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जानिए कब और कैसे हुयी थी तुलसीदासजी की हनुमानजी से मुलाकात, बहुत दिसचस्प है कथा ​​​​​​​

हनुमान जी को खुश करने के लिए लोग हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं। मंगलवार हो या शनिवार, लोग हनुमान चालीसा का जरूर एक ना एक बार पाठ करते हैं। ऐसी मान्यता है कि हनुमान चालीसा का पाठ सुनने मात्र से भी हनुमान जी लोगों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण कर देते हैं।
 

हनुमान जी को खुश करने के लिए लोग हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं। मंगलवार हो या शनिवार, लोग हनुमान चालीसा का जरूर एक ना एक बार पाठ करते हैं। ऐसी मान्यता है कि हनुमान चालीसा का पाठ सुनने मात्र से भी हनुमान जी लोगों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण कर देते हैं। हनुमान चालीसा के रचयिता कवि तुलसीदास जी ही हैं, जिन्होंने रामचरितमानस की भी रचना की है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हनुमान चालीसा के रचयिता तुलसीदास जी की मुलाकात हनुमान जी से किसने करवाई थी।


राम व हनुमान कथा वाचक बताते हैं कि तुलसीदास जी को हनुमान जी से मिलवाने वाले कोई देवता, गंधर्व या कोई देवगण नहीं थे। बल्कि हनुमान जी से तुलसीदास जी की मुलाकात एक प्रेत ने करवाई थी। उन्होंने बताया की एक प्रेत ने ही उन्हें हनुमान जी का पता बताया था, जिसके बाद हनुमान जी ने उनसे राम जी से मुलाकात करवाने का वचन लिया था।

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अचानक सामने प्रत्यक्ष आ गया था एक प्रेत


तुलसीदास जी चित्रकूट के घाट पर रहा करते थे। स्नान करने के बाद एक पीपल के पेड़ में वह प्रतिदिन जल दिया करते थे। एक दिन जब स्नान करके पीपल के पेड़ में जल दे रहे थे, तभी अचानक उसे पेड़ से एक प्रेत निकलकर सामने हंसता हुआ खड़ा हो गया। प्रेत ने तुलसीदास जी से कहा कि मैं वर्षों से प्यासा था और तुमने मेरी प्यास मिटा दी, मांगों तुम्हें क्या वरदान चाहिए।


तुलसीदास जी ने प्रेत से कहा कि उन्हें कोई वरदान नहीं चाहिए, उन्हें बस अपने प्रभु श्री रामचंद्र से मिलना है। प्रेत ने कहा कि प्रभु श्री रामचंद्र जी का पता तो मैं भी नहीं जानता। लेकिन एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूं जो उनसे मिलवा सकता है। तुलसीदास जी के पूछने पर प्रेत ने बताया कि भगवान श्री राम का पता उनके सबसे अनन्य भक्त हनुमान जी को ही होता है। ऐसे में हनुमान जी से ही मिलना चाहिए। जब तुलसीदास जी ने प्रेत से हनुमान जी का पता पूछा। प्रेत ने कहा कि जहां राम कथा हो रही होगी, वहां तुम सबसे पहले पहुंच जाना। जो व्यक्ति सबसे पहले आएगा और सबसे आखिर में जाएगा वही तुम्हारे हनुमान जी होंगे।


 

कुष्ठ रोगी से मिलकर तुलसीदास जी ने पकड़ लिए थे उसके पांव


एक पौराणिक कथा में बताया जाता है कि इसके बाद तुलसीदास जी एक ऐसी जगह पहुंच गए, जहां श्री राम कथा हो रही थी। जिस वक्त वह पहुंचे, वहां कोई नहीं था। जिस जगह राम कथा हो रही थी उस जगह कोने में एक कुष्ठ रोगी बैठा हुआ था। जिसके हाथ और पांव से रुधिर टपक रहा था। उसके शरीर की मांसपेशियां गल चुकी थी।


तुलसीदास जी को लगा कि वह सबसे पहले आए हैं, इसलिए वह पेड़ पर चढ़कर छुप गए और वहीं बैठ गए। इस दौरान बहुत सारे लोग आए, राम कथा हुई, राम कथा समाप्त होने के बाद तुलसीदास जी वहीं बैठे रहे। जब उन्होंने देखा कि सारे लोग चले गए हैं केवल वही कुछ रोगी वहां बैठा हुआ है। तब तुलसीदास जी सारा माजरा समझ गए और जाकर उस कुष्ठ रोगी के पैर पकड़ लिया। वह कुष्ठ रोगी कोई और नहीं बल्कि हनुमान जी थे। तुलसीदास जी के कहने पर हनुमान जी ने ही उन्हें श्री रामचंद्र जी से मिलवाया था।

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