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योगिनी एकादशी का व्रत रखने से होते हैं कई फायदे, जानिए व्रत की तिथि-मुहूर्त और कथा ​​​​​​​

पद्म पुराण के अनुसार, इस व्रत को करने से मनुष्य को असाध्य रोगों से मुक्ति, पितृदोष से छुटकारा, और मुक्ति की प्राप्ति होती है। इस दिन का व्रत रखने से व्यक्ति को 88,000 ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर पुण्य मिलता है।
 

पद्म पुराण में वर्णित है योगिनी एकादशी की कथा

युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से ली थी इस व्रत के बारे में जानकारी

जानिए योगिनी एकादशी का धार्मिक महत्व

योगिनी एकादशी, हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। वर्ष 2025 में यह एकादशी 21 जून, दिन शनिवार को पड़ेगी। यह व्रत विशेष रूप से पाप नाशक और स्वास्थ्य-संपन्नता देने वाला माना गया है।
योगिनी एकादशी की कथा पद्म पुराण में वर्णित है। यह कथा धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा भगवान श्रीकृष्ण से पूछे गए प्रश्न से आरंभ होती है। युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा था कि हे माधव ! कृपया मुझे आषाढ़ कृष्ण पक्ष की एकादशी के नाम, महत्व और व्रत विधि के बारे में विस्तार से बताएं, तब भगवान श्रीकृष्ण ने इसे बताया था।

योगिनी एकादशी का धार्मिक महत्व
योगिनी एकादशी को सभी पापों से मुक्त कराने वाली तिथि कहा गया है। यह विशेष रूप से श्रीहरि विष्णु और उनके अवतारों की आराधना के लिए समर्पित है।
पद्म पुराण के अनुसार, इस व्रत को करने से मनुष्य को असाध्य रोगों से मुक्ति, पितृदोष से छुटकारा, और मुक्ति की प्राप्ति होती है। इस दिन का व्रत रखने से व्यक्ति को 88,000 ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर पुण्य मिलता है।

एकादशी व्रत की सही विधि
* प्रातः स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें।
* पूरे दिन एकादशी व्रत नियम (फलाहार या निर्जल उपवास) का पालन करें।
* भगवान विष्णु और तुलसी माता की पूजा करें, दीप जलाएं और विष्णु सहस्रनाम या “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।
* रात्रि में जागरण करना शुभ माना जाता है।

योगिनी एकादशी की पौराणिक कथा
अलकापुरी नामक नगरी में कुबेर नामक देवता का राज था। वे भगवान शिव के अनन्य भक्त थे और उनके पूजन हेतु एक माली हेममाली को नियुक्त किया गया था। हेममाली का कार्य था कि वह प्रतिदिन मानसरोवर से पुष्प लाकर भगवान शिव को अर्पित करे।

हेममाली अपनी सुंदर पत्नी विशालाक्षी के प्रेम में इतना आसक्त हो गया कि एक दिन वह कर्तव्य भूल गया और फूल नहीं लाया। इससे भगवान शिव का पूजन रुक गया और कुबेर को अत्यंत क्रोध आया।

श्राप और पतन
कुबेर ने हेममाली को शाप दिया कि- "तू अपने कर्तव्य में लापरवाह रहा है। जा, तू कोढ़ी होकर पृथ्वी पर दुख भोग।"
इसकी वजह से हेममाली की देह सड़ने लगी और वह कष्टमय जीवन जीने लगा। भोजन, जल, वस्त्र, किसी का सहारा नहीं था। जंगलों में भटकते हुए वह ऋषि मार्कंडेय के आश्रम पहुँचा।

बताया उद्धार का मार्ग
हेममाली ने ऋषि मार्कंडेय से अपने पापों की क्षमा और उद्धार का मार्ग पूछा। ऋषि ने उसे योगिनी एकादशी का व्रत करने को कहा और बताया कि.."इस एकादशी के व्रत से तेरे सभी पाप नष्ट होंगे और शरीर की व्याधि भी दूर होगी।"
इसके बाद हेममाली ने विधिपूर्वक योगिनी एकादशी का व्रत रखा। परिणामस्वरूप उसका शरीर स्वस्थ हुआ, कोढ़ समाप्त हुआ और वह दिव्य स्वरूप को प्राप्त कर स्वर्ग गया।

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