नौगढ़ में शालिनी त्रिपाठी सुना रही हैं राम कथा, भरत मिलाप का प्रसंग सुनकर भावुक हुए श्रद्धालु
चंदौली जिले के तहसील नौगढ़ में दुर्गा मंदिर पोखरे पर चल रही श्री राम कथा में मानस मयूरी शालिनी त्रिपाठी द्वारा भाई के प्रति प्रेम और आधुनिक जीवन में इसके महत्व पर कथा सुनाई गई। शुक्रवार को भरत मिलाप का प्रसंग सुनाते हुए कथा व्यास ने सभी को भाव-विभोर कर दिया। इस दौरान पंचायत बाघी की प्रधान नीलम मोहरी के प्रतिनिधि दीपक गुप्ता ने कथा व्यास शालिनी त्रिपाठी समेत मुख्य यजमान और दुर्गा पूजा समिति के अध्यक्ष पंकज जायसवाल को अंग वस्त्र और स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया।
कथा में शालिनी त्रिपाठी ने बताया कि अयोध्या से राम, सीता और लक्ष्मण के वनवास जाने के बाद भरत माता कैकई के कक्ष में राम को तलाशने पहुंचे। जब उन्हें राम के वनवास की जानकारी मिली, तो वे माता कैकई को कोसते हुए रोने लगे। भरत ने कहा कि पुत्र कुपुत्र हो सकता है, मगर माता कुमाता नहीं हो सकती। इस पर माता कौशल्या और सुमित्रा ने उन्हें समझाते हुए कहा कि राजा दशरथ अब इस दुनिया में नहीं रहे। इसके बाद भरत अपनी तीनों माताओं के साथ राम को वापस लाने के लिए निकल पड़े।
भरत अपनी सेना और निषादराज से मार्गदर्शन लेकर चित्रकूट पहुंचे, जहां लक्ष्मण ने उन्हें देखा और राम को बताया। राम ने हंसते हुए कहा, "ठहर जाओ, अनुज भरत को आने दो।" भरत राम के चरणों में गिरकर क्षमा याचना करते हैं, और राम उन्हें गले लगाते हैं। भरत ने पिता की मृत्यु की खबर सुनाई, जिसे सुनकर राम, सीता और लक्ष्मण शोकाकुल हो गए।
भरत ने राम से अयोध्या लौटने का आग्रह किया, परंतु राम ने पिता के दिए हुए वचन को निभाने की बात कहते हुए इनकार कर दिया। अंत में, राम ने भरत को अयोध्या की प्रजा और माताओं की देखभाल का दायित्व सौंपा। भरत राम की चरण पादुका लेकर अयोध्या लौटे और 14 वर्षों तक राज सिंहासन पर चरण पादुका रखकर खुद जमीन पर संन्यासी जीवन बिताते हुए राज्य का संचालन किया।
भरत मिलाप के इस प्रसंग ने सभी श्रद्धालुओं की आंखें नम कर दीं। कार्यक्रम का संचालन राजू पांडे ने किया। इस अवसर पर वन क्षेत्राधिकारी मकसूद हुसैन, भगवान दास अग्रहरि, शीतला श्रीवास्तव, शंकर सेठ, गुलाब केसरी, पंकज मद्धेशिया, अजीत विश्वकर्मा, राजू और रवि गुप्ता सहित अन्य श्रद्धालु उपस्थित थे।
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