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मरहूम अर्शद अली की 19वीं बरसी पर डॉ. नवाज़ सईदी ने किया याद, बोले – समाज को झकझोर देने वाली थी वो शहादत

"अल्लाह तआला मरहूम निहालुद्दीन के चमन को गुलज़ार बनाए रखे, परिवार में मुहब्बत, मेल-मिलाप क़ायम रखे और मरहूम अर्शद अली को जन्नतुल फ़िरदौस में आला मक़ाम अता फरमाए. आमीन डॉ. नवाज़ अहमद सईदी।
 

786 के दिन पचपेड़वा में हुआ था जानलेवा हमला

अर्शद अली की मौके पर ही हुई थी मौत

गाजीपुर से आए डॉ. नवाज़ अहमद सईदी ने बरसी पर अर्शद अली को दी श्रद्धांजलि

जानिए क्या बोले डॉ नवाज़ सईदी

चंदौली जिले के अलीनगर थाना अंतर्गत लौंदा गांव की अज़ीम शख्सियत स्व अर्शद अली की 19वीं बरसी पर गाजीपुर के डॉ. नवाज़ अहमद सईदी ने जानकारी दी। उन्होंने कहा कि आज ही के दिन वर्ष 2006 में चंदौली जनपद के पचपेड़वा में एक जानलेवा हमले में उनकी शहादत हुई थी। इस हमले ने न केवल एक परिवार को, बल्कि पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया था।

आपको बता दें कि स्व अर्शद अली न सिर्फ एक सियासी नेता थे बल्कि एक सच्चे समाजसेवी भी थे, जिन्होंने हमेशा लोगों की मदद को ही अपना मकसद बना लिया था। समाजी और सियासी मसलों में उनकी भागीदारी ने उन्हें एक जनप्रिय नेता बना दिया।

 परिवारिक पृष्ठभूमि 

अर्शद अली का जन्म वर्ष 1961 में हुआ। वे तीन भाइयों और तीन बहनों में दूसरे स्थान पर थे। उनके भाई अबुज़फ़र उर्फ लल्लन प्रधान और मेराजुद्दीन उर्फ ख़ुर्शीद प्रधान भी सामाजिक जीवन से जुड़े रहे। उनके वालिद निहालुद्दीन और वालिदा अमीरुन-निसा भी अपने दौर की सम्मानित हस्तियाँ थीं।

उनकी शादी 1986 में शैख़ मोहम्मद हनीफ मरहूम की बेटी से कैमूर, बिहार के सौखरा गांव में हुई थी। उनके छह बच्चे – पाँच बेटे और एक बेटी हैं।

 सियासी संघर्ष और जिम्मेदारियाँ 

अर्शद अली को अपने बड़े भाई अबुज़फ़र की 1988 में हुई शहादत के बाद परिवार और गांव की जिम्मेदारियाँ संभालनी पड़ीं। उन्होंने सामाजिक और सियासी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया। 2005 में प्रधानी के चुनाव में उनके छोटे भाई ख़ुर्शीद प्रधान की जीत के बाद उनके जीवन पर खतरे के बादल मंडराने लगे थे।

7 अगस्त 2006 को दोपहर करीब 1:50 बजे, पचपेड़वा में सरेराह हुए हमले में अर्शद अली की शहादत हो गई। इस हादसे के बाद प्रशासन की मदद से हमलावरों का एनकाउंटर हुआ।

 आज की स्थिति 

आज 19 साल बाद भी अर्शद अली की शहादत को याद करने वाले लोग बहुत कम रह गए हैं। डॉ. नवाज़ अहमद सईदी जैसे कुछ लोग ही हैं जिन्हें उनकी तारीख-ए-शहादत तक याद है। जहां एक ओर गांव के कुछ बुजुर्ग अब भी मख़दूम साहब को याद करते हैं, वहीं अर्शद अली जैसे समर्पित इंसान को समाज ने कहीं न कहीं भुला दिया है।

हालांकि उनके बच्चे और परिवार आज भी मुश्किल हालातों में हौसले से अपनी ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं। उनकी मां की दी हुई परवरिश और हिम्मत ने उन्हें जीवन की कठिन राहों पर मजबूत बनाया है।

 मुश्किलों तुम मेरे बच्चों को हिकारत से न देख,हौसला मन्द हैं, हर बुझ उठा लेते हैं। 


उनके छोटे भाई ख़ुर्शीद प्रधान आज भी फरमाने खुदा के नमाज़ और वज़ाएफ़ में लगे रहते हैं, जबकि बड़े भाई अबुज़फ़र मरहूम के बच्चे भी जीवन की जद्दोजहद में लगे हुए हैं।

 ख़ास दुआ 

"अल्लाह तआला मरहूम निहालुद्दीन के चमन को गुलज़ार बनाए रखे, परिवार में मुहब्बत, मेल-मिलाप क़ायम रखे और मरहूम अर्शद अली को जन्नतुल फ़िरदौस में आला मक़ाम अता फरमाए. आमीन डॉ. नवाज़ अहमद सईदी।

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