किया जाता है।
—सौभाग्यवती यानी पति के रहते ही जिनकी मृत्यु हो गयी हो, उन नारियों का श्राद्ध नवमी तिथि में किया जाता है।
—एकादशी में वैष्णव सन्यासी का श्राद्ध, चतुर्दशी में शस्त्र,आत्म हत्या, विष और दुर्घटना आदि से मृत लोगों का श्राद्ध किया जाता है।
—इसके अतिरिक्त सर्पदंश,ब्राह्मण श्राप,वज्रघात, अग्नि से जले हुए,दंतप्रहार-पशु से आक्रमण,फांसी लगाकर मृत्य, क्षय जैसे महारोग हैजा, डाकुओं के मारे जाने से हुई मृत्यु वाले प्राणी श्राद्धपक्ष की चतुर्दशी और अमावस्या के दिन तर्पण और श्राद्ध करना चाहिये। जिनका मरने पर संस्कार नहीं हुआ हो उनका भी अमावस्या को ही करना चाहिए।
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