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नौगढ़ में स्थानीय लोगों ने पेश की मानवता की मिसाल, प्रधान ने गूगल पे पर चंदा लेकर कराया अंतिम सम्मान

घटना की जानकारी मिलते ही ग्राम प्रधान नीलम ओहरी के प्रतिनिधि दीपक गुप्ता बस्ती में पहुंचे। जब मृतक की बेटी को फोन किया गया तो पता चला कि वह पंजाब में धान की रोपाई करने गई हुई है और तत्काल आ पाना संभव नहीं है।
 

 पंचायत बाघी में मड़ई में सोए वनवासी को सांप ने काटा

मृतक के अंतिम संस्कार के लिए ग्राम प्रधान ने व्हाट्सएप पर मांगी मदद

गांव वालों ने मिलकर किया अंतिम संस्कार

चंदौली जिले के तहसील नौगढ़ में ग्राम पंचायत बाघी के नैया घाट पर रविवार को लोकू बनवासी की मड़ई में सोते समय जहरीले सांप के काटने से मौत हो गई। पत्नी की पांच वर्ष पूर्व ही मृत्यु हो चुकी थी और एकमात्र पुत्री विवाह के बाद पंजाब में मजदूरी करने चली गई थी। पुत्र नहीं था, इसीलिए अंतिम संस्कार की कोई व्यवस्था नहीं थी।बर्फ जैसी गरीबी में जीवन काटते एक निर्वंश बनवासी की ज़िंदगी जहरीले सांप के एक डंस से खत्म हो गई, लेकिन जिस तरह से पूरे गांव ने उसकी मृत्यु के बाद डिजिटल तरीके से मानवता की मिसाल पेश की आज ये घटना समाज को सोचने पर मजबूर कर देती है कि परिवार में सहारे की क्या अहमियत है। 


 अकेला जीवन, अकेली मौत .... 

लोकू बनवासी के पास अपने लिए न  pakka घर था, न जमा पूंजी, बस एक मड़ई में जीवन बसर कर रहा था। शनिवार को शाम तक सब ठीक था, लेकिन रविवार को दोपहर बाद जब पड़ोसियों ने उसे आवाज दी, तो देखा कि उसका शरीर अकड़ा हुआ था और जांघ पर जहरीले सांप के काटने का निशान था।

 ग्राम प्रधान नीलम ओहरी ने प्रधान प्रतिनिधि दीपक गुप्ता ने दिखाई संवेदनशीलता

घटना की जानकारी मिलते ही ग्राम प्रधान नीलम ओहरी के प्रतिनिधि दीपक गुप्ता बस्ती में पहुंचे। जब मृतक की बेटी को फोन किया गया तो पता चला कि वह पंजाब में धान की रोपाई करने गई हुई है और तत्काल आ पाना संभव नहीं है। तब गांव ने मिलकर एक अद्भुत निर्णय लिया। दीपक गुप्ता ने पंचायत बाघी के व्हाट्सएप ग्रुप पर संदेश डाला और फोनपे /गूगल पे के माध्यम से चंदा मांगा। गांव के लोगों ने बिना देर किए डिजिटल सहयोग से पैसे जमा किए और लोकू बनवासी का सम्मानजनक तरीके से अंतिम संस्कार कराया। 

 समाज को सीख देती है यह घटना
जिस समाज में अक्सर अपने भी अंतिम संस्कार से मुंह फेर लेते हैं, वहां एक बनवासी के लिए गांव ने आगे बढ़कर जो किया, वह "सामूहिक संवेदना की जीवित तस्वीर" है। यह घटना बताती है कि सिर्फ सरकारी योजनाओं से नहीं, बल्कि इंसानी भावनाओं से भी समाज चलता है। यदि हर गांव में दिपक गुप्ता ऐसी संवेदनशीलता हो, तो कोई गरीब अकेला न मरे और समाज सच्चे अर्थों में मानवता की मिसाल बने।

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