कोटेदार कर रहे रहे गुंडई : गरीबों को राशन के साथ जबरन थमाए जा रहे नकली निरमा-नमक

देखिए वीडियो नीतू सिंह खोल रही है पोल
नौगढ़ के कोटेदारों की दबंगई
आखिर किसके संरक्षण में मिली हुयी है खुली लूट की छूट
"राशन चाहिए तो नकली निरमा और नमक भी खरीदो, नहीं तो वापस जाओ..." तहसील नौगढ़ के कई गांवों में कोटेदार कुछ इसी अंदाज में गरीबों को धमका रहे हैं। यह कोई फिल्मी संवाद नहीं, वास्तविक जमीनी सच्चाई है, जो इस वक्त गरीबों की गरिमा और सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का मखौल उड़ा रही है। इसी गंभीर स्थिति को उजागर करने के लिए ग्राम्या संस्थान की परियोजना समन्वयक नीतू सिंह ने मंगलवार को पांच गांवों में मौके पर जाकर खुद कोटे का निरीक्षण किया।

परियोजना समन्वयक नीतू सिंह ने चंदौली समाचार को बताया कि विकास खंड नौगढ़ के मझगांई, गोलाबाद, बोदलपुर, देवखत और अमदहां गांवों में लगातार ग्रामीणों से यह शिकायत मिल रही थी कि कोटेदार राशन तभी देते हैं जब उनके द्वारा दिए जा रहे नकली निरमा और नमक के पैकेट को खरीदा जाए। महिलाओं ने सामने आकर अपना दर्द बयां किया
रामरति, नीलम, सुनीता, कमली, डंगरी, प्रभावती, संगीता, लीलावती, लक्ष्मीना और मुन्नी जैसी ग्रामीण महिलाओं ने कहा .....

"हम रोज कमाकर खा रहे हैं। हम राशन के लिए पैसे का इंतजाम करें कि अब नमक और निरमा के लिए..? गरीबी में बच्चों का पेट भरना मुश्किल है, कोटेदार कहते हैं कि ये भी लो, नहीं तो राशन नहीं मिलेगा। मजबूरी में लेना पड़ता है... आखिर कौन सुनेगा हमारी तकलीफ?"
नीतू सिंह ने इस पूरे प्रकरण की जिला प्रशासन से उच्चस्तरीय जांच की मांग करते हुए कहा है कि
यह न सिर्फ NFSA अधिनियम का घोर उल्लंघन है, बल्कि गरीबों के साथ खुला अन्याय है। कोटेदार खुद स्वीकार कर रहे हैं कि ये पैकेट किसी कंपनी के हैं, न कि सरकारी योजना के तहत। सवाल उठता है कि क्या सरकार की योजनाएं अब निजी कंपनियों के प्रचार और जबरन बिक्री का माध्यम बन चुकी हैं?
अगर गांव के लोग मना करते हैं, तो उन्हें राशन ही नहीं दिया जा रहा — ये सीधे-सीधे दबाव, धमकी और शोषण है।"
किसके बल पर हो रही ये खुलेआम दबंगई
* अब सवाल उठता है कि क्या जिला आपूर्ति विभाग इन कोटेदारों की दबंगई से अनजान है?
* अगर ये सामान सरकारी नहीं है, तो कोटेदारों को किसने अधिकार दिया गरीबों पर थोपने का ?
* क्या कोटेदारों की यह गुंडई प्रशासन के संरक्षण में हो रही है?
जब जनता मना करती है, तो कहा जाता है कि “पहले निरमा-नमक लो, फिर मिलेगा राशन।” गरीबों के पेट पर लात मारने वाला यह धंधा क्या अधिकारियों की मिलीभगत के बिना संभव है?
जनता की मजबूरी को मुनाफे में बदलने की घिनौनी चाल
जो महिलाएं दिनभर मेहनत करके घर का चूल्हा जलाती हैं, अब उन्हें राशन से पहले नकली नमक और साबुन खरीदने के लिए विवश किया जा रहा है। लोग कह रहे हैं — “हम क्या करें? ना लें तो राशन नहीं देते। कहीं कोई सुनने वाला नहीं है।” ऐसे में यह कहावत पूरी तरह सच हो रही है — "मरता क्या नहीं करता...।
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