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नौगढ़ में पोखरी में पैर फिसलने से मासूम अंशिका की चली गई जान, मौत के बाद भी बच्ची की चर्चा

अंशिका की मौत की खबर सुनते ही माँ शारदा देवी बेसुध होकर धरती पर गिर पड़ीं। उनकी रिरियाती आवाज़ हर दिल को चीरती रही। भाई‑बहन और पड़ोसी भी आँसू नहीं रोक पाए। 
 

अधूरा रह गया भाई का राखी बंधवाने का सपना

डूबते  हुए देखती रह गई उसकी बहन और सहेलियां

स्नान करने गई थी अंशिका

पोखरे की गहराई बनी काल

चंदौली जिले में तहसील नौगढ़  के ठठवां गांव के एक पोखरे में शनिवार की दोपहर दिल दहला देने वाला हादसा हुआ, जहाँ स्नान करते‑करते फिसलकर आठ‑वर्षीय अंशिका ने अपना दम तोड़ दिया। कुछ ही पलों में हंसी‑खुशी का माहौल मातम में बदल गया।

चकरघटृटा थाना क्षेत्र के मझगांई निवासी राजेश राम की छोटी बेटी अंशिका, बड़ी बहन सोनाली (11) व सहेलियों के साथ रोज़ की तरह नहाने पहुँची थी। मगर नियति ने उसका बचपन छीन लिया—पैर फिसला, और वह गहरे पानी में समा गई।

बेबस निगाहों ने देखे रहे बहन को डूबते
सहेलियों की चीख‑पुकार सुनकर गांव दहल उठा। वे सभी भागकर घर आ गई। परिजन दौड़े,  लेकिन तब तक कीमती सासें थम चुकी थीं।

चकरघट्टा  थानाध्यक्ष घटना दयाराम गौतम घटना की सूचना मिलने पर टीम के साथ पहुँचे और पंचनामा कर शव को जिला चिकित्सालय भेज दिया। हादसे ने पूरे इलाके को स्तब्ध कर दिया है।

माँ की क्रंदन‑भरी पुकार से दुखी दिखा पूरा गांव

अंशिका की मौत की खबर सुनते ही माँ शारदा देवी बेसुध होकर धरती पर गिर पड़ीं। उनकी रिरियाती आवाज़ हर दिल को चीरती रही। भाई‑बहन और पड़ोसी भी आँसू नहीं रोक पाए। 

अंशिका चौथी कक्षा में पढ़ती थी। स्कूल से लौटकर मिट्टी के खिलौने बनाती, कभी अपनी कॉपी पर रंग‑बिरंगे फूल उकेरती। वह अक्सर पिता से कहती—“पापा, मैं बड़ी होकर टीचर बनूँगी ताकि गाँव के सब बच्चे पढ़ें।” उसकी मुस्कान में एक भोला आत्म‑विश्वास था, जिसे देखकर हर कोई दुआ करता था कि यह बच्ची दूर तक उड़ान भरे। अब उसी मुस्कान की याद में लोग थरथराए हुए हैं।

अधूरा रह गया राखी का सपना
रक्षाबंधन से बस चंद दिन बाकी रह गए थे। अंशिका बार‑बार अपने भाई हिमांशु से कहती रही —“भैया इस बार मैं तुम्हें सबसे प्यारी राखी बाधूंगी।” कलाई पर राखी बाँधने से पहले ही उसकी नन्ही हथेलियाँ ठंडी पड़ गईं। 

गाँव के बुज़ुर्ग कहते हैं—“इतनी चंचल, इतनी प्यारी बच्ची बहुत दिनों बाद देखी थी।” अंशिका सुबह‑सुबह मंदिर की घंटी बजाती, फिर स्कूल जाती। शाम को खेलते‑खेलते जब वह “लुकाछिपी” में जीतती, तो उसकी खिलखिलाहट दूर तक सुनाई देती। आज वही गलियाँ सूनी पड़ी हैं।‌

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