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विश्वकर्मा पूजा पर जरूर पढ़ें आरती, वास्तुशिल्प के रचनाकार की करें आराधना

वास्तुशिल्प के रचनाकार भगवान विश्वकर्मा कहे जा रहे हैं। यह मान्यता यह है कि आज के दिन विधि- विधान से पूजन करने से घर और दुकान में आती है सुख- समृद्धि।
 

आदि शिल्पी भगवान विश्वकर्मा की जयंती विशेष

ऐसे करें भगवान विश्वकर्मा की आरती

 कहा जाता है निर्माण का देवता

 

वास्तुशिल्प के रचनाकार भगवान विश्वकर्मा कहे जा रहे हैं। यह मान्यता यह है कि आज के दिन विधि- विधान से पूजन करने से घर और दुकान में आती है सुख- समृद्धि। शास्त्रों में भगवान विश्वकर्मा को सृजन और निर्माण का देवता माना गया है। माना जाता है, भगवान विश्वकर्मा ने कृष्ण की द्वारिकापुरी, पुष्पक विमान, स्वर्ण लंका, इंद्र का वज्र, शिव का त्रिशूल, पांडवों की इन्द्रपस्थ नगरी आदि निर्माण किया था। इसलिये किसी निर्माण और सृजन से जुड़े लोग श्रद्धाभाव से भगवान विश्वकर्मा को आराध्य मानकर पूजन- अर्चन करते हैं।।

 देव विश्वकर्मा के पूजन के बिना नहीं होता कोई भी तकनीकी कार्य का शुभारम्भ। भगवान विश्वकर्मा के यथाविधि पूजन करने से घर और दुकान में सुख- समृद्धि आती है। इस दिन अपने कामकाज में उपयोग में आने वाली मशीनों को साफ करें। फिर स्नान करके भगवान विष्णु के साथ विश्वकर्मा जी की प्रतिमा की विधिवत पूजा करनी चाहिए। ऋतुफल, मिष्ठान्न, पंचमेवा, पंचामृत का भोग लगाएं। दीप- धूप आदि जलाकर पारम्परिक रीति- रिवाज  से श्रद्धा के साथ आरती उतारे।।

विश्वकर्मा आरती :
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जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के करता,रक्षक स्तुति धर्मा॥

आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया।
जीव मात्र का जग में, ज्ञान विकास किया॥

ऋषि अंगीरा तप से, शांति नहीं पाई।
ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई॥

रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना ।
संकट मोचन बनकर, दूर दुखा कीना॥

जब रथकार दंपति, तुम्हारी टेर करी।
सुनकर दीन प्रार्थना, विपत सगरी हरी॥

एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।
त्रिभुज चतुर्भुज दशभुज, सकल रूप साजे॥

ध्यान धरे तब पद का, सकल सिद्धि आवे।
मन द्विविधा मिट जावे, अटल शक्ति पावे।।

श्री विश्वकर्मा की आरती, जो कोई गावे।
भजत गजानांद स्वामी,सुख संपति पावे॥

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