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लाल बहादुर शास्त्री स्नातकोत्तर महाविद्यालय में सेमिनार का आयोजन

गुरू नानकदेव जीने अपने उपदेश  में  कहा कि मनुष्य, तुच्छ बातों के बंधन से मुक्त होकर, सार्वभौमिक प्रेम, विश्व बंधुत्व से मुक्त होकर असीम की ओर अग्रसर होता है।
 

चंदौली जिले के लाल बहादुर शास्त्री स्नातकोत्तर महाविद्यालय दीनदयाल उपाध्याय नगर के पं. पारसनाथ तिवारी नवीन परिसर में शनिवार को उत्तर प्रदेश पंजाबी अकादमी, विद्याश्री न्यास व लाल बहादुर शास्त्री स्नातकोत्तर महाविद्यालय के संयुक्त तत्तवाधान में गुरू नानक देव की रचनाओं में मानवीयता व समानता का संदेश विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया । कार्यक्रम के आरंभ में  मुख्य अतिथि प्रो अनुराग कुमार, रंजीत सिंह, महेन्द्र सिंह, गगनप्रीत , प्रो उदयन, अजित सिंह बग्गा ने दीप प्रज्वलन व माँ सरस्वती जी , गुरु नानक देव , पं पारसनाथ तिवारी व विवेकानंद जी के चित्र पर माल्यार्पण किया।

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बता दें की विषय प्रवर्तन करते हुए प्रो अमित राय ने कहा कि श्री गुरुनानक देवजी गुरु नानक जी ने तीन काम करने को कहा- कीरत करो (श्रम और नियम से अपनी आजीविका प्राप्त करो), वंड चखो( अपनी कमाई को दूसरों की आवश्यकताओं के लिए भी लगाओ) और नाम जपो (ईश्वर के नाम का स्मरण करते रहो)। नानक जी की रचनाओं में, जिन्हें हम उदासियाँ कहते हैं, मनुष्य के सांसारिक और अध्यात्मिक दुविधाओं का सरलतम शब्दों में उपाय दिया गया है। गुरु नानक जी ने ‘आपे गुरु, आपे चेला’ की बात की। जिन शिष्यों को उन्होंने दीक्षित किया, बाद में उन्होंने उन्हीं शिष्यों से स्वयं दीक्षा ली। उनके इस एक कार्य में सिख परंपरा में पौराहित्यिक एकाधिकार की संभावनाओं को समाप्त कर दिया, तथा व्यक्ति और ईश्वर को सीधा जुड़ने का रास्ता दे दिया।

इस दौरान मुख्य अतिथि प्रो अनुराग  कुमार ने कहा कि गुरूनानक देव जी एक युगांतकारी युग दृष्टा, महान दार्शनिक चिंतक, क्रांतिकारी समाज सुधारक थे। उनका दर्शन, मानवतावादी दर्शन था। उनका चिंतन धर्म एवं नैतिकता के सत्य, शाश्वत मूल्यों का मूल था, इसलिए उन्होंने संपूर्ण संसार के प्राणियों में मजहबों, वर्णों, जातियों आदि से ऊपर उठकर एकात्मकता का दिव्य संदेश देते हुए अमृतमयी ईश्वरीय उपदेशों से विभिन्न आध्यात्मिक दृष्टिकोणों के बीच सर्जनात्मक समन्वय उत्पन्न किया। गुरु नानकदेवजी दुनिया को एक नया संदेश देने के लिए अवतरित हुए थे। उन्होंने सर्व ईश्वरवाद का संदेश दिया, जिससे वह सभी भाव और सत्य फलित होते हैं, जिनके साथ मानव की प्रगति और कल्याण अनिवार्यतः जुड़ा हुआ है। उनके द्वारा चलाया गया मिशन प्रेम, समानता और भ्रातृत्व की भावना से पूर्ण एक सार्वभौमिक अनुशासन है।

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गुरू नानकदेव जीने अपने उपदेश  में  कहा कि मनुष्य, तुच्छ बातों के बंधन से मुक्त होकर, सार्वभौमिक प्रेम, विश्व बंधुत्व से मुक्त होकर असीम की ओर अग्रसर होता है। इसलिए समानता का नारा देते हुए उन्होंने कहा कि ईश्वर हमारा पिता है और हम सब उसके बच्चे हैं और पिता की निगाह में छोटा-बड़ा कोई नहीं है, वही हमें पैदा करता है और वही हमारा भरण-पोषण भी करता है ।

वाराणसी के ग्रंथी श्री रंजीत सिंह ने कहा कि गुरु नानक देव जी के जन्म से पहले दुनिया में बहुत भेदभाव था  जिससे पाँच बुराइयां उत्पन्न होती है व नकारात्मक का भाव उत्पन्न होता है , वे पाँच बुराईयां -वासना, क्रोध, लालच, भावनात्मक लगाव और अहंकार। जब ये बुराइयाँ हावी हो जाती हैं, तो वे हमारे भीतर भ्रष्टाचार और अंधकार से घिर जाती हैं। शुरू में, लोग इन बुराइयों से प्रेरित होकर काम करते हैं, लेकिन समय के साथ, ये हरकतें आदत बन जाती हैं और उनके चरित्र को आकार देती हैं। जब बुराइयाँ और भ्रष्टाचार किसी के चरित्र में समा जाते हैं, तो वे अपनी शर्म की भावना खो देते हैं और अपने बुरे और पापी कामों में गलतियाँ नहीं देख पाते। ये बार-बार किए जाने वाले काम आत्मा पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ते हैं।

अजित सिंह बग्गा ने कहा कि गुरु नानक देव जी ने अपनी शिक्षाओं और निस्वार्थ कार्यों के माध्यम से ईश्वर और भलाई का संदेश फैलाया। उन्होंने समानता, करुणा और एकता पर जोर दिया, लोगों को धार्मिकता और सभी के लिए प्रेम के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। उनका गहन ज्ञान और आध्यात्मिक संदेश आज भी गूंजते रहते हैं, जो मानवता को ज्ञान और सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व के जीवन की ओर ले जाते हैं।

विशिष्ट अतिथि डा गगनप्रीत ने कहा कि गुरु नानक की शिक्षाओं का प्रसाद प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हम सभी को अवश्य चखना चाहिए तभी हमारे व्यक्तित्व में निखार आएगा।गुरु नानक देव जी ने भारत की मूल चिति को समझा और उसे आत्मसात करके अपने वचनों में उतारा।सिख संप्रदाय आज भी उसी चिति के साथ आगे बढ़ रहा है ।सिख परंपरा वस्तुतः वीरता, राष्ट्रनिष्ठा और मानवतावाद की परंपरा है जिसकी नींव में बाबा नानक के वचन और उनका जीवन है।

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पंजाबी अकादमी के अरविन्द नारायण मिश्र ने कहा कि गुरु नानक देव के जीवन सन्देश से हम ऐसे विचार ग्रहण करते हैं जो हमें वर्तमान युग की चुनौतियों जैसे पर्यावरणीय विघटन, सामाजिक एकता को तोड़ने के प्रयास, संसाधनों का दुरूपयोग आदि का सफलता पूर्वक सामना करने में अत्यंत उपयोगी सिद्ध होंगे। हमें हम विचारों को आत्मसात करना चाहिए और उनको अपने सामाजिक जीवन पद्धति का हिस्सा बनाना चाहिए।
अध्यक्षीय संबोधन देते हुए रंजीत सिंह, अध्यक्ष, गुरुद्वारा समिति, चंदौली ने कहा कि गुरु नानक ने मानवता के प्रति निस्वार्थ सेवा पर जोर दिया। एक सिख भलाई, दान और दूसरों की मुफ्त में मदद करने के लिए निरंतर तत्पर व तैयार रहता है। नानकदेव जी ने महिलाओं के सशक्तिकरण की वकालत की और पुरुषों के साथ उनकी समानता पर जोर दिया। उन्होंने पर्दा प्रथा का विरोध किया और समाज में महिलाओं के महत्व की वकालत की। मुगलसराय के ग्रंथी श्री अमरजीत सिंह  ने कहा कि नानक ने भगवान से जुड़ने के साधन के रूप में ध्यान (सिमरन) और ईश्वर की भक्ति का महत्व सिखाया। उनका मानना ​​था कि आध्यात्मिक और सचेत जीवन आंतरिक शांति की ओर ले जाता है ।

कार्यक्रम के आरंभ में अतिथियों का स्वागत प्रो उदयन मिश्र ने धन्यवाद ज्ञापन डा साधना, व संचालन डा विनोद कुमार, संयोजक राष्ट्रीय संगोष्ठी ने किया।इस अवसर पर श्रीमती वंदना, प्रो संजय, प्रो इशरत, प्रो दयानिधि, प्रो अरुण, प्रो धनंजय,डा गुलजबी, ब्रजेश,विवेक, डा हर्षवर्धन,डा सुनील, डा मनोज, डा अमितेश,डा विजयलक्ष्मी, प्रो शमीम राइन, प्रो राजीव, प्रो भावना, प्रो दयाशंकर, डा संदीप सिंह, डा दीपक, डा अरविंद, डा प्रजापति,डा पंकज कुमार,डा यज्ञनाथ, डा प्रमोद, डा हर्ष, डा शशिकला, डा सारिका, डा संजय प्रताप, शाकिब, आलोक,यश, डा पुष्पराज, सोनिया पाल, कुमार सौरभ , रिया,राहुल, रंजीत, सुरेंद्र, विनीत, अतुल के साथ छात्र छात्राएँ उपस्थित रहे ।

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