बार एसोसिएशन के अध्यक्ष सत्यानंद तिवारी ने जिलाधिकारी को लिखा पत्र, अब छेड़ा जाएगा आंदोलन

नौगढ़ में लेखपाल की मनमानी जारी
कहा- इंटर-बी.ए .करके वकील बन गए, हमें कानून सिखाएंगे
रिश्वतखोर लेखपाल के इशारे पर नाच रहा तहसील प्रशासन
अब अधिवक्ता हो रहे और अधिक आक्रामक
चंदौली जिले की तहसील नौगढ़ में भ्रष्टाचार अपने चरम सीमा पर है। यहां का लेखपाल अरविंद कुमार खुलेआम रिश्वत ले रहा है और गरीबों से उनके हक की जमीन छीनने का खेल चल रहा है। जब अधिवक्ताओं ने इसका विरोध किया, तो इस घूसखोर लेखपाल ने एसडीएम कुंदन राज कपूर के समक्ष उल्टा उन्हीं पर तंज कसते हुए कहा – "इंटर-बीए करके हमें कानून सिखाएंगे?" यह न सिर्फ वकीलों का अपमान है, बल्कि भ्रष्टाचार की उस जड़ को उजागर करता है, जिसमें प्रशासन की संलिप्तता भी साफ नजर आ रही है।

नौगढ़ क्षेत्र के गरीब वनवासी, जो दशकों से अपनी जमीनों पर बसे हैं, उनके नामांतरण और अन्य राजस्व कार्यों को जानबूझकर उलझाया जा रहा है। हल्का लेखपाल अरविंद कुमार फरियादियों को सीधे बोल देता है – "जब तक जेब गर्म नहीं करोगे, फाइल आगे नहीं बढ़ेगी।" इस खुली लूट पर तहसील प्रशासन पूरी तरह से चुप है। आखिर क्यों? क्या यह भ्रष्टाचार के खेल में प्रशासन की मिलीभगत का सबूत नहीं?
बताया जा रहा है कि तहसील में लेखपालों की घूसखोरी का आलम यह है कि बिना रिश्वत दिए किसी गरीब का नाम चढ़ता नहीं और बिना पैसा दिए किसी विवाद का हल निकलता नहीं। सरकारी दफ्तरों में फाइलों से ज्यादा रिश्वत चलती है और जो इसका विरोध करे, उसे प्रताड़ित करने की रणनीति बनाई जाती है।
तहसील प्रशासन – भ्रष्टाचारियों का अड्डा बन चुका है?
तहसील नौगढ़ बार एसोसिएशन के अध्यक्ष सत्यानंद तिवारी का कहना है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ एसडीएम को पत्र लिखा और फरियादियों के हलफनामे और ऑडियो साक्ष्य भी दिए। लेकिन प्रशासन इस पर पूरी तरह चुप्पी साधे बैठा है। सवाल यह है कि अगर भ्रष्टाचार के इतने स्पष्ट प्रमाण होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हो रही, तो इसका मतलब साफ है – प्रशासन खुद ही इस लूट में हिस्सेदार है!
क्या कानून सिर्फ गरीबों के लिए?
अगर यही आरोप किसी आम गरीब नागरिक पर होता, तो क्या तहसील प्रशासन इतनी ही ढील बरतता? क्या गरीबों की फाइलें बिना रिश्वत के नहीं बढ़ेंगी, और घूसखोर लेखपाल के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी? प्रशासन की यह चुप्पी क्या यह नहीं दर्शाती कि कानून सिर्फ कमजोरों को दबाने के लिए बना है, और भ्रष्टाचारियों के लिए कोई सजा नहीं?
न्याय की मांग कर रहे अधिवक्ताओं को भी अपमानित किया गया
घूसखोरी मामले को लेकर तहसील के अधिवक्ताओं ने आवाज उठाई, तो उनके सम्मान पर भी चोट की गई। भ्रष्टाचार उजागर करने के बजाय प्रशासन आरोपियों को बचाने में लगा हुआ है। अधिवक्ता न्यायिक कार्य से विरत हो गए हैं और यदि जल्द ही कार्रवाई नहीं हुई, तो वे उग्र आंदोलन के लिए मजबूर होंगे।
अब सवाल प्रशासन से –
1. जब रिश्वतखोरी के साक्ष्य हैं, तो आरोपी के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं?
2. क्या गरीबों की जमीन पर रिश्वत की नीलामी होगी?
3. क्या तहसील प्रशासन भ्रष्टाचारियों का संरक्षक बन चुका है?
4. अगर कानून सिर्फ गरीबों पर लागू होता है, तो क्या भ्रष्ट अधिकारी कानून से ऊपर हैं?
बार एसोसिएशन अध्यक्ष ने चेताया है कि अगर जल्द ही प्रशासन इस भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लगाता, तो यह लड़ाई सड़कों तक जाएगी, और फिर जनता का गुस्सा संभालना मुश्किल होगा!
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