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DM साहब..देख लीजिए स्कूल की बदहाली, नौगढ़ के इस जर्जर विद्यालय में 200 मासूमों की जान खतरे में

स्थानीय अभिभावकों का कहना है कि वे रोज डर के साये में बच्चों को स्कूल भेजते हैं। उन्हें हर वक्त डर रहता है कि कहीं विद्यालय से फोन ना आ जाए कि कोई हादसा हो गया।
 

झालावाड़ जैसी त्रासदी का इंतजार कर रहा चंदौली प्रशासन

बरबसपुर विद्यालय की छत से टपकता पानी

हर दिन खतरे में 200 मासूमों की जान

जर्जर दीवारों के बीच बोरे-पालिथीन पर बैठकर पढ़ने को मजबूर बच्चे

राजस्थान के झालावाड़ में स्कूल की जर्जर छत गिरने से सात मासूम बच्चों की मौत ने पूरे देश को झकझोर दिया, लेकिन चंदौली प्रशासन अब भी नींद में है। जिले के नौगढ़ ब्लॉक के कंपोजिट विद्यालय बरबसपुर की हालत भी बिल्कुल वैसी ही है — छत से टपकता पानी, दरकती दीवारें और 200 से अधिक बच्चे, जो रोज जान हथेली पर रखकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं।

जर्जर कमरों में जान जोखिम में डालकर पढ़ाई
बरबसपुर के इस विद्यालय में 11 शिक्षक और 200 से अधिक बच्चे रोज उसी जर्जर इमारत में पढ़ने आते हैं। विद्यालय के कई कमरों की छतें टपक रही हैं, दीवारों में गहरी दरारें हैं, फर्श पर पानी भर जाता है। बच्चों को कभी बोरे तो कभी प्लास्टिक बिछाकर बैठना पड़ता है, तो कई बार खड़े-खड़े ही कक्षाएं पूरी करनी पड़ती हैं।
शिक्षकों ने कई बार की शिकायत, फिर भी नहीं हुई कार्रवाई
विद्यालय के शिक्षकों ने समय-समय पर इस जर्जर हालत की शिकायत खंड शिक्षा अधिकारी (BEO), बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA), और उप जिलाधिकारी (SDM) तक से की है, लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन मिला — "जांच कराएंगे"।


अभिभावकों में डर का माहौल

स्थानीय अभिभावकों का कहना है कि वे रोज डर के साये में बच्चों को स्कूल भेजते हैं। उन्हें हर वक्त डर रहता है कि कहीं विद्यालय से फोन ना आ जाए कि कोई हादसा हो गया।
एबीएसए का गोलमोल जवाब

खंड शिक्षा अधिकारी (ABSA) लालमणि राम कनौजिया ने सिर्फ इतना कहा कि मामला संज्ञान में आ गया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या "संज्ञान में लेना" ही बच्चों की सुरक्षा की गारंटी है?
डीएम और बीएसए की चुप्पी पर सवाल

क्या जिलाधिकारी को इस विद्यालय की हालत की जानकारी नहीं है? अगर है, तो अब तक वैकल्पिक भवन की व्यवस्था क्यों नहीं की गई? और अगर नहीं है, तो बीएसए और एसडीएम जैसे अधिकारियों की मौजूदगी का क्या औचित्य है?


प्रशासन के पास अब भी मौका है

तत्काल इस विद्यालय को वैकल्पिक स्थान पर स्थानांतरित किया जाए या जर्जर भवन की मरम्मत कराई जाए, वरना इसके बाद अगर कोई हादसा होता है तो इसके जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ अधिकारी होंगे — जिनकी फाइलें और "संज्ञान" बच्चों की जान से ज्यादा कीमती हैं।

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