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DPRO साहब आप भी गांव में जाकर देख आइए 14 लाख वाला शवदाह स्थल या BDO को ही भेज दीजिए

स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि बारिश के दिनों में यहां पहुंचना लगभग असंभव हो जाता है। शवदाह के समय लोगों को या तो कीचड़ से भरे खेतों से होकर गुजरना पड़ता है या फिर वैकल्पिक असुविधाजनक रास्तों का सहारा लेना पड़ता है।
 

समाचार प्रकाशित होने के बाद हुई केवल दिखावटी सफाई

केवल सफाई कराने से नहीं बनेगी बात

2016 में ग्राम निधि से बना शवदाह स्थल अब भी उपयोग से वंचित

ग्राम प्रधान ने झाड़ू लगवाकर बचाई इज्जत

रास्ते की समस्या का समाधान अब भी अधूरा

चंदौली जनपद के धानापुर क्षेत्र के नरौली गांव में वर्ष 2016 में ग्राम पंचायत निधि से करीब 14 लाख रुपये की लागत से बना अंत्येष्टि स्थल आज भी उपेक्षा और अव्यवस्था का प्रतीक बना हुआ है। इस शवदाह स्थल पर शौचालय, स्नानघर, लकड़ी घर, शांति स्थल जैसी तमाम सुविधाएं तो हैं, लेकिन सबसे अहम कड़ी – एक पक्का रास्ता अब तक नहीं बन पाया। यही वजह है कि ग्रामीणों को सुविधा मिलने के बजाय निराशा ही हाथ लगी है।

आपको बता दें कि 21 जून को चंदौली समाचार में इस बदहाल व्यवस्था को उजागर करते हुए "DM साहब..नरौली गांव का 14 लाख वाला अंत्येष्टि स्थल बना मजाक, रास्ता ही नहीं तो उपयोग हो कैसे" शीर्षक से खबर प्रकाशित की गई थी। खबर के प्रकाशन के बाद ग्राम प्रधान ने आनन-फानन में सफाई कराई, लेकिन मुख्य समस्या रास्ता जस की तस बनी हुई है।

बिना रास्ते के बेकार बना शवदाह स्थल

स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि बारिश के दिनों में यहां पहुंचना लगभग असंभव हो जाता है। शवदाह के समय लोगों को या तो कीचड़ से भरे खेतों से होकर गुजरना पड़ता है या फिर वैकल्पिक असुविधाजनक रास्तों का सहारा लेना पड़ता है। ऐसे में यह सुविधा ‘सरकारी धन की बर्बादी’ का जीता-जागता उदाहरण बन गई है।

प्रशासनिक उदासीनता पर उठे सवाल

ग्रामीणों ने सवाल उठाया है कि जब लाखों रुपये खर्च कर यह निर्माण हुआ, तो सड़क या रास्ते के बारे में क्यों नहीं सोचा गया? और आज तक इसकी सुध क्यों नहीं ली गई? इस लापरवाही की जिम्मेदारी कौन लेगा?

इस संबंध में  ग्राम सचिव दिनेश सिंह ने बताया कि रास्ता निर्माण के लिए प्रस्ताव भेजा गया है और शीघ्र ही निर्माण कार्य शुरू कराने की कोशिश की जाएगी। वहीं, कुछ अधिकारियों का कहना है कि मामला संज्ञान में है और जल्द कार्यवाही होगी।

क्या वाकई कुछ बदलेगा?

ग्राम पंचायत में बनी ये अधूरी सुविधा फिलहाल केवल एक प्रतीक बनकर रह गई है। एक ऐसा प्रतीक जो योजनाओं की खामियों, भ्रष्टाचार या प्रशासनिक उदासीनता की ओर इशारा करता है। अब देखना है कि प्रशासन सिर्फ सफाई तक ही सीमित रहता है या इस बार रास्ता बनवाकर लोगों को राहत भी मिलती है। फिलहाल के लिए, यह अंत्येष्टि स्थल ‘अंतिम यात्रा’ के लिए नहीं, एक अधूरी योजना की कहानी के लिए जाना जा रहा है।

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