LBS पीजी कॉलेज में जगतगुरु शंकराचार्य विचार गोष्ठी का आयोजन, कई वक्ताओं ने रखे विचार
गोष्ठी में मुख्य अतिथि रहे लोक सेवा आयोग के हरेश प्रताप सिंह
बोले -सारा ब्रह्मांड मूल रूप से एक ऊर्जा है
सृष्टि और सृष्टि कर्ता एक ही है
आत्मज्ञान के बिना समाज के लक्ष्य की पूर्ति असंभव
इस अवसर पर बोलते हुए लोक सेवा आयोग उत्तर प्रदेश के सदस्य प्रोफेसर हरेश प्रताप सिंह ने कहा कि आदि शंकराचार्य चमकदार आध्यात्मिक प्रकाश के अद्वितीय स्रोत थे उन्होंने संपूर्ण भारत भूमि को अपने ज्ञान से आलोकित किया, उनके उपदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक है। उनका व्यक्तित्व ऊर्जा व उत्साह से भरा हुआ था ,अपनी ऊर्जा से उन्होंने अध्यात्म की प्रवृत्ति को विकसित किया। उनका मानना था कि आत्मज्ञान के बिना समाज के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता है ,उन्होंने कहा कि मनुष्य की प्रणाली को जानने से हम सारे ब्रह्मांड के विषय में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं ।आधुनिक भौतिक शास्त्र यह कहता है कि सारा ब्रह्मांड मूल रूप से एक ऊर्जा है ,यही बात आज से सैकड़ों वर्ष पहले शंकराचार्य ने कही थी की सृष्टि और सृष्टि कर्ता एक ही है अब यह बात वैज्ञानिक काफी शोध के पश्चात स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि दुनिया अवसाद में जी रही है और हम लोगों को उन्हें उसे बाहर लाना है यह तभी संभव हो पाएगा जबकि हम शंकराचार्य के विचारों को समाज के साथ जोड़ें। विषय प्रवर्तन करते हुए प्रोफेसर सुधाकर ने कहा कि आचार्य अर्थात गुरु कहता है हमारी अच्छी बात को ग्रहण करना और बुरी बात को छोड़ देना ,आज यह बात आवश्यक है कि शिक्षा सहज भाषा में दी जाए, सहज भाषा में दी गई शिक्षा समझ में आती है और ज्ञान का विस्तार होता है उन्होंने कहा कि जो शास्त्र से नियंत्रित होता है वही मनुष्य होता है। आदि गुरु शंकराचार्य एक महामानव थे उन्होंने जीवन जीने की कला को सिखाया, आदि गुरु का यह मानना था कि संतुलन वह माध्यम है जिसके द्वारा जीवन सुगमता के साथ चलता है।
विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर हरि प्रसाद अधिकारी ने कहा कि शोध में फुटनोट देने की शुरुआत आदि शंकराचार्य ने की थी। प्रोफेसर अधिकारी ने कहा कि भारतीय संस्कृति में एकात्मबोध की भावना का प्रसार करने वाले आदि गुरु शंकराचार्य ही थे। शंकराचार्य को उन्होंने सर्व भेदभाव निवारक के रूप में प्रस्तुत किया।
विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर उपेंद्र त्रिपाठी ने कहा कि आदि शंकराचार्य को "अभिनव शंकर" की उपाधि दी गई थी, उन्होंने अपने गुरु से चार वाक्य पूछे थे यह चारों वाक्य चारों वेदों से संबंधित थे, इसी के आधार पर उन्होंने चार पीठों की स्थापना की थी। प्रोफेसर अरविंद मिश्रा ने आदि गुरु शंकराचार्य के प्रस्थान त्रयी के संबंध में बताया ।प्रोफेसर दयानिधि ने शंकराचार्य के दर्शन का छात्र जीवन व राष्ट्र निर्माण में क्या भूमिका हो सकती है इसकी व्याख्या की।
प्रोफेसर जगदीश त्रिपाठी ने यह बताया कि जगद्गुरु शंकराचार्य अद्वैतवाद के संस्थापक और प्रवर्तक थे। उन्होंने कहा कि समाज में व्यक्ति भिन्न-भिन्न रुचियां वाला होता है परंतु अपनी रुचि के अनुसार वह अपने व्यवसाय का चयन करता है। जगतगुरु शंकराचार्य जीव और ब्रह्म के मध्य तदातम्य को स्थापित करने वाले थे।
सकलडीहा पीजी कॉलेज के प्राचार्य प्रोफेसर प्रदीप कुमार पांडे ने शंकराचार्य के संपूर्ण जीवन को संक्षिप्त रूप से रेखांकित किया, उन्होंने बताया कि स्वामी विवेकानंद शंकराचार्य जी के अहम् ब्रह्मास्मि से प्रभावित थे। कार्यक्रम के आरंभ में माला कुमारी आंचल कुमारी सुरुचि सिंह ने सरस्वती वंदना व स्वागत गीत प्रस्तुत किया आए हुए अतिथियों का स्वागत महाविद्यालय के प्राचार्य उदयन मिश्रा द्वारा किया गया धन्यवाद ज्ञापन प्रोफेसर योगेंद्र ओझा ने किया, इस कार्यक्रम का संचालन इस परिसंवाद के संयोजक प्रोफेसर अरुण पांडे ने किया गया।
इस अवसर पर प्रो संजय पाण्डेय,डा वंदना ओझा प्रोफेसर राजीव, प्रोफेसर इशरत,प्रो अजीत त्रिपाठी, प्रो धनंजय राय, डाभावना, डा कामेश, डा हेमंत, डा गुलजबी,श्री बृजेश डा यज्ञ नाथ पांडे, डा संदीप जयसवाल,डा अमितेश सिंह,डा मनोज,डा सुनील,डा पंकज, डा धर्मेन्द्र, डा दीपक,डा प्रजापति,डा शरद,डा साधना, डा विजयलक्ष्मी, डा शशि कला,डा सारिका,डा मीना यश नायक ,डा पुष्पराज , राहुल सुनील, रंजीत, सुरेंद्र ,विनीत, अतुल अन्य के साथ महाविद्यालय के शोध छात्र एवं स्नातकोत्तर की छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।
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