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आज रखा जा रहा है विनायक चतुर्थी का व्रत, जरूर पढ़ें ये कथा

विनायक चतुर्थी व्रत के दिन इस कथा को सुनने से भक्तों के जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। यह कथा हमें सिखाती है कि भगवान गणेश अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
 

आज विनायक चतुर्थी को होती है विनायक चतुर्थी

आज है फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी

पढ़िए  विनायक चतुर्थी की कथा

हमारे हिन्दू धर्म में भगवान विनायक की पूजा का खास महत्व है। आज विनायक चतुर्थी है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा का की जाती है। वैसे तो यह हर महीने शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया विनायक चतुर्थी मनायी जाती है।

ऐसा माना जाता है कि विनायक चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा करने से भक्तों के जीवन में आने वाले सभी विघ्न और बाधाएं दूर हो जाती हैं। विनायक चतुर्थी भगवान गणेश के भक्तों के लिए पूजा के समय व्रत कथा को सुनना या पढ़ना बहुत महत्वपूर्ण होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से और व्रत कथा सुनने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।  विनायक चतुर्थी का यह पर्व ज्ञान, बुद्धि और समृद्धि का भी प्रतीक कहा जाता है।

विनायक चतुर्थी व्रत के दिन इस कथा को सुनने से भक्तों के जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। यह कथा हमें सिखाती है कि भगवान गणेश अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं और इससे संदेश मिलता है कि लोगों को अपने जीवन में हमेशा सत्य का साथ देना चाहिए। साथ ही विनायक चतुर्थी व्रत कथा सुनने से लोगों के सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है और भगवान गणेश का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।

पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि 2 मार्च को रात 09 बजकर 01 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 3 मार्च को शाम 06 बजकर 02 मिनट पर समाप्त होगी। इस दिन चन्द्रास्त रात 10 बजकर 11 मिनट पर होगा। धार्मिक मान्यता और उदयातिथि के अनुसार, विनायक चतुर्थी का व्रत 3 मार्च को ही रखा जाएगा।

विनायक चतुर्थी व्रत कथा पढ़ें
धार्मिक व पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है। पूर्वकाल में एक धर्मनीष्ठ राजा का राज किया करता था। वह राजा अत्यंत आदर्श और धर्मात्मा था। उनके राज्य में एक अत्यंत सज्जन और धर्मनिष्ठ ब्राह्मण हुआ करते थे, जिनका नाम विष्णु शर्मा था। विष्णु शर्मा का रहन सहन अत्यंत सामान्य था। उनके सात पुत्र थे और सभी पुत्र अलग अलग रहा करते थे। विष्णु शर्माजी परम गणेश भक्त थे और सदैव भगवान गणेश की संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया करते थे। परंतु अब वे वृद्धावस्था में पहुंच गये थे और उनसे गणेश चतुर्थी के व्रत का पालन करना कठिन हो रहा था, इसलिए वो चाहते थे की मेरी बहुएं मेरी जगह इस व्रत को करें।

एक दिन उन्होंने सभी पुत्रों को अपने घर आमंत्रित किया और सायंकाल के भोजन के बाद उन्होंने अपनी सभी बहुओं से यह व्रत करने की कामना व्यक्त की। विष्णुजी के कामना सुन कर सभी बहुओ ने साफ माना कर दिया इतना ही नहीं उन्होंने विष्णुजी का घोर अपमान भी किया। केवल सबसे छोटी बहु ने उनकी बात मान ली। सबसे छोटी बहु धर्मनिष्ठ और साफ मन की थी अपने ससुर को वो पिता का दर्जा देती थी। उसने पूजा के लिये लगते सभी सामान की व्यवस्था की, और ससुर के साथ खुद भी व्रत रखा और भोजन नहीं किया लेकिन अपने पिता समान ससुर को भोजन करवा दिया।

आधी रात का समय था और विष्णु शर्मा जी की तबियत अचानक से बिगड़ गई। उन्हें दस्त और उल्टियां होने लगीं। छोटी बहु ने अपना कर्तव्य निभाते हुए मल-मूत्र से ख़राब हुए ससुर जी के कपडे साफ किए और उनके शरीर को धोया और स्वच्छ किया। वो पूरी रात बिना कुछ खाये पिए ससुर जी की सेवा में जागती रही। व्रत के दौरान चंन्द्रोदय होने पर उसने स्नान किया और पूर्ण श्रद्धाभाव से श्री गणेश जी का पूजन और पाठ भी किया। उसने विधिवत पारण किया और इन कठिन परिस्थिति में भी खुद का धैर्य नहीं खोया। श्री गणेश जी पूजा और अपने पिता समान ससुर जी की सेवा पूर्ण श्रद्धाभाव से करती रही।

छोटी बहु की इस निस्वार्थ सेवा और व्रत उपासना से भगवान श्री गणेश उस पर प्रसन्न हुए और ससुर और छोटी बहु दोनों पर अपनी कृपा की.।अगले दिन ससुर जी का बिगड़ा हुआ स्वास्थ्य ठीक होने लगा और व्रत के पुण्यफल से छोटी बहु का घर धन धान्य से भर गया। छोटी बहु की स्थिति को देख अन्य बहुएं भी इस व्रत से प्रभावित हुईं और उनको अपनी करनी पर पछतावा होने लगा। उन्होंने बिना विलम्ब किये अपने पिता समान ससुर जी के पैर छू कर उनसे क्षमा याचना की और उन्होंने भी फाल्गुन कृष्ण पक्ष की विनायक गणेश चतुर्थी का व्रत किया। इतना ही नहीं उन्होंने अब से साल भर आने वाली हर संकष्टी गणेश चतुर्थी करने का शुभ संकल्प भी लिया। भगवान श्री गणेश की असीम कृपा से सभी का स्वभाव सुधर गये।

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