एक घर से 2 लाशें निकलने के बाद जागा जिले का सो रहा सिस्टम, अब गांव में होगा सर्वे और मिलेगा आवास
पिता पुत्र की एक साथ निकली अर्थी, देवीय आपदा के तहत प्रशासन करने लगा सहयोग, सेक्रेटरी ने गांव के कच्चे मकान का करने लगे सर्वे
चंदौली जिले के बबुरी थाना अंतर्गत पांडेपुर बुधवारे गांव में देर रात रुक रुक कर बारिश ने एक गरीब परिवार का आशियाना छीन लिया। इस दौरान घर के अंदर सो रहे शिव मूरत बिंद और बेटे जय हिंद बिंद की मौके पर ही दर्दनाक मौत हो गई। दर्दनाक मौत के बाद सेक्रेटरी घर-घर जाकर आवास का सर्वे करने लगे और ग्रामीणों को भरोसा दिला रहे कि मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत कुछ दिनों में उन्हें पक्का मकान दिया जाएगा।

आपको बता दे कि सावन का महीना चल रहा, मौसम में नमी थी और रिमझिम बारिश हो रही थी। बुधवारे गांव में देर रात करीब 11:50 बजे एक घटना घटी। जिसमें शिवमूरत अपने लगभग 35 वर्षीय पुत्र जय हिंद के साथ अपने कच्चे मकान में सोए हुए थे। दोनों एक ही चारपाई पर लेटे थे, जैसे एक मां अपने छोटे बच्चों को सुलाती है। पिता की गोद में सोए पुत्र को शायद यह एहसास भी नहीं था कि यह रात उसकी जिंदगी की आखिरी रात होगी। शिवमूरत का मकान काफी पुराना था, जिसकी दीवारें वर्षों से मरम्मत के अभाव में कमजोर हो चुकी थीं। अचानक रात को दीवार भरभरा कर गिर पड़ी और दोनों बाप-बेटे उसके मलबे के नीचे दब गए। हादसे की आवाज सुनकर आसपास के ग्रामीण दौड़े और मदद के लिए चिल्लाने लगे। मलबा हटाने की कोशिश की गई, लेकिन गीली मिट्टी और अंधेरे के कारण राहत कार्य में बाधा आई। ग्रामीणों ने मिट्टी हटाकर उन्हें बाहर निकालने की बहुत कोशिश की, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जब तक लोगों ने मलबा हटाया, तब तक शिवमूरत और उनके पुत्र की मौके पर ही मौत हो चुकी थी। यह दृश्य इतना भयावह था कि वहां मौजूद हर शख्स की आंखों से आंसू निकल पड़े।

सूचना मिलते ही बबुरी थाना पुलिस मौके पर पहुंची और दोनों शवों को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। गांव में कोहराम मच गया। परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है। वहीं, ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि उन्होंने कई बार प्रशासन को इस पुराने जर्जर मकान की स्थिति के बारे में बताया था, लेकिन कोई भी अधिकारी समय रहते नहीं पहुंचा। ग्रामीणों के अनुसार, उन्होंने रात में ही अधिकारियों को फोन किया था, लेकिन प्रशासनिक अधिकारी करीब 8 घंटे बाद पहुंचे।
पिता-पुत्र की दर्दनाक मौत के बाद अब गांव में अधिकारियों का जमावड़ा लग गया है। अफसर घर-घर जाकर आवास का सर्वे कर रहे हैं और ग्रामीणों को भरोसा दिला रहे हैं कि कुछ ही दिनों में उन्हें पक्का मकान मिल जाएगा। लोग अफसोस जता रहे हैं कि अगर यह सर्वे और कार्रवाई पहले हो जाती तो आज यह हादसा टल सकता था। प्रशासन की लापरवाही ने दो जिंदगियां निगल लीं और अब आश्वासन की पोटली थमाई जा रही है। ग्रामीणों की आंखों में आंसू और मन में सवाल हैं—क्या मौत के बाद ही सरकार की मशीनरी जागती है।
गांव के लवकुश बिंद ने बताया कि गांव में लगभग 20 से 25 कच्चे मकान अभी भी मरम्मत की मांग कर रहे हैं, जिनमें मेरा भी मकान शामिल है। कई बार ग्राम प्रधान से आवास योजना के लिए गुहार लगाई, लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन मिला। पिछले 15 सालों से यही कहा जा रहा है कि आपका नाम आवास की लिस्ट में है और जल्द आपको आवास मिलेगा, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।

बुजुर्ग शारदा ने बताया कि कई बार प्रधानमंत्री आवास योजना में नाम आने के बावजूद हम लोगों को आज भी झोपड़ी में रहना पड़ रहा है। प्रधान और प्रशासन से कई बार गुहार लगाने पर भी कोई सुनवाई नहीं होती, जिससे जीवन कठिनाइयों में गुजर रहा है।
कुछ ग्रामीणों का कहना है कि क्या अधिकारी मौत के बाद ही आवास देते हैं. ऐसा आवास हमें नहीं चाहिए, जो किसी की जान लेने के बाद मिले। हम चाहते हैं कि सरकार समय रहते मदद करे, ताकि कोई और परिवार अपने प्रियजनों को इस तरह न खोए।
पिता-पुत्र की एक ही गांव से जब दो अर्थियां एक साथ घर से निकलीं, तो हर आंख नम हो गई और पूरा गांव स्तब्ध रह गया। यह दिल दहला देने वाला मंजर देखकर किसी का भी दिल कांप उठा और वातावरण शोक में डूब गया।
देवीय आपदा के तहत प्रशासन ने आश्वासन दिया है कि मृतक के परिवार को मुआवजा दिया जाएगा। एसडीएम का कहना है कि संबंधित विभाग से प्रक्रिया पूरी कर जल्द ही आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जाएगी, ताकि परिवार को कठिन समय में सहारा मिल सके।
इस संबंध में नियामताबाद के बीडीओ रुबेन शर्मा ने बताया कि बुधवारे गांव में प्रधानमंत्री आवास योजना में लगभग 108 लोगों के नाम शामिल हैं, जिनमें मृतक के परिवार का नाम भी है। उन्होंने आश्वासन दिया कि कुछ लोगों को जल्द मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत आवास उपलब्ध कराया जाएगा।

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इस दर्दनाक हादसे ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि गरीबों की ज़िंदगी आज भी कितनी असुरक्षित है। एक बाप अपने बच्चे को लेकर चैन की नींद सोने गया था, उसे क्या पता था कि यह नींद अब कभी नहीं खुलेगी। प्रशासन की लापरवाही और जर्जर मकानों की अनदेखी ने एक मासूम की जान ले ली और एक बाप की ममता भरी छांव को सदा के लिए खत्म कर दिया।
हालांकि यह घटना न सिर्फ एक परिवार के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक सबक है कि समय रहते पुराने मकानों की मरम्मत कराना कितना जरुरी है। प्रशासन को भी चाहिए कि ऐसे जर्जर मकानों की पहचान कर समय रहते उचित कदम उठाए, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।
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