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नौगढ़ ब्लॉक पर मजदूरों का धावा, बीडीओ साहब ने दिया है आश्वासन कि अब नहीं होगा अन्याय

खंड विकास अधिकारी अमित कुमार जब पंचायत बरबसपुर के जन चौपाल से लौटे, तो सामने आक्रोशित मजदूरों की भीड़ थी। उन्हें शांत करने के लिए सेक्टर प्रभारी, एपीओ और जेई को तत्काल बुलाया गया।
 

मनरेगा मजदूरों को लूटा गया पसीना

लापरवाही की माप MB से काट दी गई मजदूरी

गुस्से में हैं मनरेगा के मजदूर

सरकार चाहे लाख योजनाएं चला ले, लेकिन जब जमीनी अमला ही भ्रष्टाचार और लापरवाही में लिप्त हो, तो गरीब मजदूरों को उनका पसीना सूखने के बाद भी मेहनताना नहीं मिलता है। कुछ ऐसा ही चंदौली जिले में नौगढ़ तहसील के ग्राम पंचायत बाघी में मनरेगा मजदूरों के साथ कुछ ऐसा ही हुआ, जब उन्होंने तालाब खुदाई का 14 दिन का काम पूरा किया, लेकिन उनके खाते में पूरी मजदूरी नहीं आई। मजदूरों का आरोप है कि ₹252 प्रतिदिन के हिसाब से उन्हें ₹3528 मिलना था, लेकिन सिर्फ ₹2450 ही भुगतान हुआ। तकनीकी सहायक (जेई) ने कार्य की माप (एमबी) में मनमानी कर दी, जिससे मजदूरी में सीधी-सीधी कटौती हो गई। इस लापरवाही का शिकार वे गरीब लोग हुए, जो चिलचिलाती धूप में तालाब की मिट्टी काटते हैं, लेकिन जब मेहनताना मांगते हैं तो उन्हें दुत्कार और टालमटोल मिलता है।

जमीनी हकीकत यह है कि मजदूरों को पता ही नहीं चलता कि कहां उनकी मजदूरी "घपले" की भेंट चढ़ गई। यही कारण है कि शुक्रवार को सैकड़ों मजदूर फावड़ा, कुदाल और तगड़ी लेकर ब्लॉक कार्यालय पहुंच गए। अफसरों की गैरहाजिरी ने आग में घी डालने का काम किया। मौके से पंचायत सचिव और जेई खिसक लिए, जिससे मजदूरों का गुस्सा फूट पड़ा।

Mamrega workers protest

बताया जा रहा है कि खंड विकास अधिकारी अमित कुमार जब पंचायत बरबसपुर के जन चौपाल से लौटे, तो सामने आक्रोशित मजदूरों की भीड़ थी। उन्हें शांत करने के लिए सेक्टर प्रभारी, एपीओ और जेई को तत्काल बुलाया गया। खंड विकास अधिकारी ने चंदौली समाचार को कि मामले की स्थलीय जांच कराई जाएगी, और यदि गड़बड़ी मिली तो संबंधित कार्य का आईडी हटाकर नया जनरेट किया जाएगा व पूरा भुगतान किया जाएगा।

प्रशासनिक चूक या लापरवाही
सवाल यह उठता है कि जब मनरेगा का सिस्टम पूरी तरह डिजिटल और ट्रैकिंग आधारित है, तो फिर कैसे हर बार मजदूरी की कटौती हो जाती है? क्यों नहीं जेई द्वारा की गई माप का रिव्यू समय पर होता है? क्यों मजदूरों को बार-बार प्रदर्शन करके अपना हक मांगना पड़ता है?

जवाबदेही तय होनी चाहिए
अगर मजदूरी में कटौती हुई है, तो सिर्फ भुगतान नहीं, बल्कि जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई भी होनी चाहिए। केवल "आश्वासन" से मजदूरों का पेट नहीं भरता। जिन हाथों में फावड़े हैं, उन्हीं हाथों से देश का इंजन चलता है — लेकिन जब वही हाथ न्याय के लिए तड़पते हैं, तो सिस्टम पर सवाल खड़े होते हैं। प्रदर्शन में राधे, श्याम लाल, चंदा, सीमा, बहेतरी, चंद्रावती, सावित्री, कल्लू, मुन्ना, अजय जैसे दर्जनों मजदूर शामिल रहे। उनका साफ कहना था कि अगर अबकी बार भी मजदूरी नहीं मिली, तो वे शांत नहीं बैठेंगे, चाहे उन्हें धरना देना पड़े या सड़क जाम करना पड़े।

मनरेगा मजदूरी में लापरवाही और खेल अब आम हो चुका है। जब तक जवाबदेही तय नहीं होगी और लापरवाह अफसरों पर कार्रवाई नहीं होगी, तब तक यह लड़ाई चलती रहेगी। मजदूरों ने बता दिया है कि वे अब चुप नहीं बैठने वाले। अब प्रशासन को भी समझना होगा— ये सिर्फ मजदूरी नहीं, गरीब के सम्मान और हक की लड़ाई है।

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