श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की आज ही कर लीजिए तैयारी, आपको रखना होगा इन बातों का ध्यान
भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर मनायी जाती है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
अबकी बार भी धूमधाम से मनाई जाएगी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
16 अगस्त को होंगे विशेष पूजन और अनुष्ठान
हर वर्ष भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु ने मथुरा में देवकी और वासुदेव के घर आठवें पुत्र के रूप में जन्म लेकर धरती से अधर्म का नाश किया। जन्माष्टमी का यह पर्व भक्ति, प्रेम और अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है, जिसे देशभर में मंदिरों, घरों और पंडालों में उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। इस वर्ष अष्टमी तिथि 15 अगस्त की रात 11:49 बजे से शुरू होकर 16 अगस्त की रात 09:34 बजे तक रहेगी। पंचांग और परंपरा के अनुसार, जन्माष्टमी का पर्व 16 अगस्त, शनिवार को मनाया जाएगा।
जन्माष्टमी की खास पूजन विधि
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर देवी-देवताओं का ध्यान करना चाहिए। स्नान के बाद सूर्य देव को जल अर्पित कर घर या मंदिर की सफाई की जाती है। चौकी पर भगवान कृष्ण की मूर्ति या बाल स्वरूप विराजमान कर गंगाजल, पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। गोपी चंदन का तिलक लगाकर कान्हा का श्रृंगार किया जाता है, फूलमाला अर्पित की जाती है। देसी घी का दीपक जलाकर आरती और मंत्र जप होते हैं। भगवान को माखन-मिश्री, फल और विभिन्न मिठाइयों का भोग अर्पित कर सुख-शांति की प्रार्थना की जाती है। अंत में प्रसाद का वितरण होता है।
जन्माष्टमी का पौराणिक महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मथुरा का राजा कंस अपनी बहन देवकी के आठवें पुत्र से भयभीत था क्योंकि भविष्यवाणी में बताया गया था कि वही उसकी मृत्यु का कारण बनेगा। कंस ने देवकी और वासुदेव को कारागार में बंद कर दिया और उनके सभी बच्चों को जन्म के बाद मार दिया। लेकिन आठवें पुत्र के जन्म के समय ईश्वरीय चमत्कार से महल में सभी सो गए। वासुदेव ने शिशु को टोकरी में रखकर यमुना नदी पार की, जहाँ पालक माता-पिता नंद और यशोदा के घर उसे सुरक्षित रखा गया। यही शिशु बाद में भगवान कृष्ण कहलाए और कंस का वध कर अन्याय का अंत किया।
ऐसे होते हैं प्रमुख अनुष्ठान
जन्माष्टमी पर भक्त दिनभर उपवास रखते हैं और मध्यरात्रि में भगवान के जन्म के समय पूजा-अर्चना कर उपवास तोड़ते हैं। मंदिरों में भक्ति गीत और कीर्तन गाए जाते हैं। कृष्ण लीला, रासलीला और नाट्य मंचन होता है जिसमें बच्चे कृष्ण, राधा और गोपियों की वेशभूषा धारण करते हैं। माखन, दूध, दही और सूखे मेवों से बनी मिठाइयाँ भोग के रूप में चढ़ाई जाती हैं। कई स्थानों पर दही-हांडी कार्यक्रम आयोजित होते हैं जो कृष्ण के बाल्यकाल की माखन चुराने की लीला को दर्शाते हैं।
पौराणिक कथा की झलक
जब वासुदेव कृष्ण को मथुरा से गोकुल ले जा रहे थे, तब मूसलधार बारिश हो रही थी। शेषनाग ने अपने फन से शिशु की रक्षा की। यमुना नदी ने भी मार्ग देने के लिए जल स्तर कम कर दिया। दूसरी ओर, यशोदा ने एक कन्या को जन्म दिया, जिसे वासुदेव मथुरा ले आए। कंस ने जब उस कन्या को मारने का प्रयास किया, तो वह देवी दुर्गा के रूप में प्रकट हुईं और भविष्यवाणी को दोहराया।
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